डॉ दिलीप अग्निहोत्री

 

कृषि विधेयकों के विरोध में विपक्ष ने भारत बंद तो किया,लेकिन कहीं से भी पिछली व्यवस्था की खूबियां सुनाई नहीं दी। भाषण,नारेबाजी और ट्वीट खूब हुए,लेकिन किसी ने यह नहीं बताया कि वह पुरानी व्यवस्था को बचाने हेतु इतना बेकरार क्यों है। इसका क्या निहितार्थ निकाला जाए,क्या उनके पास पुरानी व्यवस्था की अच्छाइयां बताने के लिए कुछ नहीं था। किसी ने यह नहीं कहा कि पुरानी व्यवस्था में किसान खुशहाल थे। इसलिए वह सुधारों के विरोध कर रहे है। जबकि सुधार तथ्यों पर आधारित थे,प्रमाणित थे। लेकिन इसका विरोध कल्पनाओं पर आधारित था। मात्र कल्पना के आधार पर भारत बंद किया गया। सरकार के विरोध में विपक्ष ने अपने हितों का भी ध्यान नहीं रखा। सत्ता पक्ष ने उनको बिचौलियों के बचाव हेतु परेशान बताया। क्योंकि विधेयकों के माध्यम से बिचौलियों को ही दूर किया गया। मंडियां समाप्त नहीं होंगी, न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी रहेगा,किसानों को अपनी मर्जी से उपज बेचने का अधिकार मिला। ऐसे में विरोध का कोई औचित्य या आधार ही नहीं था। इस प्रकार के मुद्दे उठाने का विपक्ष को पहले भी नुकसान उठाना पड़ा है,एक बार फिर इसी की संभावना है। भारत बंद और विरोध में सर्वाधिक मुखर दलों को सत्ता में रहने का अवसर मिलता रहा है। कांग्रेस आज भी कई प्रदेशों की सत्ता में है। नरेंद्र मोदी सरकार के ठीक पहले कांग्रेस की केंद्र में सरकार थी। ऐसी सभी पार्टियों को तो किसान हित पर बोलने का अधिकार ही नहीं है। दस वर्षों में एक बार किसानों की कर्ज माफी मात्र से कोई किसान हितैषी नहीं हो जाता। आज हंगामा करने वाली पार्टियां स्वयं जबाबदेह है। उनको बताना चाहिए कि पुरानी व्यवस्था के माध्यम से उन्होंने किसानों को कितना लाभान्वित किया था, उन्हें बताना चाहिए कि क्या उस व्यवस्था में बिचौलिओं की भूमिका नहीं थी। इसके बाबजूद क्या सभी किसानों की उपज मंडी में खरीद ली जाती था। स्वामीनाथन समिति का गठन यूपीए सरकार ने किया था। उसकी सिफारिसों पर मोदी सरकार अमल कर रही है। कुछ दिन पहले कांग्रेस सवाल करती थी कि स्वामीनाथन रिपोर्ट कब लागू होगी। सरकार अमल कर रही है तो हंगामा किया जा रहा है। यह दोहरा आचरण कांग्रेस के लिए हानिकारक है।

अंततः राष्ट्रपति ने कृषि विधेयकों को अनुमति प्रदान कर दी। इस प्रकार इन्हें कानून का दर्जा प्राप्त हुआ। राष्ट्रपति इन दोनों विधेयकों को पुनर्विचार हेतु एक बार संसद को वापस भेज सकते थे। विपक्षी पार्टियों ने इस संबन्ध में उनको ज्ञापन भी दिया था। लेकिन राष्ट्रपति ने विचार के बाद इनको किसानों के लिए उपयोगी समझा। जाहिर है कि विपक्ष पिछली व्यवस्था के लाभ बताने की स्थिति में नहीं है। वह आंदोलन कर रहा है। भाषण और बयान चल रहे है,किसानों के हित की दुहाई दी जा रही है,लेकिन कोई यह नहीं बता रहा है कि अब तक चल रही व्यवस्था में किसानों को क्या लाभ मिल रहा था,कोई यह नहीं बता रहा है कि कितने प्रतिशत कृषि उत्पाद की खरीद मंडियों में होती थी,कोई यह नहीं बता रहा है कि पिछली व्यवस्था में बिचौलियों की क्या भूमिका थी,कोई यह नहीं बता रहा है कि कृषि उपज का वास्तविक मुनाफा किसान की जगह कौन उठा रहा था। विपक्ष इन सबका जबाब देता तो स्थिति स्पष्ट होती। लेकिन उसका विरोध कल्पना आधारित है। कहा जा रहा है कि किसान बर्बाद हो जाएंगे, बड़ी कम्पनियां उनके खेतों पर कब्जा कर लेंगी,अंग्रेजों की तरह उनसे नील का उत्पादन कराएंगी,खेत बर्बाद हो जाएंगे,आदि। कोई कह रहा है कि खेतों पर अम्बानी,अडानी का अधिकार हो जाएगा। जैसे पिछली सरकारों में ये दोनों कटोरा लेकर घूमते थे, पिछले छह वर्षो में मालामाल हो गए। रिलायंस संस्थापक धीरू भाई का साम्राज्य इंदिरा गांधी के समय में जड़ें जमा चुका था। फिर कभी उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। गुजरात में अडानी को जो जमीन मिली उसमें करीब दो तिहाई कांग्रेस सरकार के दौरान नसीब हुई थी। इसके एक अन्य पहलू पर भी विचार करना होगा। कोई भी सरकार कितने प्रतिशत लोगों को सरकारी नौकरी दे सकती है,आज रोजगार के लिए आंदोलन करने वाले इसका जबाब दे सकते है। पांच या दस वर्ष के शासन में उन्होंने कितने लोगों को रोजगार दिए थे। इसमें भी जाति विशेष की बात ज्यादा अप्रिय लग सकती है। देश के सत्तानबे प्रतिशत लोग तो निजी व्यापार निजी कंपनियों में रोजगार व कृषि पर ही जीवन यापन कर रहे है। इन सत्तानवे प्रतिशत पर भी ध्यान रखने की आवश्यकता है।

कृषि विधयकों का उद्देश्य यही थी। पुरानी व्यवस्था में अनेक कमियां थी। इसमें किसानों पर ही बन्धन थे,वही परेशान होते थे। इस व्यवस्था में वह लोग लाभ उठा रहे थे,जो किसान नहीं थे। वह किसानों की तरह मेहनत नहीं करते थे,उन्हें फसल पर मौसम की मार से कोई लेना देना नहीं था।

ऐसे में इस आंदोलन से किसका लाभ हो सकता है। आंदोलन किसके बचाव हेतु चल रहा है। इसमें किसानों का हित नजरअंदाज किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो पुरानी व्यवस्था में लाभ उठाने वालों के गिरोह का उल्लेख किया है। कहा कि देश में अब तक उपज और बिक्री के बीच में ताकतवर गिरोह पैदा हो गए थे। यह किसानों की मजबूरी का फायदा उठा रहे थे। जबकि इस कानून के आने से किसान अपनी मर्जी और फसल दोनों के मालिक होंगे। उन्होंने देश के किसानों को आश्वस्त किया कि देश में न तो न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म होगा न ही कृषि मंडियां समाप्त होंगी। कांग्रेस किसानों को भ्रमित कर रही है। कांग्रेस ने शुरू से ही देश के किसानों को कानून के नाम पर अनेक बंधनों से जकड़ रखा है। आज तक किसानों के हित में कोई फैसला नहीं लिया। आज जब कृषि सुधार के प्रयास किए जा रहे हैं तो किसानों को गुमराह किया जा रहा है। देश में एमएसपी अनवरत जारी है। फसल मंडियां अपनी जगह यथावत है।

लेकिन कांग्रेस पार्टी किसानों को यह कह कर गुमराह कर रही है कि एमएसपी खत्म हो जाएगी। मंडियों को खत्म कर दिया जाएगा। मोदी ने कहा कि देश के किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उनकी सरकार प्रयास निरंतर जारी रहेंगे। संसद ने किसानों को अधिकार देनेवाले बहुत ही ऐतिहासिक कानून पारित किया है। यह कृषि सुधार इक्कीसवीं सदी के भारत की जरूरत है।

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