डॉ दिलीप अग्निहोत्री
उत्तर प्रदेश की उत्तर प्रदेशका भारतीय जीवन शैली पर विश्वास है। इस जीवन शैली में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का समावेश है। कुछ दशक पहले तक शिशुओं के लिए माता का स्तनपान सामान्य जीवन शालशैली का ही हिस्सा था। पश्चिम सभ्यता का यहाँ भी प्रभाव पड़ा। इसी कारण इसके लिए जागरूकता सप्ताह आयोजित करने की आवश्यकता पड़ी है। राज्यपाल ने भारतीय मान्यताओं के अनुरुप अपने विचार व्यक्त किये। कहा कि एक स्त्री को गर्भधारण के दौरान जिस तरह का वातावरण एवं भोजन मिलेगा,गर्भ के अन्दर पल रहे बच्चे पर भी उसका प्रभाव पड़ता है। इसका दृष्टांत महाभारत में अभिमन्यु के जन्म से लिया जा सकता है। माँ का दूध सबसे बड़ी दवाई एवं बच्चे का पहला टीका होता है। इसका बच्चे के पर सकारात्मक प्रभाव प्रभाव पड़ता है। माँ के दूध में रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है। यह शिशु को मजबूत बनाने के साथ बीमारियों से बचाव भी करता है। नवजात शिशुओं की माताओं को स्तनपान व्यवहार हेतु प्रेरित किया जाना चाहिए। बच्चे को दूध पिलाने में किसी तरह का भ्रम नहीं पालना चाहिए।
राज्यपाल ने माताओं को आह्वान किया कि वे जन्म के एक घंटे के अन्दर माँ अपना दूध निश्चित रूप से बच्चे को पिलाये तथा अपने फिगर पर ध्यान न दें। प्रसव उपरान्त पहला घंटा बच्चे के स्तनपान के लिये अत्यन्त आवश्यक है। पहले छः माह तक माँ केवल अपना ही दूध पिलाये और इसके बाद ही घर का बना अनुपूरक आहार दे। इससे समय बच्चा तेजी से बढ़ता है। माँ को चाहिए कि वह दो वर्ष तक निरन्तर बच्चे को अपना दूध पिलाती रहे। प्रधानमंत्री के फिट इण्डिया कार्यक्रम में केवल योग एवं खेल ही नहीं, बल्कि पौष्टिक आहार व व्यवहार भी शामिल है। स्त्री के गर्भधारण से लेकर बच्चे के जन्म तक महिला को किस तरह का पोषण, आचार विचार व अनुकूल वातावरण मिलना चाहिए। माता पिता के अलावा किशोरियों को भी इस बात का ज्ञान होना चाहिए। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाली पचास प्रतिशत बेटियां एनीमिक हैं। यहां तक कि उनमें होमोग्लोबिन का स्तर कम मिला है। यह सोचनीय स्थिति है। ऐसी बेटी कुपोषित बच्चे को ही जन्म देगी। बेटी के प्रति सोच में पिता को बदलाव लाना होगा।