अमरदीप सिंह, संवाददाता, गुजरात

गुजरात के जामनगर के सरकारी अस्पताल के सुपरवाइसर की महिला अटेंडेंट से शारीरिक छेड़छाड़ करने के आरोप ने महकमे में सनसनी फैला दी है। और अब अस्पताल में महिला कर्मचारियों से अनैतिक मांग का ये मुद्दा गांधीनगर तक पहुंच गया है। मंत्रिमंडल की बैठक में इस घटना पर चर्चा हुई तथा जांच के लिए आला अधिकारियों व स्थानीय समिति को कहा गया है। हॉस्पिटल के कोरोना विभाग में अटेंडेंट के तौर पर काम करने वाली युवती ने मीडिया के सामने यह खुलासा किया था की सुपरवाइजर शारीरिक संबंध बनाने के लिए दबाव बना रहा था और न मानने पर नौकरी से निकाल दिया गया

देश में एक ओर जहां कोविड की दूसरी लहर से खलबली मची हुई थी, वहीं जामनगर के सरकारी कोविड अस्पताल में महिला अटेंडेंट के साथ शारीरिक छेड़छाड़ और बिना वेतन नौकरी से निकाल देने का मामला सामने आया है. युवती का आरोप है कि सुपरवाइजर शारीरिक संबंध बनाने के लिए दबाव बना रहा है. जामनगर के सरकारी जीजी अस्पताल में काम करने वाली महिला अटेंडेंट ने उसके सुपरवाइजर पर शारीरिक छेड़छाड़ करने का आरोप लगाने के बाद मामला अब गांधीनगर तक पहुंच गया है जिसके बाद इस पर जांच बिठा दी गई है

आरोप है की अस्पताल में काम करने वाली महिला कर्मचारियों ने सुपरवाइजर की अनैतिक मांग ठुकराने पर उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। गुजरात सरकार ने जिला प्रशासन व पुलिस को तीन दिन में इसकी जांच कर रिपोर्ट भेजने को कहा है। मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने मंत्रिमंडल के सदस्यों से इस घटना के बारे में चर्चा की तथा जिला कलेक्टर पुलिस उपाधीक्षक स्वास्थ्य आयुक्त को इस मामले की गहराई से छानबीन कर तीन दिन में रिपोर्ट देने को कहा गया है।

वही महिला कर्मचारी के साथ शोषण के मामले में एक स्वास्थ्यकर्मी के बयान के बाद मामले ने और तूल पकड़ लिया है। अस्पताल में काम करने वाली महिला कर्मचारियों के शोषण की घटना उजागर होने के बाद इसी अस्पताल के एक चिकित्सक ने नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर बताया है कि पिछले छह से आठ माह से यह सब चल रहा था। इस मामले में मुख्य आरोपी एलबी प्रजापति के खिलाफ अस्पताल प्रशासन को पहले शिकायत भी की गई थी, लेकिन राजनीतिक व पुलिस महकमे में संबंधों के चलते वह बचता रहा। उसके साथ पारस राठौड़, रवि डेर, नंदन तथा दिव्या कटारिया भी शामिल है। चिकित्सक का दावा है कि आरोपी अब तक करीब 60 से 70 युवतियों का शोषण कर चुके हैं।

पूरा मामला तब सामने आया जब जामनगर जीजी हॉस्पिटल के कोरोना विभाग में अटेंडेंट के तौर पर काम करने वाली युवती ने मीडिया के सामने यह खुलासा किया है कि सुपरवाइजर महिला अटेंडेंट से फिजिकल रिलेशन बनाने को कहता है और अगर मना कर दो तो उन्हें यह कहकर जॉब से निकल दिया जाता है कि चले जाओ आपका यहां कोई काम नहीं है इतना ही नहीं युवती ने ये भी आरोप लगाया है कि यहां जॉब ज्वाइन किए हुए 4 महीने हो गए हैं लेकिन उनको सैलरी नहीं दी गई है और बिना किसी कारण तथा नोटिस के के जॉब से निकल दिया गया है , दरअसल, कोरोना की दूसरी लहर के दौरान सरकारी जीजी हॉस्पिटल में काम करने के लिए अतिरिक्त स्टाफ को अस्थायी तौर पर जॉब पर रखा गया था. आरोप लगाने वाली महिला भी उन्हीं अस्थायी अटेंडेंट्स में से एक है, सिर्फ एक ही युवती ने नहीं बल्कि कई महिला अटेंडेंट ने कलेक्टर ऑफिस में ज्ञापन देते हुए यह आरोप लगाया है.

वहीं इस मामले में अस्पताल प्रशासन का कहना है कि अटेंडेंट की सैलरी का जो मामला है वो कंप्यूटर अपडेट होने के बाद हो जाएगा, जबकि शारीरिक छेड़छाड़ को लेकर अब तक हमारे पास किसी भी तरह की कोई शिकायत नहीं आई है. कोविड की दूसरी लहर के वक्त जब लोग अस्पताल में एडमिट होने के लिए लाइन लगा रहे थे, उस वक्त स्टाफ की भी काफी ज्यादा जरूरत थी. ऐसे में सरकार द्वारा उस वक्त करीबन 700 युवकों और युवतियों को अटेंडेंट के तौर पर कॉन्ट्रैक्ट पर लिया गया था. इस मामले में अब अटेंडेंट के सहयोगियों ने धमकी दी है कि अगर मामले में कोई कार्रवाई नहीं की जाती है तो अगले 48 घंटे में धरना देकर विरोध प्रदर्शन करेंगे।

परिचारिका के रूप में कार्य करने वाली युवतियों द्वारा लगाए गए आरोपों के बाद, एम.पी. शाह मेडिकल कॉलेज के डॉ. डीन नंदिनी देसाई ने कहा कि कलेक्टर के निर्देशानुसार कोविड अस्पताल के हर फ्लोर पर पुलिस कर्मियों के साथ-साथ एसोसिएट स्तर के प्रोफेसरों सहित अधिकारी भी निगरानी में रहते थेइससे पहले ऐसी किसी घटना को लेकर हमें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कोई शिकायत नहीं मिली है। बावजूद इसके आरोपों की जांच शुरू कर दी गई है। शिकायत करता का बयान लेने का भी प्रयास किया गया। लेकिन उनकी मुलाकात नहीं हुई है और इस मामले पर इस समय ड्यूटी पर मौजूद सभी महिला कर्मचारियों से भी चर्चा की जाएगी.

साथ ही दूसरे फेस में परिचारक के वेतन का भुगतान कर दिया गया है। इस अटेंडेंट की नियुक्ति सिर्फ 3 महीने के लिए हुई थी। यहां तक ​​कि परिवार के सदस्यों को भी कोरोना महामारी में मरीज को देखने की इजाजत नहीं है। उसके बाद परिचारक को उसकी देखभाल के लिए तीन महीने के लिए नियुक्त किया गया था। उन्हें पर्याप्त भुगतान भी किया गया है। करीब 25 फीसदी कर्मचारियों को ही तकनीकी कारणों से बैंक खाता खराब होने के कारण वेतन नहीं मिल सका। यह भी एक-दो दिन में हो जाएगा। इस मामले में आज राज्य का महिला आयोग भी अस्पताल पहुंचा हुआ है

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