डा.आशीष तिवारी
फिजीशियन
मुंबई

जून का महीना चल रहा है और ऐसी खबरें आ रही है कि आने वाले महीनों में देश में बच्चों के स्कूल खोले जाने की योजना है । इस खबर ने पूरे देश में माताओं और पिताओं की नींद उड़ा कर रख दी है । लोगो को समझ में नही आ रहा है कि इस तरह की घोषणा आखिर कोई भी सरकार कैसे कर सकती है वो भी उस समय जब कोरोना की बीमारी का कर्व न तो नीचे आ रहा है न ही फ्लैट हो रहा बल्कि लगातार उपर की ओर बढ़ता जा रहा है ।

कोरोना का कोई भी कारगर उपचार अभी तक उपलब्ध नही है । सारी दुनिया के वैज्ञानिक इसी खोज में रात दिन लगे हुये हैं और जब तक इस महामारी का कोई कारगर उपचार नही आ जाता तब तक इससे बचाव के अनेक उपायों का कड़ाई से पालन करना ही सबसे कारगर तरीका है । कोरोना ताक में बैठा है । जब भी हमारी ओर से सावधानी हटेगी तब यह हमारे उपर हमला करके हमें बीमार कर सकता है ।

जहाँ तक बचाव के उपायों की बात है तो हम सबको एसएमएस (SMS) का पालन करना ही होगा । जिसमें पहला एस है सोशल डिस्टेंसिंग एम है मास्क का पहनना और दूसरा एस है सैनिटाईजर का बारंबार प्रयोग । अब इस फार्मूले की विवेचना बच्चों के स्कूलों के परिदृश्य में करते हैं

  • सोशल डिस्टेंसिंग – यह एक सबसे जरूरी कदम है कोरोना से बचाव का । विगत तीन महीनों से हमने लगभग हर दिन इन दो शब्दों को बार बार सुना । क्या बड़े और समझदार लोग भी इस सलाह पर ईमानदारी से अमल कर पाये या कर रहे हैं । उत्तर है नही
    जब बड़े और समझदार लोग अमल नही कर पा रहे हैं तो बच्चों से हम आखिर कैसे यह उम्मीद रख सकते हैं । छोटी छोटी क्लासेज में बेहद अधिक संख्या में बैठे बच्चे, खेलते समय या ब्रेक में खाना खाते हुए बच्चे या छोटी छोटी वैन्स में भरे हुए बच्चे क्या सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर पायेंगे ?
  • मास्क – यह भी बचाव का बेहद आवश्यक अंग है । इसमें भी वही तथ्य बताना चाहूँगा कि बड़े लोग मास्क उतारकर घूमने लगे हैं ऐसे में बच्चों से हम कैसे उम्मीद करें कि वो घर से स्कूल तक जाने के दौरान, स्कूल में पढ़ाई के दौरान, स्कूल में इंटरवल के दौरान खेलते समय या खाते समय लगातार मास्क पहने ही रहेंगे या एक दूसरे का मास्क एक्सचेंज करके नही पहनेंगे ?
  • सैनिटाइजेशन- यह भी बेहद आवश्यक उपाय है और हाथों का सैनिटाइजेशन बार बार करने की आवश्यकता होती है । जिस स्कूल बस में जायेंगे और वापस आयेंगे उस बस के बार बार सैनिटाइजेशन की आवश्यकता होगी । जिस क्लास रूम में बैठेंगे उसकी पूरी तरह से सैनिटाइजेशन की आवश्यकता होगी । कैंटीन या लैबोरेटरी आदि सार्वजनिक जगहों के बारंबार सैनिटाइजेशन की आवश्यकता होगी । क्या हर स्कूल और हर बस आपरेटर इन नियमों का कड़ाई से पालन कर सकेगा । मुझे तो पूरा संदेह है । अब शहर से हटकर टियर 3 या टियर 4 के शहरों में और ग्रामीण पृष्ठभूमि के स्कूलों में SMS का पालन कितनी ईमानदारी से हो सकता है यह भी समझना कोई पहेली नही है । हैंड सैनिटाइजेशन शहरों में तो थोड़ा बहुत संभव हैं पर गांवों में ? जहाँ हैंड सैनिटाइजर की उपलब्धता पर तो प्रश्नचिन्ह है ही साथ साथ पानी की उपलब्धता भी एक प्रश्नचिन्ह है ।

अब यह समझना कठिन नही है कि बच्चों का स्कूलों में SMS का पालन कर पाना असंभव तो नही परंतु अत्यंत दुष्कर है। इसलिए वर्तमान परिस्थितियों में जब कोरोना के केसेज शीर्ष की ओर जा रहे हैं ऐसे में स्कूलों को खोल देना कितना खतरनाक निर्णय हो सकता है । अब ऐसा नजर आने लगा है कि देश के तमाम हिस्सों में कम्यूनिटी ट्रांसमिशन साफ साफ दिखने लगा है यद्यपि आधिकारिक घोषणा अभी तक नही हुई है । ऐसे में बच्चों के घरों से लेकर स्कूलों तक इस कोविड का ट्रांसमिशन आसानी से और तेजी से हो सकता है । और हम अपने अनुभवों से भी अच्छी तरह जानते हैं कि बच्चों में स्कूलों में रिस्पाइरेटरी वायरस का संक्रमण तेजी से फैलता है।

इसे रोकना होगा । हमें पूरी मजबूती के संग सरकार से यह मांग रखनी होगी कि बच्चों के स्कूल खोलने में जल्दबाजी न करें । पश्चिमी देशों की स्टडी हमारे देश के लिए उपयुक्त नही है क्यों कि हमारे यहाँ बच्चों की अच्छी खासी संख्या कुपोषण का शिकार है जो कि इस संक्रमण को बढ़ाने में सहायक हो सकती है । वैसे हमारे समक्ष एक सजीव उदाहरण भी सामने आ गया है । इजरायल ने जल्दीबाजी में स्कूल खोलने का निर्णय ले लिया और मात्र दो हफ्तों के बाद लगभग 14000 बच्चों और अध्यापकों को क्वारंटीन में भेजा गया है । सैकड़ों बच्चे व अध्यापक कोरोना पाजिटिव पाये गये हैं।

बच्चों की पढ़ाई को फिलहाल तो आभासी ( वर्चुअल) माध्यम पर ही शिफ्ट करना होगा और सरकार को इस दिशा में प्रबंधन व तंत्र में जो कमियाँ हैं उन पर त्वरित रूप से काम करके उन्हे पूरा करना चाहिए । जब तक कोरोना की वैक्सीन न आ जाये या फिर इलाज न आ जाये तब तक बच्चों की जान को खतरे में डालना किसी भी दृष्टि से एक आत्मघाती निर्णय होगा । पढ़ाई कुछ महीने तक टाली जा सकती है पर एक नन्हा जीवन चला गया तो वापस न मिलेगा और जीवन भर का पश्चाताप माताओं पिताओं को देकर जायेगा ।

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