डॉ. ध्रुव कुमार त्रिपाठी, एशोसिएट प्रोफेसर
श्रमिक संरक्षण कानून
आपने देखा कि किस प्रकार दोनों दर्शन धन अर्जन एवं शक्ति अपना कर प्रमुख शक्ति स्थापना को प्रमुख मान रहे हैं। ऐसे में श्रमिकों की स्थिति का संरक्षण शोषण से सुरक्षा किस प्रकार संभव है. भारत के संविधान के अनुच्छेद 23 में मानव के दुर्रव्यापार और बलात् श्रम का निषेध हैं। Traffic in human being and bigger and other civil forms of forced labour are properties and any contravention of this provisions salary and offence punishable in accordance with law.
आपके संविधान में साफ लिखा है कि मानव का दुर्रव्यापार और बेगार कराना दंडनीय अपराध है। यह संविधान श्रमिकों और कामगारों के मसीहा बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर जी ने लिखा था। लेकिन इसका पालन करवाने वाले लोग जो सत्ता के शिखर पर बैठे हैं या जिनकी जिम्मेदारी है। उन सभी लोगों ने आंखें बन्द कर रखी है।
बाबासाहब तो जिंदगी गरीबों की सेवा और उनके अधिकार के लिए लड़ते रहे लेकिन पूंजीवादी समाज की आत्मा में जो शोषण का बीज बैठा है। उसे निकालना बड़ा ही कठिन है। ऐसा नहीं है कि श्रमिकों के हित में कोई कानून नहीं बनाया गया या कानून की कोई कमी है। स्वतंत्रता के बाद मजदूरों को शोषण से मुक्ती दिलाने के लिये भारत में अनेक कानून बनाये गये। लेकिन प्रशासनिक लापरवाही एवं पूजी संचयन की प्रवृति ने मंसूबों पर पानी फेर दिया।
1948 में न्यूनतम मजदूरी अधिनियम बना। 1 अप्रैल 2011 से राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी में संशोधन करके 100 प्रतिदिन से बढ़ाकर 115 प्रतिदिन कर दिया गया और 2020 में अभी मनरेगा में न्यूनतम मजदूरी रूपया 202 प्रतिदिन किया गया। यह एक सराहनीय कदम था। कर्मकार मौजा अधिनियम 1923, मातृत्व अभिलाषा अधिनियम अब लाभ अभिलाषा अधिनियमस 1961, बंधुआ मजदूर प्रथा उन्मूलन अधिनियम 1976, ठेका मजदूर विनिमय और उन्मूलन अधिनियम 1970, अंतर राज्य प्रवासी कर्मकार रोजगार विनिमय और सेवा शर्त अधिनियम 1979, भवन और अन्य कानून बाल श्रम निषेध कानून 1986, भवन और अन्य निर्माण श्रमिक अधिनियम 1996 जैसी अनेकों कानूनी अधिकार श्रमिकों को दिए गए। उनके हितों की रक्षा करने के लिए सरकारों ने कोई कोर कसर नहीं उठा रखा था। लेकिन श्रमिकों के प्रस्थिति में 1990 के बाद कोई बहुत क्रांतिकारी परिवर्तन नहीं देखने को मिला इन कानूनी आभूषणों से न्याय के देवता को खुश रखने का सामर्थ्य इन गरीबों में कभी नहीं था। अलबत्ता न्याय के चौखट पर शोषण का खतरा और भी ज्यादा बना रहता है। भारत की न्याय प्रणाली के बारे में महात्मा गांधी जी ने बड़ा साफ संकेत अपनी पुस्तक हिंद स्वराज में दिया है। ज्ञान के पुरोधा सरकार चलाने वाले तमाम लोग यह नहीं चाहते कि आम जनमानस गांधी के विचारों को पढ़ें और समझे। अगर ऐसा होगा तो उनकी पोल खुल जाएगी। गांधी जी ने सभी समस्याओं पर बड़े बेबाकी से जवाब दिया है।
भारत में श्रमिकों की वर्तमान प्रस्थिति सुबोध वर्मा जी श्रमिकों की वास्तविक जानकारी जून 2019 में एक सरकारी रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया है कि सरकार द्वारा तय किया गया न्यूनतम मजदूरी के मानदंडों से आधे से भी कम पारिश्रमिक अथवा मजदूरी दिया जा रहा है। लगभग 70% श्रमिकों के पास कोई लिखित नौकरी अथवा अनुबंध पत्र नहीं है। 54% लोगों के छुट्टियों के पैसे का भुगतान नहीं होता है। श्रमिकों से सरकार द्वारा स्वीकृत कार्य अवधि से ज्यादा समय तक काम लिया जाता है। बदले में कोई पारिश्रमिक नहीं दिया जाता। बाल मजदूरी भारत में पहले भी थी और आज भी एक बड़ी समस्या है। आए दिन आप देखते होंगे बाल मजदूरी के खिलाफ होने वाले किसी भी सरकारी मीटिंग में चाय पहुंचाने वाला बाल मजदूर दिखाई पड़ता है। तमाम चैनलों में और मीडिया हाउसेस द्वारा इसे फोकस करके इसे दिखाया भी जाता है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में बाल मजदूर 49 लाख 80 हजार है। जबकि अन्य संस्थाओं के द्वारा किये गये सर्वेक्षण के आंकड़े 2011 में 5 करोड़ बता रहे हैं। जब सरकारों की भावना बाल मजदूरी में लगे हुए बच्चों को उस मजदूरी से बचाने की बजाय उनकी संख्या कम दिखाएं जाता है, तो चिंता होना लाजमी हैं। भारत में मजदूरों की स्थिति बेहद चिंताजनक है।
जल्दी आपके सामने होगा “श्रमिक एंव कामगार विमर्श पार्ट-4”