डॉ दिलीप अग्निहोत्री

 

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपने पैतृक गांव की यात्रा में भारतीय संस्कृति व संविधान दोनों के प्रति सम्मान प्रदर्शित किया। उनका यह कार्य सहज व स्वभाविक रूप में लोगों को प्रभावित करने वाला था। वस्तुतः रामनाथ कोविंद ने अपने आचरण से ही इस सम्मान भाव को अभिव्यक्त किया था। झींझक रेलवे स्टेशन पर आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने अपने मित्रों को नाम लेकर संबोधित किया। जो लोग अब जीवित नहीं है,उनका स्मरण किया। राष्ट्रपति को अपना अतीत अपनी पृष्टभूमि पूरी तरह याद है। इसमें वह कुछ भी छिपाने का प्रयास नहीं करते। उनको भावुक होकर प्रकट करते है। वह अपने गांव के मंदिर में विधिवत पूजा अर्चना करते है। इतना ही नहीं मंदिर की व्यवस्था बढ़िया बनाये रखने में योगदान करते है। उन्होंने अपने घर और अपने द्वारा बनवाये गए विद्यालय को समाज हित में समर्पित कर दिया। संविधान निर्माताओं के प्रति सम्मान व्यक्त करते है। उन्होने कहा कि देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के कारण ही आज देश का प्रथम नागरिक हूं। आप सभी लोगों के प्यार व स्नेह से मुझे जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली। मेरी जीवन यात्रा में पुखरायां व कानपुर देहात की धरती एवं आप सभी लोगों का श्रेय है। हमारे जनतंत्र में अवसर की समानता को सुनिश्चित करते हुए स्वतंत्रता सेनानियों तथा संविधान निर्माताओं ने क्रान्तिकारी परिवर्तन किया है। इसके लिए उन्होंने भारतीय गणतंत्र के सभी निर्माताओं का सादर नमन किया।

आचरण में संस्कृति

राष्ट्रपति ने कहा कि हमारी भारतीय संस्कृति में मातृ देव भव, पितृ देव भव, आचार्य देव भव की शिक्षा दी जाती है। माता-पिता, गुरु और बड़ों का सम्मान करना अभी भी हमारी ग्रामीण संस्कृति में स्पष्ट रूप से दिखायी देता है। अपने प्रधानाध्यापक श्री शम्भूनाथ त्रिपाठी को याद करते हुए उन्होंने बताया कि श्री त्रिपाठी ने सीख दी थी कि अपने माता-पिता के पैर छूकर ही अपने कार्यों को प्रारम्भ करें। यह सीख आजीवन उन्हें प्रेरित करती रही है। उन्होंने अपने सहपाठियों को भी याद किया।

ऊर्जा का संचार

राम नाथ कोविन्द ने कहा कि ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ अर्थात जन्म देने वाली माता व जन्म भूमि का गौरव स्वर्ग से भी बढ़कर होता है। मेरे गांव की मिट्टी की खुशबू, मेरे गांव के निवासियों की यादें सदैव मेरे हृदय में विद्यमान रहती हैं। उन्होंने कहा कि अपनी मातृ भूमि पर आकर मुझे अत्यन्त खुशी हो रही है। इसकी मुझे काफी समय से प्रतीक्षा थी। इस यात्रा ने मेरे अंदर ऊर्जा का संचार किया है। राष्ट्रपति भवन देश की विरासत है। प्रत्येक देशवासी को उसे देखने का अधिकार है।

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