डॉ आलोक चांटिया अखिल भारतीय अधिकार संगठन

ईशा से 5 शताब्दी पूर्व भारतीय आयुर्वेद के प्रणेता सुश्रुत ने मूत्र में शर्करा के होने की बात कही थी और उसका उपचार भी बताया था लेकिन वैश्विक परिदृश्य में सदैव ही आधुनिक चिकित्सा पद्धति में जब कोई बात कही जाती है या स्वीकार की जाती है तभी से उसकी खोज और उसके प्रकारों की सत्यता को प्रमाणिक माना जाता है यही कारण है कि वैश्विक स्तर पर जब भी मधुमेह की बात आती है तो आधुनिक चिकित्सा पद्धति को ही सर्वोपरि मानते हुए इस बात को स्वीकार किया जाता है कि 1775 में पहली बार मैथ्यू डॉब सन यह जाना गया कि व्यक्ति के मूत्र में ही सिर्फ शर्करा नहीं होती बल्कि रक्त में भी शर्करा की मात्रा एक निश्चित से ज्यादा हो जाती है तो उसे डायबिटीज कहते हैं आज यह शब्द डायबिटीज मेलिटस कहलाता है डायबिटीज जहां एक यूनानी शब्द है जिसका मतलब प्रवाह होता है वही मेल इटस का मतलब मधु होता है लेकिन जिस तरह से मद मेन इतना विस्तार किया है उसमें बच्चों का जीवन भी खतरे में दिखाई देने लगा है अब 5 साल का बच्चा भी इंसुलिन लगाकर स्कूल जाता है वैसे तो हाइपोग्लाइसीमिया जैसा रोग बच्चों के पैदा होने पर भी देखा जाता है लेकिन धीरे-धीरे जिस तरह से यह रोग बच्चों में विस्तार कर रहा है क्योंकि आज के दौर में बच्चे को अकाल प्रौढ़ शिक्षा का परिचय देना होता है उसे अपने नन्हे से बचपन में ही या जान लेना होता है कि वह 20 साल बाद क्या करेगा और उसका बोझ जब लेकर आगे बढ़ता है तो इतना चाहते हुए भी उसके शरीर में बहुत सी अनियमितताएं पैदा हो जाती हैं जिसमें से मधुमेह अभी एक प्रमुख कारण है आज मधुमेह की स्थिति उस दिशा की ओर बढ़ गई है जहां पर विश्व में भारत दूसरे नंबर पर खड़ा है और 1925 में वह मधुमेह की राजधानी विश्व के लिए बन जाएगा इसलिए विश्व मधुमेह दिवस पर सतर्क होने की आवश्यकता है

वैसे तो 1958 में सिंगर ने इंसुलिन की संरचना के बारे में बता दिया था और इस पर उन्हें नोबेल प्राइज भी मिल गया था लेकिन 14 नवंबर को यह दिवस इसलिए महत्वपूर्ण बन गया क्योंकि इंसुलिन इंजेक्शन को 1921 में बैटिंग द्वारा बनाया गया था और बाद में उन्हीं के जन्मदिन पर प्रत्येक 14 नवंबर को विश्व मधुमेह दिवस मनाया जाने लगा करो ना जैसी महामारी के चलते हुए करो ना काल में सबसे ज्यादा खतरा जिस तरह के लोगों को करुणा से था वह मधुमेह के रोगी थे क्योंकि इसके रोगी को आंख किडनी की समस्या आसानी से हो जाती है अंधे होने जैसा रोग भी अमेरिका में सबसे ज्यादा डायबिटीज के कारण ही होता है ऐसी स्थिति में भारत में डायबिटीज से प्रभावित लोगों की संवेदनशीलता कितना है यह आसानी से जाना जा सकता है करुणा काल के दौरान लगभग 6700000 लोगों की जाने डायबिटीज के कारण गई जो अब तक होने वाली मौतों में सबसे ज्यादा है वैसे हर साल लगभग विश्व में करीब 4000000 लोग मधुमेह के रोग से मर जाते हैं इसी कारण से वर्ष 2021 से 23 तक के लिए मधुमेह दिवस की थीम रखी गई है मधुमेह का उपचार आसान हो अगर अभी नहीं तो कब और इस टीम का उद्देश इसीलिए रखा गया है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को मधुमेह के प्रति जागरूक बनाया जाए और उसके प्रति संवेदनशील बनाया जाए बहुत से लोगों को अपने सामान्य जीवन में है पता ही नहीं चल पाता है कि वह हम मधुमेह के रोगी हो गए हैं उन्हें जब कमजोरी लगती है उनका वजन घटता है तो वह उसे दूसरे कारणों से जोड़कर देखने लगते हैं और भारत जैसे देश में जहां 80% जनसंख्या गांवों में रहती है वहां पर इस बात की संभावना ज्यादा है कि लोगों को स्वास्थ्य संबंधी ज्ञान हो ही ना और इस बात को इसी से समझा जा सकता है कि आज विश्व स्तर पर करीब 966 अरब डालर मधुमेह पर खर्च किया जाता है यह तथ्य आईडीएफ द्वारा उजागर किया गया है यह विडंबना ही है कि हम कोरोना को लेकर संवेदनशील है हम हृदय की बीमारी को लेकर संवेदनशील है हम कैंसर को लेकर संवेदनशील है लेकिन हम यह जान ही नहीं पाते हैं कि हमारे शरीर में चोरी से जो लोग अपना जगह बना रहा है उस मधुमेह को भी जानना जरूरी है यह सामान्य जानकारी सभी को होनी चाहिए कि शरीर में इंसुलिन को बनाने वाला जो अंग है उसे अग्न्याशय या पैंक्रियास कहते हैं जिनकी लैंगर हैंस कि दीपिका में इंसुलिन का निर्माण होता है वैसे तो यह जानकारी भी आवश्यक है कि इंसुलिन के लिए आवश्यक बीटा सेल का निर्माण लीवर में होता है इसलिए यदि लीवर स्वस्थ है तो मधुमेह के रोग से बचा जा सकता है अध्ययनों से यह भी प्रमाणित हो चुका है कि मधुमेह दो तरीके के होते हैं जिन्हें डायबिटीज टाइप वन टाइप टू कहा जाता है जहां पर टाइप वन में शरीर में इंसुलिन का बनना ही बंद हो जाता है वही टाइप टू में शरीर में इंसुलिन बनता तो है लेकिन उसकी मात्रा उतनी नहीं होती जितनी शरीर को आवश्यकता होती है बनने वाली इंसुलिन खाद्य पदार्थों से मिलने वाले ग्लूकोस को ग्लाइकोजन में बदलकर संरक्षित कर लेती है जो आवश्यकता पड़ने पर शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है अध्ययनों से यह भी स्थापित हो चुका है कि जिन लोगों को मधुमेह का रोग होता है उनके रक्त में फोलेस्टैटिन प्लाज्मा ज्यादा पाया जाता है जो शरीर में फैट को तोड़ने का काम करता है अब आप समझ गए होंगे कि मधुमेह के रोगी दुबले क्यों हो जाते हैं यह आवश्यकता से ज्यादा पाया जाने वाला प्लाज्मा शरीर में वसा को अत्यधिक तोड़ देता है यह वसा लीवर में जाकर एकत्र होने लगता है और अतिरिक्त वसा के एकत्र होने के कारण फैटी लीवर जैसी समस्या पैदा हो जाती है इसलिए व्यक्ति को इस बात को समझने की आवश्यकता है कि वह ज्यादा से ज्यादा शारीरिक श्रम करें केवल बैठकर काम ना करें चिंता में बिल्कुल ना रहे क्योंकि जैसे पृथ्वी पर सभी मनुष्य रंग रूप कद काठी में एक जगह से नहीं है ऐसे उनके जीवन में सभी की आवश्यकताएं भी अलग-अलग है संतोषम परम सुखम के दर्शन को मानते हुए प्रत्येक व्यक्ति को अपनी परिस्थितियों और स्थितियों में इस बात को सोचकर कार्य करना चाहिए कि उसके अंदर जितनी ऊर्जा है उसके सापेक्ष उसको वह मिल रहा है जैसे एक दीपक की रोशनी में खाना नहीं बनाया जा सकता है यदि व्यक्ति की क्षमताएं अवसर परिस्थितियां एक दीपक की तरह है तो उसका परिणाम भी दीपक की ऊर्जा के अनुरूप ही आएगा इसको लेकर न कुंठा का शिकार होना चाहिए नवसाद में जाना चाहिए इसीलिए भारतीय दर्शन में कहा गया है कि जो भी होता है भगवान की मर्जी से होता है ताकि हम तनाव मुक्त जीवन जी सकें हम जितना तनाव मुक्त रहेंगे हम मधुमेह से उतना ही दूर रहेंगे क्योंकि मधुमेह के रोगियों की शरण में आने के बाद व्यक्ति को आई हेमरेज हो सकता है वह अंधा हो सकता है उसका रक्त गाढ़ा हो सकता है जिससे उसको हृदयाघात हो सकता है किडनी फेल हो सकती है लिवर फैटी हो सकता है लेकिन इन सब से बचा जा सकता है क्योंकि भारतीय दर्शन में भी कहा गया है कि बच्चे भगवान की मूरत होते हैं और पाश्चात्य दर्शन में भी कहा गया है चाइल्ड इस द फादर ऑफ मैन दोनों ही स्थितियों में वह बच्चा एक प्रौढ़ व्यक्ति की तरह होता है जो सब कुछ समझ सकता है यही कारण है कि बचपन से ही बच्चे को आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ अपनी परिस्थितियों और अपनी क्षमताओं में रहते हुए किस तरह आनंद को जीवन दिया जाए इसकी भी शिक्षा देना जरूरी है क्योंकि इसका सीधा संबंध मधुमेह से होता है वैसे तो मधुमेह की जांच करके भी व्यक्ति है जान लेता है कि उसके शरीर में शर्करा की मात्रा कितनी है यह भी दो तरीके का होता है पहली जांच को फास्टिंग कहते हैं जिसमें व्यक्ति रात में सोने के बाद जब सुबह उठता है तो उसका रक्त लिया जाता है और उसकी जांच की जाती के रक्त में कितनी शर्करा है यह शर्करा हंड्रेड मिलीग्राम होनी चाहिए लेकिन दूसरी जांच को पी पी या पोस्ट पिरीडियम जांच कहते हैं और इसका स्तर और मानक 140 के आसपास मिलीग्राम होना चाहिए यदि इन मानकों से ऊपर रक्त में शुगर है तो आप मधुमेह के रोगी हो सकते हैं थोड़ा सा ही अस्तर उठा होने पर सिर्फ शारीरिक श्रम करके आप उसे नियंत्रित कर सकते कोई दवा लेने की आवश्यकता नहीं है एक और जांच होती प्रत्येक 3 महीने को जिसको एचबीसी जांच कहते हैं और यदि इसका रिजल्ट 6.5 आता है तो व्यक्ति को स्वास्थ्य माना जाता है लेकिन यदि उससे ज्यादा कमान आता है तो इसका मतलब है कि व्यक्ति लगातार मधुमेह के रोग से ग्रसित रह रहा है और इसके लिए उसे दवा लेने की आवश्यकता पड़ती है चाहे आयुर्वेद हो चाहे होम्योपैथ हो चाहे एलोपैथ हो सभी पैथी में मधुमेह का इलाज दिया गया है लेकिन सर्वश्रेष्ठ इलाज व्यक्ति के स्वयं का अनुशासन है जो उसे यह मानकर स्वीकार करना चाहिए कि जीवन नश्वर है भगवान ने हमें जो दिया है वह पर्याप्त है ज्यादातर मधुमेह की समस्या तनाव के कारण बढ़ रही है अवसाद के कारण बढ़ रही है जटिल जीवन पद्धति के कारण बढ़ रही है और ऐसा करके आप अपना ही नहीं आने वाले पीढ़ी का नुकसान कर रहे हैं उस बच्चे के भविष्य को अंधकारमय बना रहे हैं जो आप के सहारे इस दुनिया में आया है उसके बाल दिवस को आप अंधकार में ना बनाएं और उसे भी मुस्कुराने का पूर्ण मौका दें भविष्य उसका सुंदर हो इसके लिए जरूरी है कि आप मधुमेह के बारे में उतने ही संवेदनशील हो जितना भौतिक जीवन के लिए आप संवेदनशील है सभी विश्व मधुमेह दिवस की सार्थकता है और उसमें बाल दिवस से होकर निकलने वाले पूर्ण स्वरूप को देखा जा सकता है जो आने वाले समय में एक स्वस्थ राष्ट्र और विश्व का निर्माण कर सकते हैं

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