डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन

 

90 के दशक में अमेरिका की राजधानी निवारक में एक महिला संगठन द्वारा क्राई नाम का एक आंदोलन चलाया इस आंदोलन के पीछे यह उद्देश्य था कि जब पृथ्वी पर सभी जीव जंतु प्राकृतिक रूप से अपने बच्चों को जन्म दे लेते हैं तो फिर महिला के लिए इस बात का संस्कृति के दायरे में क्यों प्रचलन किया गया कि बिना ऑपरेशन के बच्चा नहीं पैदा हो सकता या भी महिला के शरीर के साथ एक धोखा है उसके शरीर के साथ छेड़छाड़ है लेकिन यह आंदोलन वैश्विक स्तर पर कोई स्थान नहीं बना सका क्योंकि महिलाओं को अपने शरीर को लेकर इस तरह की जागरूकता जगाने के लिए जिस तरह के मानसिक और शैक्षिक विकास की आवश्यकता है वह अभी विश्व में बहुत ज्यादा नहीं है ऐसा नहीं है इसी परंपरा को रूस जैसे देश में यह मानकर कि बच्चा मां के पेट में एक विशिष्ट तरह के द्रव में रहता है इसलिए ही बच्चे का जन्म यदि पानी के भीतर कराया जाए तो प्राकृतिक तरीके से बच्चों को जन्म दिया जा सकता है और चुकी दोनों ही स्थितियों में माध्यम द्रव ही होगा इसलिए बच्चे का विकास भी अच्छा होगा और इसीलिए वहां पर बच्चों के जन्म देने में मां को पानी वाले वातावरण में रखा गया और उसमें भी सफलता मिली लेकिन ऑपरेशन से बच्चा पैदा करने वाली स्थिति में कोई बहुत बड़ा सुधार नहीं किया जा सका भारत जैसे देश में यह एक प्रचलन सा चल पड़ा है कि बच्चे को जन्म देने की प्रक्रिया में मां को अच्छी देखभाल के नाम पर डॉक्टर के यहां जाने का जिस तरह से प्रचलन बढ़ा उस प्रचलन ने समानांतर में इस समस्या को भी बढ़ावा दिया इस ज्यादातर स्थितियों में डॉक्टर द्वारा या बताया जाता है कि गर्भ के बच्चे के गले में गर्भनाल फस गई है या फिर बच्चा गर्भ में जिस द्रव में रहता है जिसे एमनीओटिक फ्लूइड कहते हैं वह शरीर से ज्यादा निकल गया है या इसके अतिरिक्त बच्चे में कोई भी गति नहीं हो रही है जिसके कारण बच्चा गर्भ में फंस गया है इसलिए ऑपरेशन करना जरूरी बताया जाता है।

वैसे भी विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 4300 महिलाएं प्रतिवर्ष गर्भ के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव के कारण मर जाती हैं।

इसलिए डॉक्टरों के द्वारा इन तथ्यों को बताए जाने पर उस पर महिलाओं द्वारा विश्वास करके उनके परिवारों द्वारा महिला की जीवन की सुरक्षा को ध्यान में रखने के आधार पर ऑपरेशन के अलावा कोई विकल्प ही नहीं दिखाया जाता है जबकि इस बात पर भी एक विमर्श की आवश्यकता है कि यदि बच्चे का गर्भ में द्रव रहे ही नहीं गया है तो फिर बच्चा अंदर जीवित कैसे हैं आखिर वह कौन सी स्थिति है जिसमें गर्भनाल फस जाती है इन स्थितियों का विश्लेषण करने पर भी एक बड़ी रोचक बात सामने आती है वह है कि ज्यादातर लोगों को यही नहीं पता होता है कि गर्भ में बच्चा होता कैसे उसका सिर किस तरफ होता है उसका पैर किस तरफ होता है बच्चा क्षैतिज रूप से बढ़ता है या ऊर्ध्व रूप से बढ़ता है इसके अतिरिक्त जैसे खड़ी हुई कोई भी मोटर गाड़ी है साइकिल अपनी सामान्य गति में नहीं चल पाती है ज्यादा दिन खड़े रहने पर उसके कलपुर्जे जाम हो जाते हैं ठीक उसी तरह से गर्भधारण के बाद महिला द्वारा वर्तमान में आधुनिकता की परिभाषा में ज्यादातर कामों को करना छोड़ दिया जाना इस बात की संभावना ज्यादा पैदा कर देता है कि मांस पेशियों का सजाती हैं खड़ी हो जाती हैं जिसको शिवानी के उपन्यास कृष्ण कली में भी बहुत अच्छी तरीके से समझाया गया है प्रत्येक महिला को इस उपन्यास को भी पढ़ना चाहिए लेकिन मानवाधिकार के दायरे में जब जीवन जीने के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए डॉक्टर द्वारा गर्भवती महिला को ऑपरेशन का विकल्प प्रस्तुत किया जाता है तो उसके साथ-साथ पाश्चात्य देशों की तरह डॉक्टर को उनके परिवार और गर्भवती महिला को यह भी बताना चाहिए कि क्या कारण है कि महिला के शरीर में प्रसव पीड़ा को पैदा करने के लिए जिम्मेदार हार्मोन उस मात्रा में नहीं निकल रहा है जिससे बच्चा सहजता से पैदा हो सके इसके लिए gossypium नामक हार्मोन होता है जो प्रसव पीड़ा पैदा करके बच्चे को बाहर की दुनिया की तरफ आने के लिए प्रेरित करता है इसी के साथ-साथ रिलैक्सिंग नाम का भी एक हार्मोन होता है जिसके कारण बच्चा गति करता है और उसका सिर बाहर की ओर उन्मुख हो जाता है लेकिन क्या कारण है कि यह दोनों हार्मोन भी गर्भवती महिला में नहीं पर्याप्त रूप से निकलते हैं क्या यह एक विस्मयकारी स्थिति नहीं है कि एक महिला की सारी स्थितियां नकारात्मक हो जाती हैं या इसके पीछे भी एक सोची-समझी योजनाएं चल रही हैं।

वैश्विक स्तर पर मेडिकल साइंस और पूंजीवादी व्यवस्था ने महिला को सिर्फ एक ऐसा मानव संसाधन मान लिया है। जिससे एक अच्छी रकम पैदा की जा सकती है इस बात की भी संभावना हो सकती है कि स्वस्थ बच्चे के नाम पर महिला के जीवन की सुरक्षा के नाम पर लगातार उन्हें गर्भधारण करने के बाद ऐसी दवाएं दी जा रही हूं जिनमें उपस्थित साल्ट के द्वारा यह दोनों हार्मोन धीरे धीरे काम करना बंद कर देते हो जिसके कारण दूसरी और भी स्थितियां कठिन हो जाती हो और ऑपरेशन के अलावा कोई विकल्प ही ना बचता हो निश्चित रूप से या महिला के शरीर के साथ एक गंभीर योजनाबद्ध मानवाधिकार उल्लंघन है जिस पर सोचने की आवश्यकता है इस पर कार्य करने की आवश्यकता है कि जब से आधुनिक चिकित्सा व्यवस्था में महिलाएं अपने गर्भ धारण करने के बाद की स्थिति में जीवन जीने के अधिकार को सुनिश्चित करने लगी तब से ऑपरेशन कराने की बाढ़ सी जैसे आ गई है क्या इसके पीछे कोई योजना ऐसी प्रक्रिया चल रही है जॉब गर्व के साथ खिलवाड़ कर रही है जो गर्व के हार्मोन के साथ कोई ऐसा कुचक्र चला रही है जिससे प्राकृतिक रूप से पैदा होने वाला बच्चा बिना ऑपरेशन के दुनिया में आ ही ना सके इसलिए महिला के गर्भ धारण करने के समय दी जाने वाली सारी दवाओं में महिला के गर्भ नाल amniotic fluid हार्मोन पर उसका क्या असर पड़ रहा है इसका विश्लेषण किया जाना आवश्यक है ताकि वास्तव में महिला के गरिमा पूर्ण जीवन का विस्तार हो सके और ऑपरेशन के बाद महिला के शरीर में उत्पन्न होने वाली दूसरी विषमताओं से उन्हें बचाया जा सके जिस प्रकृति ने बिना किसी चीर फाड़ के मां बनने का गुण महिला को प्रदान किया था वह सिर्फ चिकित्सा व्यवस्था में छिन्न-भिन्न होने लगा है और कटे-फटे शरीर में सब कुछ फिर उसी तरह सामान्य नहीं रह जाता है जैसे एक प्राकृतिक शरीर में होता है और इसे भी मानवाधिकार उल्लंघन के रूप में देखा जाना चाहिए समझा जाना चाहिए और इस पर गंभीर विमर्श होना चाहिए

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