लखनऊ से वरिष्ठ पत्रकार अनिल सिंह की कलम से
सरकार की नजर में शिक्षक कर्मचारी अनुपयोगी हो सकता है निष्प्रयोज्य हो सकता है। उसकी छंटनी कर सरकार अपनी पीठ भी ठोंक सकती है लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि अरबों खरबों लगाकर खड़ी औद्योगिक इकाइयों का सबसे बड़ा उपभोक्ता यह मध्यमवर्गीय नौकरीपेशा वर्ग ही है। इस उपभोक्ता की ताकत उसका वेतन है। जब आप उसमें कटौती करेंगे तो स्वाभाविक रूप से आपकी अर्थव्यवस्था बिगड़ने लगेगी। कर्मचारी आगामी खर्चों को देख अपने को समेटने लगेगा। इस कड़ी में केंद्रीय और राज्य सरकार ही नहीं निजी क्षेत्र के कर्मचारी भी शामिल हैं। पेंशनर भी बड़ी ताकत अभी तक रहे अब आगे नहीं रहेंगे क्योंकि नई पेंशन में खुद ही लाचार होंगे बाजार में उनकी भागीदारी घट जाएगी। तमाम परिवार इसी संकट में है जिनके यहां पिता पेंशन पा रहे और बेटों के पास आर्थिक कोई आधार नहीं है।
इस तरह कर्मचारी की विशाल ताकत सरकार को समझ में आ रही इसी कारण दीपावली से पहले वह एलटीसी और कर्ज में राहत जैसी रेवड़ी बांट रही लेकिन इसको लेकर कर्मचारी बिल्कुल उत्साहित नहीं है।
इसे समझना होगा सरकार को कि जब आपके पास पैसा नहीं है तंगी में है तो देशाटन करने नहीं जाएंगे और नहीं कर्ज का बोझ लेना चाहेंगे। ऐसे में कर्मचारी चाहता है कि उसे सबसे पहले अर्जित अवकाश नकदीकरण की सुविधा दी जाय। कर्मचारी इसे लेकर बगैर तनाव खरीदारी कर सकेगा। इससे अपने आप एक साथ बाजार में गति दिखने लगेगी। यह बहुसंख्य कर्मचारियों के हित में होगा। एलटीसी का वैसे भी सभी कर्मचारी लाभ नहीं ले पाते हैं। इस तरह आर्थिक मंदी से जूझ रही अर्थव्यवस्था में जान डाल सकते हैं कर्मचारी। सरकार को बगैर विलंब इस पर फैसला लेना चाहिए। दीपावली से ही बाजार बूम कर जाएगा। कर्मचारियों को एक अतिरिक्त ताकत मिल जाएगी। इसके बाद लंबित भत्तों को जारी कर दें तो बाजार की गति बनी रहेगी और कर्मचारियों में भी सरकार के प्रति भरोसा बढ़ेगा।