संजीव रत्न मिश्रा, ब्यूरोचीफ, वाराणसी.

 

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन करने वालों का पीढ़ी दर पीढ़ी देखा जाने वाला एक मनोहारी बाबा की कचहरी का दृश्य सदा के लिए समाप्त हो गया .. जहां बाबा के भक्त जाकर एक साथ सैकड़ों शिवलिंग के रूप में स्थापित बाबा के अधिकारियों (विग्रहो) के समक्ष अपनी वेदना व्यक्त कर उससे मुक्ति पाते थे। बाबा की कचहरी आने वाले श्रद्धालु वही स्थापित ऋषि कपिलमुनी की प्रतिमा को बाबा की कचहरी का मुख्याधिकारी मानते थे। मान्यता है कि जो लोग मुकदमे में फंस जाते हैं, वो लोग इस शिव कचहरी में अपनी फरियाद करते थे जिससे उनके पक्ष में मुकदमे का फैसला आता था।

कारिडोर निर्माण को क्रांतिकारी तरीकों से अंजाम देने के लिए अनियंत्रित कोलाहल पैदा किया जा रहा है। इस कारिडोर को बनाने में भक्तिभाव से ज्यादा शक्तिभाव ही दिख रहा है, मात्र प्रसिद्धि और सम्मान पाने की होड़ में प्रोजेक्ट को जल्द से जल्द पूरा करने की जल्दबाजी ही दिख रही है.. आखिर काशीवासियों के हृदय से भावनात्मक रूप से जुड़े धार्मिक प्रतीकों को समाप्त कर किस तरह की विकास की धारा बहायी जा रही। कॉरिडोर के समाज सुधारक कर्णधार जो विकास समितियां बनाकर शहर मे ढिंढोरा पीटते थे आज सोशल साइटों पर दिखावटी घड़ियाली आँसु बहा रहे है। काशी की आध्यात्मिकता को नुकसान पहुंचाने वाले ऐसे लोगो की सामाजिक बहिष्कार की आवश्यकता है।

#हरहरमहादेव

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