सलिल पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार, मिर्जापुर.
- मुख्यमंत्री के निर्देश पर कार्रवाई की संभावना
- पूर्व कमिश्नर एम एम लाल ने शुरू किया था पत्राचार
मिर्जापुर । जिले में हवाई पट्टी के आकाशीय संबन्ध बनने के लक्षण कुछ-कुछ दिखने लगे हैं । पहले से बना यह हवाईपट्टी फिलहाल अवैध कब्जे की यंत्रणा झेलते हुए गोबरपट्टी के रूप में बदल गई है।
बिरला घराने के अनुरोध पर बनी थी यह हवाई पट्टी
आजादी के बाद औद्योगिक क्रांति में लगे देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की दृष्टि अविभाजित मिर्जापुर जिले पर पड़ी । इस जिले से अब अलग हुए सोनभद्र के चट्टानी पहाड़ों को उपयोगी बनाने के लिए वे बिरला घराने को यहां ले आए। कारण यह था कि पहाड़ों पर झील-झरने थे तो भुखमरी के शिकार आदिवासी भी थे जिनकी आजीविका की उन्हें चिंता थी और काम भी देने की ताकि भुखमरी से उन्हें बचाया जा सके । नेहरू जी की इस परिकल्पना में भगवान दास बिडला सहायक बने लेकिन दुर्गम रास्ता होने के कारण मिर्जापुर के पहाड़ी हिस्सों में आना दुरूह था। इस समस्या के निराकरण के लिए वर्ष 1962 में मिर्जापुर जिले के पहाड़ी ब्लाक के झिंगुरा गांव में हवाई पट्टी का निर्माण नेहरू जी ने कराया । प्रायः बिरला जी और उन दौर में सांसद एवं केंद्र सरकार में उपमन्त्री रहे श्यामधर मिश्र का आगमन यहां होता रहा। चुनावी प्रचार के सिलसिले में पूर्व प्रधानमंत्री स्व इंदिरा गांधी भी इस हवाई पट्टी पर कई बार विमान से उतरी लेकिन विकास की गति तेज होने और नगर में शास्त्री पुल 1976 में बन जाने के बाद झिंगुरा हवाई पट्टी का उपयोग कम होने लगा । जिसका फायदा उठाकर आसपास के लोगों ने लगभग 50 एकड़ जमीन पर धीरे धीरे कब्जा शुरू कर दिया। इन दिनों हवाई पट्टी गोबरपट्टी के रूप में बदल चुका है।
पूर्व कमिश्नर ने पत्राचार किया
वर्ष 2018 में तत्कालीन कमिश्नर मुरली मनोहर लाल को जब गांव-गरीब नेटवर्क ने पत्रक दिया और हवाई पट्टी फिर से उपयोग में लाए जाने की मांग की तब कमिश्नर श्री मुरली मनोहर लाल कड़ी गर्मी में डीएम, एसडीएम, तहसील कर्मियों को नक्शा के साथ हवाई पट्टी पर तलब किया । पूरे दिन छानबीन की तो पाया कि हवाईपट्टी के बीसों किमी की परिधि के लगभग 7-8 गांवों में हवाईपट्टी की जमीन हवा-हवाई हो गई है । उन्होंने शासन स्तर पर पत्राचार किया लेकिन उनकी सेवानिवृत्ति के बाद पत्राचार भी जैसे सेवानिवृत्त हो गया हो।
गत दिवस मुख्यमंत्री की समीक्षा बैठक में मिर्जापुर और सोनभद्र को आकाशीय मार्ग से जोड़ने का मुद्दा उठने पर एक बार फिर हवाई पट्टी की फाइल खुलने की संभावना बढ़ गई है।
मिर्जापुर में तो हवाई पट्टी पर तो केवल एक दरोगा और कुछ कांसिटेबिल लग जाएं तो एरोड्रम पर बंधे जानवर, उपली और झोपड़ियां हट सकती हैं। इसके अलावा दबंगों द्वारा गेस्ट रुम, टिकटघर, स्टाफ़घर के लिए छोड़ी गई जमीन पर से कब्जा हटाने के लिए कड़ा और सत्यनिष्ठ संकल्प करना होगा। वरना फिर वही ढांक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ होगी। दबंगों पर जब हाथ रखा जाएगा तो वे दलील देंगे कि जब वाराणसी में एरोड्रम है तो मिर्जापुर में क्या जरूरत ?