Total Samachar स्वास्थ्य का मतलब सिर्फ बीमारी नहीं

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डॉक्टर आलोक चांटिया अखिल भारतीय अधिकार संगठन

संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपनी आन सांग एक संस्था विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्थापना 7 अप्रैल 1948 को ही कर दिया था और उसी दिन इसके संविधान में स्वास्थ्य की परिभाषा भी स्पष्ट कर दी थी जिसके अनुसार सिर्फ बीमारी और कमजोरी का अभाव ही स्वास्थ्य का विषय नहीं है बल्कि कोई भी मनुष्य पूर्ण रूप से शारीरिक मानसिक और सामाजिक रुप से आरोग्य की स्थिति है और यही कारण है कि जब पूरा विश्व हर वर्ष विश्व स्वास्थ्य दिवस 7 अप्रैल को मनाता है तो भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में जहां पर 14 सौ लोगों पर एक डॉक्टर उपलब्ध है वहां पर स्वास्थ्य को सिर्फ अस्पताल दवाओं तक ही सीमित कर देने के बजाय उन दूसरे तथ्यों पर भी कार्य करने की आवश्यकता है जिससे व्यक्ति पूर्ण रूप से निरोगी बनता है।

यदि स्वास्थ्य की परिभाषा के अंतर्गत हम मानसिक आरोग्यता को ध्यान में रखें तो वैश्विक स्तर सहित भारत में जिस तरह से धीरे-धीरे लोग अवसाद कुंठा निराशा की तरफ बढ़ रहे हैं उसको समझने में इस बात पर ध्यान देना होगा कि आखिर जिस मस्तिष्क की जटिलता और विलक्षण गुणों के कारण मानव संस्कृति का निर्माता बना पशु जगत में सबसे अलग स्थापित हुआ वही मानव अपनी उसी जटिल मस्तिष्क की समस्याओं से क्यों जूझने लगा और इसका सबसे बड़ा कारण प्राकृतिक संसाधनों के आधार पर जीवन जीने के बजाय वैज्ञानिक खोजों के द्वारा उत्पन्न संसाधनों के आधार पर जीवन जीने की ओर अग्रसर होने के कारण मानव उन सारे संसाधनों का लाभ पाने और उसके साथ समानता के बोध में रहने में अपने को असमर्थ पाने लगा जिसने मानव के मस्तिष्क पर विपरीत प्रभाव डाला और वह जनसंख्या और संसाधनों के बीच के अंतर के कारण बढ़ते दबाव से प्रभावित होने लगा इसके साथ ही जिस पर अलौकिक दुनिया का आवरण बनाकर मानव के सामने यह विचार प्रस्तुत किया गया था कि वही सर्वोच्च अंतिम व्यक्ति नहीं है उसके ऊपर भी ऐसी सकता है जो सारे जीवन के चरणों का निर्धारण करती है और इस स्थिति में तर्क जैसी स्थिति नहीं थी लेकिन जैसे-जैसे मानव अपने तर्क से उस अलौकिक जगत को भी परिभाषित करने लगा वह उस अलौकिक जगत को सिर्फ एक परंपरा समझ कर जीने लगा और अपने जीवन की सारी बातों पर व्यक्तिगत हो गया जिसने मानव मस्तिष्क पर प्रभाव डाला क्योंकि अब मानव हर बात में भगवान की इच्छा देखने के बजाय यह ज्यादा सोचने लगा मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ और इस विसंगति ने मानव मस्तिष्क को प्रभावित किया यही कारण है कि विश्व स्वास्थ संगठन के मानसिक आरोग्यता के लिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक मनुष्य अपने दिमाग की क्षमताओं के अनुसार अपने जीवन की सुविधाओं को उसी नैसर्गिक व्यवस्था की तरह उत्पन्न करके संतोषम परम सुखम के दृष्टिकोण के साथ जीने का प्रयास करें
शारीरिक विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्वास्थ्य की परिभाषा में सबसे महत्वपूर्ण शारीरिक आरोग्यता को ही मान लिया गया और इसी के आधार पर किसी भी समाज देश सरकार सभी की क्षमताओं का आकलन किया जाने लगा और यह जरूरी भी इसलिए महसूस हुआ कि जब तक शरीर नहीं स्वस्थ रहेगा तब तक मानसिक स्वास्थ्य की कल्पना करना आसान नहीं है और इसी संदर्भ में प्रत्येक देश की सरकार सबसे ज्यादा शारीरिक स्वास्थ्य पर कार्य करती है भारत की बढ़ती जनसंख्या का दबाव शारीरिक आरोग्यता में बाधा उत्पन्न करती है यह सच है कि जन औषधि केंद्रों के माध्यम से सरकार द्वारा प्रत्येक व्यक्ति तक औषधि को पहुंचाने का प्रयास किया गया है लेकिन व्यक्ति द्वारा तत्काल दर्द या अपनी व्याधियों से निराकरण पाए जाने के प्रयासों के कारण एलोपैथी काही ज्यादा विकास होता चला गया जिसने चिकित्सा की दूसरी पैथी को उपेक्षित किया जो मानव जीवन में शरीर की स्थितियों के अनुसार ज्यादा लाभकारी सिद्ध हो सकती है और यही कारण है कि आयुष मंत्रालय के द्वारा उन्नति की ओर भी ध्यान दिया जाना आरंभ किया गया जो धीमी गति से लेकिन ज्यादा बेहतर तरीके से मानव शरीर को स्वस्थ रखने में सक्षम थी और आज वैश्विक स्तर पर आयुर्वेद की प्रमाणिकता सिद्ध हो चुकी है इसके अतिरिक्त विश्व स्वास्थ्य संगठन भी वैश्विक स्थिति में फैलने वाले चाहे हैजा हो प्लेग हो और वर्तमान में कोरोना जैसी स्थितियों में सबसे ज्यादा शारीरिक व्याधि और एलोपैथी पर ही विश्वास करती दिखाई दी लेकिन इसके साथ-साथ जिस तरीके से काढा को स्वीकार किया गया उससे शारीरिक आरोग्यता की दिशा को एक नई गति मिली।

सामाजिक आरोग्यता एक ऐसी स्थिति है जिसमें संस्कृति बनने के बाद एक आदर्श स्थिति की कल्पना करते हुए विवाह और सामाजिक परिवार जैसे संस्थाओं की कल्पना की गई और आज विश्व में कोई ऐसा समूह नहीं है जिसमें परिवार और विवाह न पाया जाता हो लेकिन बढ़ती जनसंख्या भौतिक संसाधनों का हर दिन सामाजिक प्रतिष्ठा के रूप में मूल्यांकन और उससे प्रतिस्पर्धा न कर पाने के कारण सामाजिक आरोग्यता पर पड़ने वाला प्रभाव किसी से छिपा नहीं है जिस तरीके से विवाह संबंध टूटने लगे और जिस तरीके से घरों में सुख शांति के बजाय अशांति लड़ाई झगड़ा कलह आदि का विस्तार होने लगा उसने सामाजिक आरोग्यता के क्षेत्र पर काम करने की आवश्यकता पर सबसे ज्यादा पर बल दिया है अमेरिका की देलाबार लेबोरेटरी में 20 साल के अध्ययन से यह भी स्थापित हुआ है कि जब व्यक्ति किसी अच्छे व्यक्ति के साथ बैठता है उसके समान विचारधारा के लोगों के साथ रहता है तो उसके शरीर में विभिन्न बीमारियों से रक्षा करने वाले श्वेत रक्त कणिकाओं की संख्या 12 सौ प्रति घन सेंटीमीटर बढ़ जाती है लेकिन वहीं पर जब कोई व्यक्ति बुरी संगत में पड़ जाता है लड़ाई झगड़ा तनाव के साथ घर बाहर रहने लगता है तो उसके शरीर में श्वेत रक्त कणिकाओं की संख्या 1600 प्रति घन सेंटीमीटर घट जाती हैं और वैज्ञानिक अध्ययन इस बात पर भी स्पष्ट हो गए हैं कि मानव मस्तिष्क के हाइपोथैलेमो से निकलने वाला एसीटीएच (एड्रेनोकॉर्टिकॉट्रॉपिक हार्मोन) का निकलना प्रभावित हो जाता है जो शरीर में श्वेत रक्त कणिकाओं को उद्दीप्त करके एंटीबॉडी बनाने में मदद करता है और यह भी स्पष्ट किया गया है कि जैसे-जैसे तनाव बढ़ता है या हार्मोन घटता जाता है और शरीर बीमार रहने लगता है जिससे किसी नई परिस्थिति परीक्षा के समय इंटरव्यू के समय कोई भी व्यक्ति अनुभव कर सकता है क्योंकि वह बुखार घबराहट दस्त आना जैसी बीमारियों से ग्रसित हो जाता है
इसलिए विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाए जाने में सिर्फ इस तथ्य को लेकर ही कार्य नहीं किया जाना चाहिए कि दवाओं के द्वारा ही जीवन को सही बनाया जा सकता है हमारे जीवन में संतोषम परम सुखम जो होता है वह भगवान करता है हमारा जीवन हमारे पूर्व जन्म के भाइयों पर आधारित होता है आदि बातें जिनको आज विज्ञान निकालता है वह सिर्फ इसलिए संस्कृति के साथ जोड़ कर रखी गई थी ताकि मानव जीवन मुख्य रूप से मस्तिष्क अनेकों तनाव से मुक्त रहें और जिस तरह का जीवन उसे मिला है उसी में वह खुश रहकर जीवन जीने का प्रयास करें यह संस्कृति का घटक भी मानव को स्वस्थ रखने का बिना औषधि वाला प्रयास था जिसको औषधि वाले प्रयास के साथ जोड़कर आज हम लुप्त करने का कार्य कर रहे हैं और इसी को समझने की आवश्यकता है क्योंकि गरिमा को जीवन मानवाधिकार का प्रथम लक्ष्य है और स्वास्थ्य भी मूल अधिकार का विषय है लेकिन उसमें सिर्फ शारीरिक नहीं मानसिक और सामाजिक आरोग्यता पर भी चर्चा और कार्य करने की ज्यादा आवश्यकता है क्योंकि मानव अंतिम रूप से सामाजिक प्राणी ही है।

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