डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन
दूसरे विश्व युद्ध के बाद जब एक बार नरसंहार के कारण विश्व या सोचने को मजबूर हुआ कि इस तरह से जाती प्रजाति धर्म रंगभेद के आधार पर मानव की हत्या किया जाना उचित नहीं है तो वहीं से राष्ट्र राज्य की संकल्पना में विश्व की सर्वोच्च संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ के माध्यम से सार्वजनिक मानवाधिकार घोषणा पत्र 1948 में 10 दिसंबर को लाया गया यह कैसा प्रयास था जिसने कालांतर में विश्व के करीब करीब सभी देशों को कल्याणकारी राज्य की संकल्पना में अपनी कहां उन नियमों नियमों को स्थापित करने के लिए प्रेरित किया जिससे किसी भी स्तर पर मानव मानव के बीच में भेद न दिखाई दे और आर्थिकी धर्म जाति रंगभेद के आधार पर यदि कोई भिन्नता है भी तो उसमें कल्याणकारी तथ्य का समावेश ज्यादा होना चाहिए और यह प्राकृतिक नियम भी कहता है ज्यादातर लोग मानवाधिकार को एक विधि का विषय समझ लेते प्राकृतिक न्याय व्यवस्था का साधन है जो संस्कृति के आयामों को एक व्यवस्था प्रदान करता है इसको एक यदि उदाहरण के माध्यम से समझने का प्रयास करें पृथ्वी पर पाए जाने वाला प्राकृतिक संसाधन एक सामान्य दृष्टिकोण में सिर्फ पृथ्वी है लेकिन जब वैज्ञानिकता के दृष्टिकोण से इसी पृथ्वी पर पाए जाने वाले तत्वों का विश्लेषण किया जाता है।
रसायन विज्ञान में मेंडलीफ की आवर्त सारणी से ही स्पष्ट हो जाता है कि पृथ्वी पर अनगिनत रूप से बहुत से तत्व है इनमें से बहुत से तत्वों के नामों से सामान्य व्यक्ति परिचित होता है जैसे सोडियम पोटैशियम मैग्नीशियम आयरन जिंक आदि सांस्कृतिक रूप से व्यक्ति इन वैज्ञानिक नाम को तो नहीं जानता है लेकिन संस्कृति में भोजन व्यवस्था में ऐसी व्यवस्था की गई है जिसमें नमक के माध्यम से सोडियम पहुंचता है तो फलों के माध्यम से पोटेशियम पहुंचता है सब्जियों के माध्यम से मैग्नीशियम पहुंचता है।
लेकिन व्यक्ति वास्तव में नहीं जानता है कि जो खाद्य पदार्थ उसने खाया है उससे उसे लाभ क्या हो रहा है यही कारण है कि मानवाधिकार के विश्लेषण को वैज्ञानिकता के आधार पर समझने की आवश्यकता है कि वास्तव में मानवाधिकार क्यों आवश्यक है हम सभी यह जानते हैं कि पशु जगत में सभी जीव जंतु अपने शरीर में आवश्यक तत्वों के लिए या तो शाकाहारी व्यवस्था में है या मांसाहारी व्यवस्था में जिसे हम खाद्य श्रंखला कहते हैं लेकिन जब हम वैज्ञानिक आधार पर किसी भी हरे पत्ते का विश्लेषण करते हैं तो उसके हरे रंग को निर्धारित करने वाले क्लोरोफिल के केंद्र में मैग्नीशियम पाया जाता है और किसी भी प्राणी के शरीर में पाए जाने वाले रक्त के हीमोग्लोबिन के केंद्र में आयरन पाया जाता है।
कई बार ऐसी स्थिति आती है कि व्यक्ति के शरीर में खून की कमी हो जाती है ऐसे में उसे हरी सब्जी खाने की सलाह दी जाती है इसके पीछे यह वैज्ञानिक कारण है की आयरन का परमाणु क्रमांक 26 होता है और मैग्नीशियम का परमाणु क्रमांक 12 होता है यह इन तत्वों का वैज्ञानिक गुण होता है कि जब भी शरीर में मैग्नीशियम वाले तत्व पहुंचेंगे तो आयरन उनको विस्थापित करके स्वयं को उस जगह पर स्थापित कर लेना यही कारण है कि जब कोई व्यक्ति हरी सब्जियां खाता है तो उसके क्लोरोफिल में उपस्थित मैग्नीशियम आयरन के द्वारा विस्थापित कर दिया जाता है जो खून बनाने में सहायक होता है।
यह एक प्राकृतिक व्यवस्था है कि व्यक्ति के शरीर में खून पर्याप्त मात्रा में बनता रहे इसके अतिरिक्त एक दूसरा उदाहरण भी समझने की आवश्यकता है कि किसी भी प्राणी का शरीर कोशिकाओं से बना है कोशिकाओं में केंद्रक होता है केंद्रक में आरएनए डीएनए होते हैं और यह आरएनए डीएनए में एक प्यूरीन नाम का एमिनो एसिड पाया जाता है जिसके कारण ही उपापचय अनियमितता के फल स्वरुप व्यक्ति के शरीर में यूरिक एसिड ज्यादा बनने लगता है इस यूरिक एसिड के कारण ही व्यक्ति के शरीर में सूजन आ जाती है एड़ी और जोड़ों में दर्द रहने लगता है लेकिन यहां शरीर में जो हड्डियां पाई जाती हैं उन हड्डियों के किनारों पर या इकट्ठा हो जाता है क्योंकि वहां पर रक्त कोशिकाएं नहीं पाई जाती है लेकिन इकट्ठा होने पर यह सोडियम मोनो सेक्रेट बनाता है और सोडियम का परमाणु क्रमांक 11 होता है लेकिन पोटेशियम का परमाणु क्रमांक 19 होता है पोटेशियम शरीर में रुकता नहीं है और जितने भी फल पाए जाते हैं सभी में पोटेशियम पाया जाता है जैसे अनन्नास में प्रति 100 ग्राम में 109 मिलीग्राम पोटैशियम होता है अदरक में 100 ग्राम में 415 मिलीग्राम होता है अब यदि कोई व्यक्ति अपने खाने में केला पपीता अनन्नास की मात्रा बढ़ा दें अदरक की मात्रा बढ़ा दें तो शरीर में पोटैशियम सोडियम को विस्थापित कर देगा और शरीर यूरिक एसिड से मुक्त हो जाएगा यही नहीं यूरिक एसिड जिस रूप में शरीर में उपलब्ध होता है वह 20 डिग्री सेंटीग्रेड पर पानी में घुलनशील है ऐसी स्थिति में फ्रिज का पानी ना पीने पर और पानी को थोड़ा सा कमरे के तापमान पर पीने पर भी यूरिक एसिड की समस्या से बचा जा सकता है उदाहरण से स्पष्ट है कि प्रकृति भी प्राकृतिक नियमों के अंतर्गत शरीर में उन अनावश्यक तत्वों को विस्थापित करने की एक व्यवस्था रहती है और शरीर को जीवित रखने में सहायक होती है यहां पर इस तथ्य को समझना होगा कि सोडियम को यदि मैग्नीशियम विस्थापित करता है या मैग्नीशियम को आयरन विस्थापित करता है तो यह उन तत्वों के साथ शोषण नहीं है ना ही उन तत्वों पर अत्याचार है क्योंकि विस्थापित होने वाले तत्वों के माध्यम से शरीर को नुकसान हो रहा है और जो तत्व शरीर में पहुंच रहे हैं उन से शरीर की सुरक्षा हो रही है इसलिए तत्वों के विश्लेषण के आधार पर इसे किसी भी तरह का व्यवस्था कहना उचित नहीं होगा क्योंकि सभी तत्वों का मुख्य उद्देश्य शरीर को सुरक्षित रखना है।
जब इसी वैज्ञानिक तथ्य को हम मानवाधिकार के सापेक्ष समझने का प्रयास करते हैं तो चाहे वह जाति व्यवस्था हो चाहे वह प्रजाति व्यवस्था हो उन सभी में प्रगति के नाम पर विकास के नाम पर जो भी विस्थापन हो उस विस्थापन का उद्देश्य राष्ट्र का निर्माण होना चाहिए व्यक्तिगत आधार पर कोई विस्थापन उचित नहीं है लेकिन जब किसी सड़क को बनाए जाने किसी पुल को बनाए जाने और किसी बांध को बनाए जाने के लिए कोई विस्थापन हो रहा है तो यदि सरकार आयरन के रूप में मैग्नीशियम रूपी जनता को विस्थापित कर रही है तो यह विस्थापन उस स्थिति तक मानवाधिकार की स्थापना के संदर्भ में ही देखा जाना चाहिए जहां पर उनके जीवन के अस्तर और गुणवत्ता को बढ़ाने में यह विस्थापन सहायक हो यदि ऐसा नहीं हो रहा है तो प्रमाण पत्र मांग की प्रणाली में प्रजातंत्र में जनता सदैव ही एक अधिक परमाणु क्रमांक वाली स्थिति में रहती है जो सरकार को एक नियत समय पर विस्थापित करके दूसरे को लाती है और उसी आधार पर यह समझने की आवश्यकता है कि वास्तव में सरकार द्वारा जनता का विस्थापन या जनता द्वारा सरकार का विस्थापन क्या राष्ट्र निर्माण में सहयोग कर रहा है यदि नहीं हो रहा है तो यह मानवाधिकार हनन का विषय बनता है लेकिन इसका विश्लेषण किया जाए ना वैज्ञानिक स्तर पर आवश्यक है जैसे वर्तमान में चल रहे किसान आंदोलन में एक चुनी गई।
सरकार परमाणु क्रमांक की प्रणाली में अपने को मजबूत स्थिति में रखते हुए कृषि संबंधी कानूनों को ला रही है लेकिन लेकिन जिस तरह से किसान आंदोलन के रूप में किसानों के एक वर्ग द्वारा इसका विरोध किया गया उसको समझने के लिए राष्ट्र में कृषि कानूनों से पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन आवश्यक है क्योंकि सरकार द्वारा की गई व्यवस्थाओं में आंध्र प्रदेश केरल कर्नाटका गुजरात में कृषि व्यवस्थाएं बहुत कुछ बदल चुके हैं इसलिए उनको सरकार की व्यवस्था में कोई हस्तक्षेप करने में रुचि नहीं दिखाई दे रही है लेकिन परंपरागत कृषि में पंजाब हरियाणा हिमाचल प्रदेश उत्तर प्रदेश आदि में बदलाव की स्थिति के लिए तैयारी ना होने की स्थिति के कारण यह आंदोलन उस तरीके से दिखाई दे रहा है जैसे मानवाधिकार हनन का यह प्रकरण है जबकि एक आभासी प्रकरण है यह प्रकरण शरीर में उपस्थित उसी यूरिक एसिड की तरह है जिस को विस्थापित करने के लिए जितनी मात्रा में पोटेशियम की आवश्यकता है वह पोटेशियम पहुंचाया नहीं जा पा रहा है यही पोटैशियम वह न्यूनतम समर्थन मूल्य है जिसकी मांग किसान कर रहे हैं लेकिन प्रजातंत्र की व्यवस्था में सरकार एक सामाजिक डॉक्टर की हैसियत से इस बात को सुनिश्चित स्वयं करना चाहती है कि कितना पोटेशियम दीया जाना आवश्यक है लेकिन शरीर रूपी किसान स्वयं या निर्धारित करना चाहते हैं कि उन्हें कितना पोटेशियम चाहिए अपने शरीर से यूरिक एसिड को बाहर करने के लिए और इसी बात को स्थापित करने का कार्य सरकार या किसी एजेंसी में नहीं दिखाई दे रहा है क्योंकि जैसे शरीर में स्वयं के दर्द के खत्म हो जाने से खून की कमी के पूर्ण हो जाने से व्यक्ति को समझ में आता है कि उसे लाभ हो रहा है ऐसे ही जब तक किसी प्रक्रिया को अपना लेने के बाद स्वयं किसान या महसूस ना करें कि उन्हें इससे नुकसान हो रहा है कोई सार्थक बात नहीं की जा सकती।
सिर्फ मीडिया समाचार पत्रों विपक्षी पार्टियों समूह द्वारा एक कल्पना के आधार पर इस बात को चिल्लाने से की यह स्थिति लाभकारी नहीं है एक मानवाधिकार की स्थापना वाला समाज निर्मित नहीं हो सकता उसके लिए एक बार उन तत्वों को आत्मसात करना पड़ेगा जिन से बेहतर शरीर और बेहतर राष्ट्र का निर्माण हो सकता है उसके बाद ही स्थापना हो सकती है कि वास्तव में मानवाधिकार की स्थापना हुई या उसका हनन ज्यादा हुआ है क्योंकि कृषि के नए प्रयोगों को कर कर आंध्र प्रदेश आज किस कृषि के मामले में एक नंबर पर खड़ा है इसलिए मानवाधिकार को समझने के लिए वैज्ञानिकता के आधार पर शक्ति की अवधारणा को समझना आवश्यक है क्योंकि शरीर भी स्वस्थ रहने में शक्ति की अवधारणा को ही मानता है जिससे गरिमा पूर्ण जीवन का ही विकास होता है आज राइटो लॉजी या अधिकार विज्ञान इसीलिए आवश्यकता है क्योंकि बिना विज्ञान को समझे हुए मानवाधिकार के सूक्ष्म तत्वों को समझना नितांत कठिन है इसी की स्थापना और प्रचार का कार्य संगठन एक दशक से ज्यादा समय से कर रहा है मानवाधिकार सिर्फ विधि का विषय नहीं विधि सिर्फ वह दंड है जिसके माध्यम से एक पौधे को सीधा खड़ा रखा जाता है उसे एक स्थायीत्व तो दिया जाता है लेकिन मानवाधिकार वह स्थिति है जिसमें पहले या समझना पड़ता है कि किन तत्वों के समावेश से व्यक्ति का जीवन उन्नतशील हो जायेगा