वरिष्ठ पत्रकार अनिल सिंह की कलम से…
ये क्या बात हुई? सभी लोग बड़े महानगरों की तरफ चलने की बात करते हैं और आप चलो बनारस चले कह रहे हैं? एक छोटे से पुरबिया शहर में क्या रखा है? मैं मुस्कराया और फिर गंभीर हो गया। यही तो समस्या है कि हम अपने भीतर की ताकत को नहीं समझ पा रहे हैं। यह बनारस शहर नहीं एक संस्कृति और सभ्यता है जो जीवन के रस और सच की प्रयोगशाला है। आध्यात्मिक पौराणिक ग्रंथों में यह शहर विराजमान है और भगवान शिव का यह प्रिय क्षेत्र है। यह धर्म ही नहीं साहित्य, संगीत , कला, विज्ञान में भी समान रूप से दखल रखने वाला शहर है। सबको समरसता के साथ अंगीकार करने वाला शहर है। गंगा तट तो बहुत जगह है लेकिन जिस तरह धनुषाकार 84 घाटों को स्पर्श करते हुए यहां गंगा बहती है भला ऐसा मनोहारी दर्शन और कहां मिलेगा। इन्हीं घाटों के बीच जीवन मृत्यु के सत्य का भी दर्शन होता है।
साहित्यकारों, आध्यात्मिक साधकों, संगीत के शिखर पुरुषों की लंबी श्रृंखला इस शहर के साथ जुड़ी हुई है । फिल्मी दुनिया में भी यहां का दखल कम नहीं। यही नहीं सिर्फ हिंदू बौद्ध जैन की भी आस्था का केंद्र है यह शहर। मुसलमान तो यहां की आबोहवा और संस्कृति से जुड़े हैं। बनारसी साड़ी का यदि नाम है तो उसमें हिंदू और मुसलमान दोनों का हुनर छिपा है। यह इस शहर की गंगा जमुनी तहजीब है जो इसे आधुनिक दौर में लड़ने के लिए सशक्त बनाती है।
मैंने इतना सब कुछ कहने के बाद कहा, आप कह रहे हो, जिसने जिंदगी के महत्वपूर्ण समय वहां गुजारे हैं बनारस को करीब से देखा और जिया है आज ऐसी विरक्ति उससे क्यों? आप ही तो कहते थे जिंदा शहर है बनारस। जिसकी सुबह ही नहीं रात भी गुलजार रहती है। गलियों में भी एक से एक दुकान और लजीज खान-पान का जवाब ही नहीं। हर घर में मंदिर और दर्शन पूजन दिव्य और प्रसाद भी। मन थोड़ा पढ़ने लिखने का हुआ तो कारमाइकल लायब्रेरी भी मिल जाती है। इतना मेरा कहना था कि मित्र का चेहरा तमतमा चुका था।
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