प्रदीप सुविज्ञ , प्रसिद्ध कार्टुनिस्ट
कभी मैं ‘कार्टूनिस्ट’ हुआ करता था। रोज़ सुबह मेरे बनाये कार्टून अख़बार के प्रथम पेज पर तीन कालम में छप जाया करते थे ।
सिर्फ़ एक ‘ फ्रेम’ में सिमटे हुए मेरे कार्टून के पात्रों को घुटन महसूस होने लगी थी लिहाज़ा मैं ‘24 फ्रेम’ (फ़िल्म) की दुनिया में चला आया। इस ‘ लाक डाउन ‘ में कुछ न कर पाने की विवशता लिये मैं एक न्यूज़ चैनल पर भूखे-प्यासे अनंत यात्रा पर पैदल ही निकल पड़े मज़दूरों के पलायन का दृश्य देख कर बेचैन हो रहा था कि मेरी पत्नी की आवाज़ सुनाई पड़ी — ‘जब तक हालात ठीक नहीं हो जाते क्यों नहीं कुछ कार्टून ही बनाते हैं ।’ …..मैं तो भूल ही गया था कि मैं कार्टून भी बना सकता हूँ।