सलिल पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार, मिर्जापुर.

 

मिर्जापुर। कतिपय न्यूज चैनल वाले रावण-दल-से लगते हैं जो घटनाओं को फटाफट भजाने में लग जा रहे हैं ।

सन्दर्भ- हाथरस की घटना और जातीय जहर बाँटने की कोशिश ?

फर्जी वायरल खबर

एक चैनल मुख्यमंत्री जैसे गरिमामय पद को जातीय-दंगल में घसीटता हुआ दिखाई पड़ा । दावा कर रहा है कि उसके चैनल का ‘लोगो’ लगाकर जो खबर प्रसारित की गई, वह वायरल-जाँच में गलत पाई गई।

किसने फैलाई, यह तो बता देते?

टेक्निक इतनी स्ट्रांग है कि यह तो पता चल ही जाएगा कि फर्जी खबर कहाँ से उड़ी ? अगर नहीं पता कर पा रहा चैनल तो आए दिन अनेकानेक घटनाओं को कैसे चैनल पता करता है? यह सवाल खड़ा होना स्वाभाविक है। फिर तो यही साबित होता है कि स्टूडियो के टेबुल पर सारी रहस्य खोलने वाली खबरें गढ़ दी जाती हैं ?

यह भी हो सकता है ?

फर्जी खबर की आड़ में जाति विशेष को लामबंद करने का यह शातिराना चाल भी हो सकता है। मतलब भी सिद्ध हो गया और जातिवाद का प्रोडक्ट भी बिक गया ।

कार्रवाई हो

बारीक प्रौद्यौगिकी के दौर में यदि चैनल उस व्यक्ति को ढूंढ नहीं पा रहा जिसने जातीय दंगे कराने का दांव मारा है तो चैनल के खिलाफ ही कार्रवाई होनी चाहिए ।

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