डॉ दिलीप अग्निहोत्री

 

लखनऊ विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह में आज की शाम ए अवध खास रही। इसमें विविध रंग एक साथ समाहित थे। अनूप जलोटा के गीतों ने माहौल को खुशनुमा बनाया। अन्य संगीत कार्यक्रम भी आकर्षक थे। विश्वविद्यालय से किसी न किसी रूप में जुड़े दिग्गजों का सम्मान किया गया। पुरातन छात्रों ने अपनी यादें साझा की। शताब्दी समारोह के छठवे दिवस की संध्या में सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंतर्गत कला संकाय के प्रांगण में सुप्रसिद्ध गायक डी जे नारायण और उनके साथियों के समूह “aaryan” ने उच्चकोटि के संगीत का प्रस्तुतिकरण दिया जिसमे “शांतु दादा “, “रोक सके न मुझको कोई” मैं तो नया सवेरा हूँ ” “सात समुन्दर पार से मैं चला मिटाने अँधेरा हूँ ” जिसका अंत उन्होंने देशभक्ति से ओतप्रोत रचना “हाँ मैं हिन्दुस्तान हूँ “से किया।

ऐसी लगी लगन

संध्या के मुख्य आकर्षण पदमश्री अनूप जलोटा जी ने तत्पश्चात अपना कार्यक्रम प्रस्तुत किया। उन्होंने अपने कार्यक्रम का प्रारम्भ इस वाक्य से किया ” लखनऊ हम पे फ़िदा हम फिदाए लखनऊ “। आज भी में मेरे मन में ध्यान में रहता विश्वविद्यालय,ऐ शहरी लखनऊ तुझे मेरा सलाम है, तेरी विश्वविद्यालय की बड़ी निराली शान है”। इसके बाद जलोटा जगन “ऐसी लागि लगन” भजन का प्रस्तुतीकरण कर समस्त श्रोतागणों को भक्तिरस में सराबोर कर दिया। इस दौरान उन्होंने अपनी लम्बी सांस का कारण बाबा रामदेव का प्राणायाम कहा। उन्होंने बॉबी फिल्म का सुप्रसिद्ध गाना “मैं शायर तो नहीं ” गाया जिसे वो अपने विश्वविद्यालय के दिनों में कैंटीन में गाया करते थे। “रामनरायणं जानकी वल्लभं” रचना सुना कर सबको भक्तिरस की ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया। इसके बाद उन्होंने फिल्म अमर प्रेम में संगीतकार राहुल देव बर्मन की कालजयी रचना “चिंगारी कोई भड़के सावन उसे बुझाये” सुनाई। इसके बाद “दमादम मस्त कलंदर” जिसमे “ताकते रहते तुझको सांझ सवेरे ” का फ्यूज़न कर दिया और माहौल खुशनुमा बना दिया। इसके बाद जलोटा जी अपनी सुप्रसिद्ध रचना “रंग दे चुनरिया” सुनाई। इसके पश्चात उन्होंने “श्याम तेरी बंसी” का गायन किया।

अलुम्नाई मीट

अलुम्नाई मीट में पदमश्री राज बिसरिया, पदमश्री अनूप जलोटा, डॉक्टर आराधना शुक्ल, लीना जौहरी,अम्बुज शर्मा,जे बी सिंह, विजय भूषण, डॉक्टर जी के गोस्वामी, खेल जगत से प्रख्यात हॉकी खिलाडी शकील अहमद, रजनीश मिश्रा,आर पी सिंह, अर्जुन अवार्डी रचना गोविल,रविंद्र पाल, ख्यातिप्राप्त चिकित्सक प्रोफेसर सूर्यकांत,युवा कवि श्री पंकज प्रसून, मीडिया जगत से अभिज्ञान प्रकाश, एम् के गांगुली, गणेश गौरांग, अनिल भारद्वाज, जैसी विभूतियों ने आज प्रतिभाग किया। पुरातन छात्र कार्यक्रम का औपचारिक शुभारम्भ किया गया। जिसमे कुलपति प्रोफेसर अलोक कुमार राय, उत्तर प्रदेश सरकार में क़ानून मंत्री बृजेश पाठक, वित्तमंत्री सुरेश खन्ना और मंत्री डॉक्टर महेंद्र सिंह ने द्वीप प्रज्वलन कर अंतरराष्ट्रिय पुरातन छात्र सम्मलेन का शुभारम्भ किया। विश्वविद्यालय का कुलगीत सांस्कृत्की की छात्राओं द्वारा प्रस्तुत किया गया। कुलपति प्रोफेसर अलोक कुमार राय जी ने अपने सम्बोधन में समस्त मुख्य अतिथियों का सम्मलेन में आने का धन्यवाद दिया। उन्होंने सबको लखनऊ विश्वविद्यालय की वेबसाइट देखने के साथ साथ लखनऊ विश्वविद्यालय के अलुम्नाई एसोसिएशन से जुड़ने के लिए अनुरोध किया साथ में अलुम्नाई फाउंडेशन के अलग अलग शहरों तथा देशों में विभिन्न अध्यायों को बनाने की गुज़ारिश की। साथ साथ कुलपति जी ने अलग अलग स्तर पर छात्रवृत्ति देने की गुज़ारिश की। जिससे विश्वविद्यालय की आधारभूत ढांचा, पुस्तकालय इत्यादि में पुरातन छात्रों को मदद करने का अनुरोध किया।

केरल के राज्यपाल का वर्चुअल संवाद

आरिफ मोहम्मद खान राज्यपाल केरला ने सम्मलेन में ऑनलाइन प्रतिभाग किया। उन्होंने अपने कोविद पॉजिटिव होने के कारण सम्मलेन में सशरीर प्रतिभाग न कर पाने का अफ़सोस जताया। उन्होंने भारतीय परंपरा में गुरु का महत्व बताते हुए कहा की गुरु अन्धकार से प्रकाश में लाने का कार्य करता है। साथ साथ उन्होंने कहा की आने वाली नस्लों को तैयार करने का जिम्मेदारी गुरु की होती है। विश्ववियालय की जिम्मेदारी होती है की वो वैश्विक स्तर पर ले जाने की होती है। उन्होंने कहा भारत ” नित नूतन चिर पुरातन ” देश है।

उन्होंने कहा की कई पुराणी सभ्यता खत्म हो गयी इसलिए आज वो शोध का विषय है परन्तु भारत सभ्यता में निंरतरता होने के कारण आज भी विद्यम्मान है। साथ साथ अरब,यूनानी साहित्य के अनुवाद के पहले सिंध से कनक नाम के विद्वान् आठ से दस पुस्तके लेकर बाग्दाद् पहुंचे और खलीफा मंसूर को सूर्य सिद्धांत पुस्तक को सुनाया तो खलीफा इतना प्रभावित हुए की उसका अनुवाद करने का आदेश दिया। जिसे बाद में हिन्द सिंध नाम दिया। यह हमारी विरास्त है। पुरातन का आदर और नूतनता का स्वागत करने का अनुरोध किया।

मंत्री महेंद्र सिंह ने अपने विश्वविद्यालय के दिनों को याद किया तथा उन्होंने कुलपति के प्रयासों की भूरी-भूरी प्रशंसा की तथा समस्त पुरातन छात्रों का अभिनन्दन और स्वागत किया। पुरातन छात्र एवं निति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने अपना सन्देश ऑनलाइन माध्यम से दिया। कहा कि लखनऊ विश्वविद्यालय ने पनाह दी। जहाँ उन्होंने स्नातक, स्नातकोत्तर और शोध किया। उन्होंने अपने समय के समस्त शिक्षकों को स्मरण करते हुए लखनऊ विश्वविद्यालय के गरिमामयी इतिहास को याद किया। कहा की हम सबको शपथ लेनी चाहिए की आने वाले सौ सालों में हमें प्रयास करना चाहिए की यह विश्व के दो सौ विश्ववियालयों में शुमार हो सके। सुरेश कुमार खन्ना ने समस्त पुरातन छात्रों को सम्बोधित किया। बताया कि 1974 में उन्होंने विश्वविद्यालय में लॉ में दाखिला लिया था। इसी विश्वविद्यालय के कारण ही विधानसभा,मंत्री पद मिला। उन्होंने कहा की आज यहाँ आगमन पर छयालीस साल पहले की यादें ताज़ी हो गयीं।

विश्वविद्यालय सम्पूर्ण विश्व में सब महत्वपूर्ण लोगो का जनक होता है। उन्होंने कौटिल्य, पातंजलि श्रेणी के महापुरुषों को बनाने के लिए आत्मविवेचन करने की सलाह दी। नयी पीढ़ी से उन्होंने कहा उन्होंने कहा पुरुषार्थ से हम अपना सब लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं भाग्य से नहीं। साथ साथ उन्होंने गीता के एक महत्वपूर्ण श्लोक का उच्चारण किया। तरक्की प्राप्त करने के होड़ में हमें अपने संस्कारों को नहीं भूलना चाहिए। इसके बाद विश्वविद्यालय के शिक्षक जो पूर्व और वर्तमान में किसी न किसी विश्वविद्यलया के कुलपति है या रह चुके हैं, विभिन्न संस्थानों के निदेशकों, विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र जिन्हे पदमश्री और पदम्भूषण प्राप्त हुआ है, उन पूर्वछात्रों जो प्रशासनिक सेवाओं में कार्यरत हैं, जो पुलिस प्रशासनिक सेवाओं में कार्यरत हैं। उन पूर्वछात्र रक्षा सेवाओं में कार्यरत हैं, जो सम्मानित किया गया जो खेल जगत में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया हैं, प्रोफेसर डॉक्टर सूर्यकांत, प्रेस एवं मीडिया के गणमान्य हस्तियों,लेखक एवं कवियों, अधिवक्ता जर्नल राघवेंद्र जी,डी जे नारायण केओ स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।

पुस्तक विमोचन

प्रोफेसर ध्रुवसेन सिंह द्वारा लिखित पुस्तक “दीक्षा: शताब्दी संकलन कोरोना विज्ञान और समाज” तथा मोहिता तिवारी द्वारा रचित पुस्तक “हंड्रेड इयर्स ऑफ़ लखनऊ यूनिवर्सिटी- आ लिगेसी उनसेड, अनटोल्ड ” का विमोचन किया गया। मोहिता तिवारी द्वारा रचित पुस्तक “हंड्रेड इयर्स ऑफ़ लखनऊ यूनिवर्सिटी- आ लिगेसी उनसेड, अनटोल्ड ” में लखनऊ विश्वविद्यालय के पिछले सौ वर्षों से सम्बंधित इतिहास के बारे में विस्तार से संकलन किया गया है। इस पुस्तक में कुछ दुर्लभ चित्रों का संकलन भी है जो आमतौर पर देखने को नहीं मिलता। इस सम्पूर्ण पुस्तक में शब्दों का सटीक चयन किया गया है। प्रोफेसर निशि पांडेय ने सबको धन्यवाद ज्ञापित किया।

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