प्रोफेसर एस मित्रा, प्रख्यात अर्थशास्त्री.
आज की बात नहीं, काफी पहले से भारत में श्रमिक, किसान एक ठगा सा व्यक्ति है। तमाम नीति, कानून बने इनके संबंध में पर इनके वास्तविक कल्याण सतह पर दिखता क्यों नही ? मूल बात है जब आंकड़े नहीं तो योजना कैसी ? संगठित क्षेत्र के श्रमिक और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों में इतना अंतर क्यो ? हम मात्र संगठित क्षेत्र के कल्याण के आंकड़ो के सहारे सम्पूर्ण श्रम क्षेत्र के उद्धार की बात नहीं कर सकते। आप छोटे कस्बों, गांव के गैर कृषि श्रमिकों की बात यह कह कर नहीं टाल सकते कि उनके अपने धंधे में स्थाइत्व एवं स्थिरता संदेहास्पद है।
यहां तक कि छोटे बड़े शहरों में भी श्रमिकों की खबर लेने वालों का अभाव है। उन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया गया है और आपदा के समय थोड़ा कुछ देकर उनके साथ न्याय करना नहीं कहा जा सकता है। इस “सहायता” की आवश्यकता ही क्यों आ पड़ी ? सीधा सा जवाब है, हमने अब तक उनके लिए ऐसा ठोस कदम ही नहीं उठाया कि सामान्य और असामान्य समयों पर वह त्राहि-त्राहि न करे। भोजन, स्वास्थ, शिक्षा, वस्त्र, आवास की मौलिक अधिकार वह सुविधा हमने उन्हें दी होती तो आज वे अपने ही देश में अवांछनीय न दिखते। सारा ध्यान, ज्ञान सत्ता को चुनाव की पूर्व संध्या पर ही क्यो दिखता है ? हम क्यो नहीं बारह महिने श्रमिकों को आर्थिक रूप से सन्तुलन की अवस्था में रखते है ?
सर्वप्रथम जरुरत है राष्ट्र व्यापी एक समावेशी सर्वे, जिसमें समस्त श्रमिक वर्गो के आद्योपांन्त व्योरे एकत्रित कर विशाल डाटा बैंक बनें।
फिर तमाम श्रम कल्याणकारी योजनाओं को विभिन्न वर्गों में विभाजित कर समुचित आर्थिक पैकेजों के साथ समयबद्ध तरीके से शीघ्र क्रियान्वयन किया जाय। ऐसा न हो कि वर्तमान सरकारी उपायों का फल श्रमिक की अगली पीढ़ी को प्राप्त हो। जरूरी है गांव को इकाई माना कर चले। सड़क, पानी, बिजली, स्थानीय कच्चे माल के साथ गांव में ही उत्पादन की इकाईयां लगे ।
यह श्रमिकों को आहार के लिए देशभर में दर दर भटकना नहीं पड़ेगा। कालांतर में आपदा एक पुरानी बात हो जायेगी। यह केवल आर्थिक विकास ही नहीं बल्कि सामाजिक व मनोवैज्ञानिक एक जुटता के क्षेत्र में भी सरकार और श्रमिकों के लिए विजयी प्रयास होगा। कारण तब श्रमिकों को परिवार, परिवेश से अलग न रह कर सब साथ मिलकर क्षेत्र का विकास करेंगे और सूक्ष्म स्तर पर विकास का कुलयोग ही देश के समष्टि विकास को दर्शाता है।
इस प्रकार भारत के श्रमिको की वास्तविक स्थिती को सुधारने के लिये हमें गांव की ओर लौटो विषय को गम्भीरता से लेना पड़ेगा। हम देख चुके हैं कि आपदा और विपदा के समय सारे उद्योग धन्धे सारे बाजार औधे मुह गिर गये। लेकिन चट्टान की तरह भारत की अर्थव्य़वस्था को मजबूत बनाने के लिये किसान अनाजों का गोदाम भर दिये.. जिन समस्याओं का जिक्र बार बार आ रहा हैं। जैसे भोजन की वश्रन, भूख से तड़प और सुविधाओं का सही व्यक्ति तक नही पहुच पाना वितरण व्यवस्था जिम्मेदार हैं। हम सरकार से ये निवेदन करते हैं कि अब भी समय हैं कि भारत के किसान और कृषि अर्थव्यवस्था को मजबूत बना दिया जाये तो इस प्रकार के संकट कभी भी भारत को नुकसान नही पहुचा पायेगें। अत: अनिवार्य रूप से हमारे अन्नदाता और श्रमिक हासियें पर न रह जाये। जागरूकता ही विजय कुंजी हैं।