वरिष्ठ पत्रकार अनिल सिंह की कलम से….
राजा भिनगा उदय प्रताप सिंह के त्याग और तप से तैयार भूमि पर बनारस में सौ एकड़ में स्थापित उदय प्रताप कालेज आज अपने सौ साल पूरे कर चुका है। इस लंबे दौर में कालेज ने शिक्षा राजनीति और प्रशासनिक सहित सभी क्षेत्र में एक से बढ़कर विभूतियों को दिया है। वहां पढ़ने वाले छात्रों को अपने प्राचीन छात्र होने पर गर्व होता है। मुझे भी यह गौरव हासिल है कि मैं इस महान कालेज का छात्र रहा। जहां गुरु छात्र के बीच एक अलग ही तरीके का रिश्ता था। एक परिवार की भावना थी। आज यह कहते हुए दुख हो रहा है कि हाल के वर्षों में कालेज प्रबंधन अपनी खूबियों को खो चुका है। मुझे याद है जब कालेज के स्थापना का शताब्दी वर्ष था तब प्रबंधन हर छात्र से पांच सौ रुपये शताब्दी शुल्क वसूलने लगा। इसका विरोध हुआ। जिला प्रशासन को हस्तक्षेप करने पर थमा लेकिन उस पैसे का क्या हुआ। कहां खर्च हुआ कोई जानकारी नहीं सार्वजनिक की गई। एक पारदर्शी व्यवस्था तो यही कहती है कि सभी को पता होना चाहिए छात्रों से वसूला पैसा कहां गया। पहले तो ऐसी वसूली होनी ही नहीं चाहिए। सभी को बाध्य करना अनुचित था।
यहां पतन उसी समय से शुरू हुआ जब न्यायिक सेवा और ब्यूरोक्रेसी के रिटायर्ड लोग प्रबंधन में आ गए। इनके लिए राजर्षि के त्याग और बलिदान से कोई मतलब नहीं था। इनके लिए ये कालेज भी एक सरकारी संस्थान जैसा था। जिसे स्वच्छंदता से चरागाह बना लिया गया। यदि ये लोग कालेज के प्राचीन छात्र या शिक्षक होते तो उन्हें राजर्षि के सपने और मूल्यों का दर्द पता होता। आज यदि मेरे जैसे तमाम प्राचीन छात्र दुःखी है तो उसका एकमात्र कारण राजर्षि के बगिया में जीवन के अमूल्य समय का बीताना है। हम दुनिया के किसी भी कोने में हो तीन सितंबर और 25 नवंबर अवश्य याद रहता है। राजर्षि का सपना एक अच्छा नागरिक बनाने की थी। आज नियमों की अवहेलना करने के बाद भी प्रबंधन अपनी गलतियों पर पर्दा डालने के हर हथकंडे अपना रहा है माननीय उच्च न्यायालय प्रदेश सरकार से बार बार जानकारी मांग रही कि क्या कार्रवाई हुई? प्रदेश सरकार भी न जाने किस भय में कोई कार्रवाई नहीं कर पा रही। जबकि प्रदेश सरकार तटस्थता के साथ अपनी जिम्मेदारी का पालन कर इस पुरानी शैक्षिक संस्था को बचा सकती है। उस कालेज में वह क्षमता है जो जरा से सकारात्मक प्रयास से प्रदेश ही नहीं देश में स्थान बना सकता है।
भूलना नहीं चाहिए प्रबंधन के आज के जिम्मेदार ही कालेज की पूरी संपत्ति बैंक में गिरवी रखने की तैयारी में थे। वह तो प्राचीन छात्रों ने ही कालेज को एक बड़ी साजिश से बचाया। अब कालेज को जरुरत है एक समर्पित प्रबंधन की जो नये दौर की शिक्षा के साथ दौड़ लगाए और अपने संस्थापक के मूल्यों को बरकरार रखें। सरकार यदि कोर्ट का कोई आदेश है तो उसका अनुपालन कराए। कालेज यदि विश्वविद्यालय बने तो और भी अच्छी बात है लेकिन कोई कालेज के पैसे पर ऐश करें पांच सितारा होटलों में बैठक हो। यह उचित नहीं है। राजा उदय प्रताप सिंह जूदेव एक राजा होकर भी ऋषि का जीवन जीते थे। ऐसे में उनकी संपत्ति पर ऐश बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। जय राजर्षि
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