डॉ दिलीप अग्निहोत्री
संवैधानिक व गांधीवादी तरीके से विधायकों का राजभवन में धरना अनुचित नहीं कहा जा सकता। विशेषरूप में तब जबकि वहां के राज्यपाल को इसपर आपत्ति ना हो। लेकिन इस धरने व राजभवन घेरने की धमकी की पिछले उदाहरणों से तुलना नहीं हो सकती। 1993 में भैरो सिंह शेखावत के पक्ष में पूर्ण बहुमत था। तब भाजपा को बहुमत से छह सीट कम मिली थी। इक्कीस निर्दलीय चुनाव जीते थे। इनके सहयोग से वह बहुमत के आंकड़े को पार कर गई थी। तब राज्यपाल संविधान की भावना के अनुरूप निर्णय नहीं ले रहे थे। इसलिए भाजपा विधायकों को धरने के गांधीवादी मार्ग का अनुसरण करना पड़ा था। लखनऊ में जगदम्बिका पाल प्रकरण भी प्रसिद्ध है। तब राज्यपाल ने अल्पमत होने के बाद उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया था। बहुमत कल्याण सिंह के साथ था। इसलिए तब अटल बिहारी बाजपेयी ने भी गांधीवादी सत्याग्रह किया था।
स्पष्ट है कि जयपुर इस समय जो चल रहा है,उसकी तुलना इन उदाहरणों से नहीं की जा सकती। जबकि राज्यपाल ने कांग्रेस के विधायकों को राजभवन में प्रवेश की अनुमति दी। इतना ही नहीं उन्होंने धरना दे रहे विधायकों से मुलाकात भी की। इस प्रकार उन्होंने राजस्थान के संवैधानिक मुखिया का दायित्व निर्वाह किया। लेकिन मुख्यमंत्री के अशोक गहलोत के नेतृत्व में चल रही यह गतिविधि संविधान व गांधीवाद के अनुरूप नहीं है। जबकि अशोक गहलोत इन्हीं शब्दों की दुहाई दे रहे है। वह एक साथ राज्यपाल, प्रधानमंत्री,सहित कोर्ट को भी नसीहत दे रहे है। सत्ताईस जुलाई को बागी विधायकों के संबन्ध में कोर्ट का निर्णय संभावित है। ऐसा लग रहा है कि राज्यपाल इसकी प्रतीक्षा करना चाहते है। यह संविधान के अनुरूप विचार है।
कार्यपालिका,विधायिका के साथ न्यायपालिका शासन के अंग है। इन सबका अपनी अपनी जगह संवैधानिक महत्व है। कलराज मिश्रा का आचरण इसी के अनुरूप है। जबकि अशोक गहलोत का निशाना इसके विपरीत है। वह किसी प्रजातांत्रिक व संवैधानिक मान्यता के कारण विधानसभा अधिवेशन बुलाने को बेकरार नहीं है। बल्कि कांग्रेस अधिवेशन बुलाकर असन्तुष्ट विधायकों की सदस्यता रद्द कराना चाहती है। विधानसभा अध्यक्ष इसके लिए तैयार बैठे है। जिससे यह कहा जा सके कि यह सदन के भीतर अध्यक्ष का निर्णय है। इस पर कोर्ट को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। पिछले दिनों कोर्ट की टिप्पणी के बाद कांग्रेस ने अपना पैतरा बदला है।
इसके पहले उसकी तरफ से विधानसभा सत्र बुलाने की बात नहीं हो रही थी। कोर्ट ने कहा था कि प्रजातन्त्र में असहमति को भी महत्व मिलना चाहिए। इस टिप्पणी के बाद ही कांग्रेस आशंकित हुई है। क्योंकि उसके अनेक विधायक असहमति ही अभिव्यक्ति कर रहे है। राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस दो सौ सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को एक सौ सात और भाजपा को के बहत्तर सीट मिली थी।यदि उन्नीस बागी विधायकों को अयोग्य करार दिया जाता है,तो राज्य विधानसभा की मौजूदा प्रभावी संख्या घटकर एक सौ इक्यासी हो जाएगी। तब बहुमत साबित करने के लिए केवल इक्यानबे विधायकों की आवश्यकता रहेगी। अशोक गहलोत की नजर इसी पर है। जबकि राज्यपाल संविधान के अनुरूप निर्णय लेना चाहते है।