के के उपाध्याय, पूर्व सम्पादक हिन्दूस्तान
गंगा बह रही है । हज़ारों सालों से । अविरल । अविचलित । निर्बाध । गंगा हमारे प्राणों में है। गंगा सिर्फ सदानीरा नहीं है । यह हमारी विरासत है । हमारी साँसों का स्पंदन है । वेद -पुराण भरे पड़े हैं इसके महात्म्य से । न जाने कितने क़िस्से है। न जाने कितने गीत है। न जाने कितनी बातें है । गंगा ने देखें है। बदलते इतिहास। रक्तरंजित युद्ध । हज़ारों सालों से बह रही है । पर यह बुढ़ी नहीं हुई । इसकी चाल आज भी मदमस्त है । जब हिलोरें लेती है तो मन भी हिलोरें लेता है । देवता का श्रृंगार यही है । शिव का अभिषेक यही है । जिस जल में मिला दें वह गंगा बन जाता है । हर पूजा , अनुष्ठान में गंगाजल चाहिए । मौत के बाद मुक्ति भी गंगा में ही है । गंगा ऐसे ही पवित्र नहीं है ।
इसके जल में वैक्टिरियोफेज नाम के विषाणु होते है। यह विषाणु अन्य जीवाणुओं और सूक्ष्म बैक्टिरिया को नष्ट कर देते है। गंगा का पानी तभी तो रोग नाशक कह गया है । इन सबके बाद भी हम यह विरासत सँभाल नहीं पा रहे । हर रोज़ हम इसे मैला कर रहे है। कारख़ानों का गंदा पानी इसमें मिल रहा है । शहर के बड़े नाले भी गंगा में गिरते है। हज़ारों साल बाद भी हम गंगा को सँभाल नहीं पाए । पवित्र गंगा अब मैली हो रही है । कहीं कहीं यह स्याह काली पड़ चुकी है । नालों से । कैमिकल से । हम हैं कि मानते नहीं । लाशें इसी में बहाते है। पूजा के नाम पर गंदगी बहाते है।
कभी भोजपुरी फ़िल्म का गीत – गंगा मइया तोहरे पियरी चढ़ाव लिखा गया था । यह गंगा की पवित्रता पर था । आज गंगा कराह रही है । भागीरथ को पुकार रही है । कोई तपस्वी चाहिए जो फिर गंगा को संवार दे। इसकी निर्मलता लौटा सके । न जाने कितने गीत गंगा पर लिखे गए । कितने गीत अमर हो गए । बस हमने गीतों में , कहानी क़िस्सों में , गंगा को अमर रखा । इसका आँचल हम हर रोज़ गंदा कर रहे है।
आज गंगा दशहरा तो मना रहे है। शिव को अभिषेक और गंगा का पूजन भी हो रहा है । गंगा के अन्तर्निहित दर्द को न कोई देख रहा न समझ रहा । गंगा में नहा कर अब पाप मुक्त नहीं हो रहे । पाप करते है। गंगा को मैला करने का । गंगा दशहरा तब तक ढकोसला है जब तक इसका आँचल मैला है । गंगा पर रहम करिए । गंगा को बचाइए । यह इस माटी की जीवन रेखा है । हमारे जीने का आधार है । हमारा संसार है । यही हाल रहा तो फिर हम पापियों के लिए – ओ गंगा तुम बहती हो क्यूं ….।