डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन
जीवन को सुरक्षित रखना राज्य का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है वैसे तो हर कोई अपने जीवन को बचाना चाहता है उसे सुरक्षित रखना चाहता है लेकिन हर व्यक्ति की व्यक्तिगत सीमाएं उतनी विस्तार में नहीं होती हैं कि वह हर स्थिति में अपनी सुरक्षा कर सके और इसी कारण से राज्य की संकल्पना में ऐसी स्थितियां जिसमें सामूहिक रूप से हजारों लोगों के जीवन का संकट हो उस स्थिति में मानवाधिकार की जिम्मेदारी राज्य की होती है और इसीलिए कोरोना विषाणु के संक्रमण से ग्रस्त विश्व के सभी देश दवा और वैक्सीन के अभाव में अपने देश की जनसंख्या या नागरिकों को बचाव के आधार पर सुरक्षित रखने का प्रयास कर रहे हैं जिसमें 2 गज की दूरी से बात करना मुंह पर मास्क लगाना हाथों को सैनिटाइज करने जैसी व्यवस्था है लेकिन सिर्फ नागरिकों से इस बात की अपेक्षा करना और राज्य की एजेंसी के रूप में सरकारी संस्थान सरकारी गाड़ियों सरकारी परिवहन हमें इस तरह की गंभीरता का ना होना समानता के मूल अधिकार का उल्लंघन है जो मानवाधिकार हनन के रूप में समझा जा सकता है इस तथ्य को एक बहुत ही अच्छे उदाहरण से भी समझ आ जा सकते हैं की एक व्यक्ति की मां की आंखों में मोतियाबिंद की समस्या उत्पन्न हो गई दोनों आंखों में मोतियाबिंद मां की उम्र 80 के आसपास और ऐसी स्थिति में आंखों का ऑपरेशन कराना अनिवार्य हो गया लेकिन वर्तमान में भारत जैसे देश में हर जगह कोरोना का एक ऐसा भय व्याप्त है कि जहां पर भी जाइए सबसे पहले इस बात का निर्धारण करना होता है कि आप कोरोना पॉजिटिव नहीं है।
डॉक्टर किसी भी व्यक्ति को देखता ही नहीं है जब तक कि उसके पास इस बात का प्रमाण ना हो कि वह को रोना ऋणत्मक है लेकिन नागरिकों से इस बात की अपेक्षा करने वाले डॉक्टर की क्लीनिक और स्वयं डॉक्टर द्वारा क्या अपनी क्लीनिक के किसी भी दीवार पर कहीं सार्वजनिक जगह पर या लगाया जाता है कि उसकी क्लीनिक के सारे डॉक्टर सारे नर्स कोरोना के टेस्ट से होकर गुजर गए हैं और उन्हें कोरोना पॉजिटिव होने के कोई लक्षण नहीं है क्या कहीं पर या लिखा रहता है कि क्लीनिक को पूरी तरह से वैज्ञानिक आधार पर सैनिटाइज किया गया है कभी भी किसी अस्पताल में सभी लोग मास्क लगाए हुए हाथों में ग्लब्स पहने हुए मिलते हैं संभवत ऐसा कुछ भी नहीं होता है जबकि या नागरिक का मौलिक अधिकार है यदि उसको अपने पास इसलिए नहीं आने देना चाहता है कि उसे कोरोना संक्रमण की संभावना हो सकती है तो समानता के अधिकार पर उस नागरिक को भी यह बात जानने का पूरा अधिकार होना चाहिए कि जिस डॉक्टर को दिखाना चाहता है वह भी को रोना पॉजिटिव ना होने का प्रमाण पत्र अपने पास रखें और उस प्रमाण पत्र को नागरिक को दिखाया जाना चाहिए। यह एक ऐसी जगह पर लगा होना चाहिए। इसको पढ़कर मरीज या जान सके कि जिस डॉक्टर को दिखा रहा है उसे को रोना नहीं है उसकी क्लीनिक नहीं है।
ऐसे ही सार्वजनिक स्थानों पर सरकारी दफ्तरों में काम करने वाले लोगों के भी टेस्ट को सैनिकों पर लगाना चाहिए ताकि समानता का मूल अधिकार वास्तविक अर्थ में स्थापित हो सके और सिर्फ एक तरफा मानवाधिकार ना दिखाई दे यह विडंबना है कि नागरिक के जीवन के प्रति हम लापरवाही को दिखाते हैं नागरिक से एक डॉक्टर अपना जीवन सुरक्षित चाहता है लेकिन डॉक्टर की क्लीनिक और वहां के लोगों द्वारा नागरिक को भी उसी प्रतिशत में अपने जीवन को सुरक्षित रखने का अधिकार प्राप्त होना चाहिए लेकिन क्या ऐसा कहीं पर होता है मोतियाबिंद वाली महिला को डॉक्टर के आने पर जब इस बात को मानवाधिकार के दायरे में रखा गया और उसके तीन इक्के लोग कोई प्रमाण पत्र उपलब्ध कराने में असफल रहे बल्कि उनका यह कहना कि यदि आप नहीं चाहते हैं तो आप मत दिखाइए जिससे साबित होता है कि नागरिक की जीवन और उसकी गरिमा को लेकर कार्य करने वाले लोग इतने संवेदनशील नहीं हैं जितना वह स्वयं अपने जीवन के लिए संवेदनशील होते हैं और मानव अधिकार की अवहेलना के प्रकाश में इस तरह के विमर्श कि आज सबसे ज्यादा आवश्यकता है