डॉ दिलीप अग्निहोत्री
विजय दशमी के दिन मात्र रावण का पराभव नहीं हुआ था। बल्कि इसके माध्यम से भारतीय संस्कृति का उद्घोष भी हुआ था। जिसमें युद्ध को अंतिम विकल्प के रुप में मान्यता दी गई। यह भी अन्याय,असत्य व अधर्म के विरुद्ध हो सकता था। रावण आसुरी शक्ति का प्रतीक था। प्रभु राम ने उसका वध किया। लेकिन विजय के बाद लंका की प्रजा या महिलाओं पर कोई अत्याचार नहीं किया गया। किसी के मत पंथ उपासना पद्धति का अपमान नहीं किया गया। लंका बहुत सम्पन्न राज्य था। लेकिन श्री राम ने वहां अपना साम्राज्य स्थापित नहीं किया। उन्होंने रावण के भाई विभीषण को राज्य का उत्तराधिकार दिया। भारत की यह वैचारिक अवधारण आज तक कायम है।
भारत ने अपनी तरफ से किसी देश पर आक्रमण नहीं किया। लेकिन दुश्मन देशों ने युद्ध जैसी स्थिति बनाई तो उसे मुहतोड़ जबाब दिया गया। शांति के लिए शक्ति की उपासना का विधान है। भारत का शक्तिशाली होना विश्व शांति के लिए आवश्यक है। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने पिछली विजय दशमी पर फ्रांस में राफेल लड़ाकू विमान का पूजन किया था। इसके माध्यम से भी दुनिया को यही सन्देश दिया गया था। राजनाथ सिंह कहा कि शस्त्रपूजन भारत की सैन्य परम्परा का अभिन्न अंग है। उन्होंने विजयादशमी के पावन अवसर पर त्रिशक्ति कोर के सुखना स्थित मुख्यालय में आयोजित शस्त्रपूजन किया।