भूमिका, संवाददाता, गुजरात

कोरोना से अधिक घातक कोरोना का डर साबित हो रहा है। डर से लोगों में मानसिक तनाव लगातार बढ़ रहा है। कोरोना के मामले भले ही कम हो गए हो लेकिन उसके उपाय अब लोगों की सेहत के लिए हानिकारक साबित हो रहे है, इसके कारण मानिसक रोगियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। कोरोना के फैलने का जितना डर लोगों को बाहर जाने पर लग रहा है उतना ही मानसिक डर लोगों को अब घर में रहते हुए सताने लगा है महज सिविल अस्पताल में ही पिछले डेढ़ महीने में डेढ़ हजार के करीब केस आ चुके है

देश भर में कोरोना के मामले में भले ही कमी आई हो लेकिन उसके पोस्ट इफ़ेक्ट अब लोगो को परेशां कर रहे है , कोरोना के बाद म्युकर माइकोसिस , ब्लैक फंगस , गेंगरीन , MISC जैसे रोगो को हम देख ही चुके है लेकिन अब मानसिक रोगियों की संख्या में जो इजाफा देखने को मिल रहा है वो चिंताजनक है। ऐसे पेशंट्स जो कोरोना संक्रमण को हराकर ठीक हो गए हैं, वे अब भी इस वायरस द्वारा दी गई दिक्कतों को झेलने पर मजबूर हैं। हाल ही उन पेशंट्स पर की गई स्टडी सामने आई है, जो चौकाने वाली है इस विषय पर शोध करनेवाली एक्सपर्ट्स की टीम ने इस बात को साफ किया है कि इस दिशा में अभी बहुत अधिक रिसर्च किए जाने की जरूरत है। फिलहाल हेल्थ एक्सपर्ट्स और डॉक्टर्स को कहा जा रहा कि वे संक्रमित रोगियों का इलाज करने के दौरान उनकी शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की सेहत का लगातार निरीक्षण करें।
डॉ की माने तो पिछले डेढ़ महीने में ही ऐसे 1500 से ज्यादा मामले है जिनमे कोरोना के पोस्ट इफ़ेक्ट के तौर पर मरीज मानसिक रोग से पीड़ित हो रहे है। इन मानसिक बीमारियों में ऐंग्जाइटी (Anxiety), इंसोमनिया (Insomnia), डिप्रेशन (Depression) और ओब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर (OCD) और पोस्ट ट्रोमेटिक स्ट्रेस डिस्ऑर्डर (PTSD) जैसी समस्याएं देखने को मिल रही हैं। इनमें भी ज्यादातर रोगियों में नींद ना आने की समस्या सबसे अधिक देखी जा रही है। इस स्थिति में ये लोग हर समय बेचैनी का अनुभव करते हैं।

जिन लोगों में कोरोना को हराने के बाद मानसिक विकार उत्पन्न हो रहे हैं, उनमें सबसे अधिक समस्या ऐसे लोगों की है, जिन्हें नींद ना आने की दिक्कत हो रही है। अगर प्रतिशत के हिसाब से बात करें तो नींद ना आने की समस्या से जूझ रहे लोगों की संख्या करीब 40 प्रतिशत है। जबकि डिप्रेशन के मरीजों की संख्या 31 प्रतिशत और ऐंग्जाइटी से जूझ रहे लोगों की संख्या 42 प्रतिशत है। ये समस्या सिर्फ बड़ो को ही परेशां नहीं कर रही है बच्चे भी कोरोना के पोस्ट इफ़ेक्ट के तहत मानसिक रोग का शिकार हो रहे है। अब सवाल यह उठता है कि कोरोना वायरस के कारण शरीर के अंदर ऐसा क्या होता है जो मानसिक रोगों की वजह बन रहा है। तो इसकी एक संभावित वजह जो अभी तक सामने आई है, वह यह है कि कोविड-19 के कारण हमारे फेफड़ों (Lungs) में सूजन आती है। धीरे-धीरे यह शरीर के अन्य अंगों की तरफ भी बढ़ने लगती है। जिन रोगियों में यह सूजन (Inflammation) दिमाग तक पहुंच जाती है, उनके ब्रेन की कार्यप्रणाली में बाधा उत्पन्न होती है और उन्हें अलग-अलग तरह की मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में प्रतिदिन 50 से अधिक मरीज काउंसलिंग के लिए आ रहे हैं। मई में 14 मरीज इलाज के लिए सिविल आए और जून में एक सप्ताह में 4 मरीज आए। अस्पताल स्टाफ की मानसिक स्थिति पर भी सवाल उठाया गया, कोरोना के समय सिविल में कोविड ड्यूटी पर तैनात चिकित्सकों, शिराओं एवं अन्य के कारण वर्तमान मानसिक तनाव विभाग द्वारा किया गया है। 150 डॉक्टरों और 150 नर्सों पर सर्वेक्षण किया गया क्योंकि स्टाफ भी कोरोना के कारण परिवार से दैनिक आधार पर काम कर रहा था। जिसमें से 3% डॉक्टर और 4% नॉन मेडिकल स्टाफ में मानसिक तनाव पाया गया। आराम नहीं, – कमजोर या बिना राहत के काम करने के साथ-साथ परिवार से दूर रहने से उसकी मानसिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।

इसके अलावा, इस दौरान कई लोगों को ओसीडी का पता चला है। (ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर) यानी एक ही गतिविधि या क्रिया को बार-बार दोहराने की समस्या से पीड़ित होना पड़ता है। ऐसा नहीं है कि कोरोना से संक्रमित होने के बाद सभी पेशंट्स को मानसिक परेशानियां हो रही हैं लेकिन जिन लोगों को यह संक्रमण होकर ठीक हो चुका है, उनमें आधे से अधिक मरीजों में मानसिक बीमारियां देखने को मिल रही हैं जो बेहद चिंता का विषय है

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