सलिल पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार, मिर्जापुर.

मिर्जापुर । पितृपक्ष 2 से शुरू होकर 17 सितंबर ’20 तक है। इस अवधि में प्रायः श्राद्ध, दान, बाल-दाढ़ी न कटवाना, भगवान गाय, पक्षी आदि के लिए अग्राशन (खाने के पहले निकाला गया भोज्यपदार्थ) देते हैं तो भी लेकिन यह सब व्यर्थ है और इसका कोई लाभ नहीं मिलने वाला है ।

क्यों?

यदि माता-पिता और उनसे ऊपर की पीढ़ी की उपेक्षा की जा रही है।

घर के वृद्ध सदस्य जो अशक्त हो गए हैं, एक गिलास पानी मांग रहे हैं और उन्हें झटकार-फटकार कर किसी मंदिर में पुजारी को हलवा-पूड़ी खिलाने जा रहे हैं तो फिर ऐसी श्रद्धा व्यर्थ हैं बल्कि यह पुण्य को नष्ट करने वाला है।

अपने, पत्नी, पत्नी के माता-पिता को उत्तम खान-पान की व्यवस्था कर रहे हैं और माता-पिता को बासी-तिबासी तो यह और भी अक्षम्य अपराध है। इसका दण्ड अगली पीढ़ी को भुगतना पड़ेगा ।

आलीशान भवन का नाम पितृ-छाया, मातृछाया है और उन्हें वृद्धाश्रण में पहुंचा दिया है तो इस तरह के भवन-महल कालकोठरी हैं और ऐसे घर में अशांति, छल-छद्म, तिकड़म, धोखा आकर बस जाते हैं। वास्तुशास्त्र के अनुसार बना मकान उन्नति के काम नहीं आएगा।

परजीवी हैं तो- इस स्थिति में पितरों को कष्ट मिलता है। दूसरों का अन्न खाने, दूसरों की दया-कृपा के धन से जीने, दूसरों के धन हड़प लेने, दूसरों के कंधे पर बैठकर अपने स्वार्थ सिद्धि में लगे रहने, सिर्फ निंदा-चुगली में लगे संतानों को देखकर पितरों को अत्यधिक पीड़ा पहुँचती है। अतः ऐसे लोग श्राद्ध करते भी हैं तो वह व्यर्थ है। यदि सच में कृपा चाहते हैं तो जीवन सकारात्मक बनाना चाहिए।
सलिल पांडेय, मिर्जापुर।

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