डॉ आलोक चांटिया अखिल भारतीय अधिकार संगठन
मानव द्वारा बनाई गई संस्कृति के दायरे में जब किसी व्यक्ति का जन्म होता है और वह अपना जीवन पूरा करने के बाद इस नश्वर दुनिया से विदा लेता है तो उसके बाद उसके जन्म की तिथि को समाज परिवार के लोग याद करते हुए उसके किए गए कार्य के संदर्भ में जयंती के रूप में मनाते हैं लेकिन हनुमान जी इस पृथ्वी पर त्रेता युग से लेकर आज तक उपस्थित और चैत्र मास की पूर्णिमा को उनका जन्म हुआ था इसलिए एक भ्रांति के रूप में इसे हनुमान जयंती किया कहा जाना उचित नहीं है बल्कि यह हनुमान जन्मोत्सव है क्योंकि वह वर्तमान में भी हर पल हमारे साथ हैं तो सबसे पहले आज इस बात को हमें अपनी कार्यप्रणाली में शुद्धता के साथ सही करना चाहिए कि यह हनुमान जन्मोत्सव है।
दूसरा सबसे बड़ा जो विचारणीय और प्रेरणा का बिंदु होना चाहिए वह है कि चारधाम 51 शक्ति पीठ 12 ज्योतिर्लिंग की तरह भारत में हनुमान जी का इस तरह का न तो कोई मंदिर है और ना ही ऐसी कोई पीठ का निर्माण नहीं हुआ उसके पीछे सिर्फ यह कारण है कि हनुमान जी शक्ति और समर्पण के देवता हैं और प्रत्येक मनुष्य के जीवन में शक्ति और समर्पण उसके अंदर है उसको कहीं भी ढूंढने की जरूरत नहीं है यही कारण है कि हनुमान जी के इस तरह के मंदिरों का निर्माण नहीं हुआ जहां जाकर हम कुछ प्राप्त कर सके क्योंकि हमें अपने अंदर की शक्ति को ही अपना हनुमान मानना है और अपने अंदर के समर्पण को ही हनुमान जी की तरह राम रूपी समाज के साथ जोड़कर देखना है और यह हमारे प्रतिदिन के जीवन में घटित होना है इस बात को समझना ही हनुमान जी के करीब जाने के बराबर है
एक जो और सबसे महत्वपूर्ण बात भगवान के रूप में प्रतिष्ठित श्री हनुमान जी बजरंगबली जी पवनसुत केसरी नंदन के लिए हमें समझने की आवश्यकता है वह यह है कि हम किस के प्रति समर्पित रहे उसके प्रति पूरी आस्था के साथ समर्पित रहे फिर धन वैभव परिस्थितियों को देखकर हम अपने पाले को ना बदलें और यह संदेश को यदि हम विस्मृत कर रहे हैं तो हम हनुमान जी से दूर जा रहे हैं क्योंकि जिस तरह से उन्होंने प्रभु श्री राम के साथ अपनी भक्ति अपना समर्पण प्रस्तुत किया और उसे हर स्थिति में बनाए रखा वह यह संदेश देती है कि समर्पण और वह भी मन से किया गया समर्पण व्यक्ति को ना सिर्फ समाज में स्थापित करता है बल्कि उसको सर्वोच्चता भी प्रदान करता है।
प्रभु श्री राम की सर्वोच्च भक्ति करने के बाद भी राजा ययाति का वध करने के लिए श्री राम द्वारा किया जाने वाला प्रयास और हनुमान जी की मां अंजना के द्वारा राजा ययाति को दिया गया संरक्षण जिसके कारण हनुमान जी अपने आराध्य प्रभु श्री राम के साथ युद्ध करने के लिए खड़े हो गए एक तरफ मां की सर्वोच्चता दूसरी तरफ अपने आराध्य प्रभु के प्रति समर्पण के बीच में मां को सर्वोच्चता प्रदान करते हुए हनुमान जी ने ना तो अपने आराध्य के विरुद्ध हथियार उठाया नाम से युद्ध किया बल्कि उनके सामने खड़े होकर सिर्फ उन्हीं का नाम जपना शुरू कर दिया यही कारण है कि जब श्रीराम ने उन पर बाण से प्रहार किया तो वह सारे वाण हनुमान जी के करीब जाकर वापस आ गए और ऐसा करके उन्होंने राजा ययाति की जान बचाई अपने मां की सर्वोच्चता और सम्मान को स्थापित किया और इस बात को भी एक संदेश के रूप में दुनिया के सामने रखा कि जो आपका आराध्य है यदि आपकी उस पर आस्था है तो वह आपके विरुद्ध भी अगर खड़ा होगा तो भी वही आपकी सुरक्षा भी करेगा जबकि आज ऐसा नहीं होता है हम जिस से जुड़े होते हैं जिसके साथ समर्पित होते हैं यदि उससे थोड़ा भी मनमुटाव हो जाता है या उसके हमें विरुद्ध खड़े होना पड़ता है तो हम अपने सारे समर्पण सारे संबंधों को भूल जाते हैं और सिर्फ एक शत्रु की तरह व्यवहार करने लगते हैं और यही आकर हम प्रभु श्री हनुमान जी की इस शिक्षा से बहुत दूर आ जाते हैं
एक जो सबसे महत्वपूर्ण बात हनुमान जन्मोत्सव के समय में सभी कुछ समझना चाहिए कि भगवान विष्णु से वरदान प्राप्त करने के बाद रावण अमर हो गया और उसके कुकृत्य से समाज को देश को बचाने के लिए जब विष्णु भगवान अपने सातवें अवतार के रूप में प्रभु श्री राम के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुए तो भगवान शंकर द्वारा उनकी सेवा करने के लिए अपनी 11 में स्वरूप हनुमान के रूप में जन्म लेना पड़ा था क्योंकि रामायण अपने 10 सिर रोज भगवान शंकर को समर्पित करता था इसलिए भगवान शंकर अपने 10 स्वरूप में नहीं आ सकते थे और इस अर्थ में आप आसानी से समझ सकते हैं कि हनुमान जी के स्वरूप की पूजा करके कोई भी व्यक्ति इस भाव से ऊपर उठ जाता है कि वह अपने कि स्वरूप के आधार पर किसी की सहायता कर सकता है किसी की सेवा कर सकता है क्योंकि उद्देश्य सिर्फ सेवा होना चाहिए और हनुमान जन्मोत्सव के दिन धर्म की परिभाषा में आज हनुमान जी को भगवान के रूप में सिर्फ मानकर और उनकी पूजा करके अपने जीवन जीवन में उनके कार्यों को स्वीकार ना करना हमें हनुमान जी से बहुत दूर ले जाता है।
हनुमान जी के जीवन की अनंत घटनाओं का वर्णन करने के बजाय सिर्फ सार रूप में यही समझा जा सकता है कि व्यक्ति के जीवन में कुछ ना कुछ शक्ति होती है जिसका अनुभव हनुमान जी की तरह लंका जाते हुए समुद्र पार करते समय( समुद्र को समाज की विषमता परेशानी चुनौती के रूप में समझना चाहिए) करते हुए उस शक्ति का समाज निर्माण में और सकारात्मक रूप से प्रयोग करना ही राम राज्य की स्थापना में पूर्ण आहुति है और समाज को सोने की लंका के बजाय मोक्ष प्रदान करने वाली अयोध्या की तरह स्थापित करने का प्रयास है लेकिन आवश्यकता इसी बात की है कि हम अपने भीतर हनुमान जी की तरह सकारात्मक रूप से उस शक्ति का अनुभव करके अपनी चेतना को उन्नति की तरफ ले जाएं यही हनुमान जन्मोत्सव का सार है दर्शन है।