वाराणसी से आलोक दूबे, समाजसेवी के कलम से……..
इस करोना के विपदा के दो कठिन महीने कैसे गुजरे और आगे कैसे गुजरेंगे, यह अपने आप मे एक युद्ध सरिखा ही है, जिसमे बेवजह हाथ पैर मारने और कुछ भी न करके अपनी और सब की मदद करने का शासकीय आदेश है। क्या ऐसे शासकीय और सामाजिक आदेश की कल्पना भी इसके पहले किसी ने की होगी ?
लेकिन ऐसा हो रहा है।
प्रत्येक काम की चिंता करनी है बस करना कुछ नही है। जो नुकसान हो रहा है होने देना है, घर से बाहर नही निकलना है। बस घर मे पड़े पड़े हो रहे सारे नुकसान को जोडना है और फ़िर सब भगवान पर छोड़ कर खाना खा कर सो जाने के अलावा कोई रास्ता नही है।
जिस समय की कल्पना भी सम्भव नही थी वह आज हक़िक़त है।
ऐसे मे एक ईश्वरीय वरदान जो की अपनी पौत्रि #नायसा के रुप मे हमे प्राप्त हुई है, उसका साथ प्राप्त हूआ।उसने हम सबको इस कठिन समय से उबरने मे जबरदस्त मदद की।
इस अकेली छोटी से जान ने हम सब को कभी भी अकेलापन, उदासी का सामना नही करने दिया व अन्य सभी सम्भावित विपरीत परिस्थितयों से दूर रखा।
ईश्वर से प्रार्थना है वह अपना आशीर्वाद अपने इस खुबसूरत सृजन/रचना पर सदैव बनाये रखें ताकी वह दुनिया के सभी गुणों से सुसज्जित हो एक महान व्यक्तित्व के रुप मे स्थापित हो सके