ले. कर्नल (सेनि.) आदित्य प्रताप सिंह

712 ईस्वी में सिंध पर आक्रमण से लेकर आजतक, 1300 वर्ष, हिंदुओं और हिन्दुत्त्व के विरुद्ध युद्ध विभिन्न रूपों में अबाध गति से चल रहा है। साहित्य, कला, संस्कृति और इतिहास सब कुछ नष्ट किया गया। इस्लामिक और अँग्रेजी साम्राज्यवाद ने प्राचीनतम और महानतम सनातन संस्कृति का विनाश करते-2 इसको अपूर्णीय क्षति पहुंचाई। इस सभ्यता को इन साम्राज्यवादी शक्तियों ने विभाजित कर इसकी राजनीतिक और आर्थिक शक्ति को क्षीण किया। विभाजित भारत के इस्लामिक हिस्सों से हिंदुओं और उनकी संस्कृति के चिन्हों को नष्ट किया जाता रहा। पाकिस्तान बनने से भारत का सामरिक भौगोलिक क्षेत्र भी विलुप्त हुआ। हम पश्चिम और मध्य एशियाई अनेक प्राकृतिक संशाधनों ने से कट गए। वेदों के उत्पत्ति स्थल आज पाकिस्तान में हैं। इस विभाजन का दोष भी वामपंथी, राजनीतिक इस्लाम के द्विराष्ट्र सिद्धान्त को न देकर हिन्दू राष्ट्रवादी विचारकों के सर मढ़ते आए हैं। हिन्दू सांस्कृतिक पुनर्जागरण के प्रयासों को आज राजनीतिक इस्लाम के पक्षधर वामपंथी अतिवादिता कहते हैं परंतु अफगानिस्तान, पाकिस्तान, कश्मीर और बांग्लादेश में हुये और हो रहे हिन्दू नरसंहार पर मौन धारण कर लेते हैं। भारत में पिछले पाँच सालों में 20 से अधिक समुदाय विशेष द्वारा हिंदुओं की निर्मम हत्याओं पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देता। भारत में पंथनिरपेक्षता हिंदुओं के विरुद्ध एक विनाशकारी शस्त्र बन चुका है।

 

धर्मांतरण का भारत में अर्थ ही हिंदुओं के धर्म परिवर्तन से है। एक हिन्दू विरोधी षडयंत्र के तहत एक वर्ग द्वारा धीरे-2 दलितों और आदिवासियों, वनवासियों आदि को हिन्दू धर्म से ही बाहर कर दिया गया। इसमे सबसे अधिक दोषी हैं भारत की लोकतान्त्रिक सरकारें जो एक समय चर्च नियंत्रित अनेक राष्ट्रों से वित्त पोषित थीं। मुस्लिम वोट बैंक हिन्दू और राष्ट्र हितों पर भारी था।

इस्लामिक माफिया मुंबई फिल्म उद्योग को नियंत्रित कर हिन्दू विरोधी कथानकों के माध्यम से हिन्दू धर्म को धीरे-2 नयी पीढ़ी के समक्ष हीन दिखा रहा था। यह सांस्कृतिक युद्ध साधारण लोगों की सोच से परे था और समझदार लोगों को बोलने का अधिकार नहीं।

 

मीडिया आज भी चर्च और मस्जिदों से नियंत्रित अनेक वित्तीय संस्थानों द्वारा संचालित है। पेट्रो डॉलर और स्वयंसेवी ईसाई मिशनरियों ने भारत की संस्कृति का सर्वाधिक क्षय किया। इस तथ्य को कहने वाला दक्षिणपंथी। हिन्दुत्त्व कट्टरपंथी विचारधारा और इस्लाम शांति का धर्म यह लिखने और बोलने वाला उदारवादी।

 

कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक इस्लामिक आतंकियों द्वारा अनेक हिन्दू मंदिरों पर पिछले दो दशकों में हमले हुये जिसमे सैकड़ो हिन्दू मारे गए और सैकड़ों आहत हुये। इन बर्बर हिन्दू हत्याओं को कभी क्रूर राजनीतिक इस्लाम के द्वारा किए जा रहे हिन्दू नरसंहार के रूप में क्यूँ नहीं देखा गया?

 

यह जानते हुये भी की राजनीतिक इस्लाम का भविष्य का लक्ष्य ही पूरे दक्षिण एशिया में खिलाफ़त की स्थापना है। क्या सामान्य हिन्दू को इस भविष्य के वैश्विक संकट से अवगत कराना भारत सरकार का कर्तव्य नहीं है? हिन्दू जीवन और सांस्कृतिक मूल्यों का मोल क्यूँ नहीं है। क्यूँ उसके संत समाज की निर्मम हत्याओं को दबा दिया जाता है? क्यूँ अभी तक इस देश में किसी भी प्रकार से हिन्दू धर्मांतरण को प्रतिबंधित नहीं किया गया?

 

स्वतन्त्रता के 73 वर्षों में हिन्दू विरोधी विचारकों और सरकार पोषित संस्थानों ने गौरवशाली हिन्दू इतिहास और सभ्यता को नयी पीढ़ी के समक्ष इस रूप में प्रस्तुत किया कि वह उसे हिन समझने लगा। वह मैक्समूयलर जैसे अंग्रेज़ आयातित षडयंत्र को ही भारतीय धर्मशास्त्रों का पंडित मानने लगा। वह उनके आर्य-अनार्य जैसे झूठे सिद्धांतो और अनेक ऐसी ही झूठी व्याख्याओं को सच मानकर हिन्दू धर्म को वर्गों में विभाजित कर देखने लगा।

 

इन्ही अनेक उपर्युक्त कारणों से वह पालघर में हुयी साधुओं की निर्मम हत्या से न विचलित होता है और न ही उद्वेलित। बिना सांस्कृतिक पुनर्जागरण के इस हिन्दू नरसंहार को विराम लगाना असंभव है। हिन्दू सांस्कृतिक पुनर्जागरण ही उसके सशक्तीकरण का मार्ग प्रशस्त कर उसे सामाजिक और राजनीतिक रूप से सक्षम बनाएगा।

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