किलर कोरोना के काल में समाया कर्मचारीयों का भत्ता
लखनऊ से वरिष्ठ पत्रकार अनिल सिंह की रिपोर्ट
बहुत शोर मचा रहे थे महंगाई डायन खाए जा रही। लो भाई सरकार ने सुन ली। फिलहाल केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारियों व पेंशनरों के शब्दकोष से महंगाई 2021 तक के लिए गायब। सब कुछ ठीक रहा कोरोना भाई के कोई समर्थक प्रकट हुए या बाढ़ भूकंप सूखा अतिवर्षण भाई आ गए तो महंगाई सहित छह भत्ते फिर जल्दी प्रकट नहीं होंगे। जब झोली में कुछ नहीं होगा तो सरकार मांगती रहेगी तो भी कर्मचारी शिक्षक कहां से दान करेंगे?
इस तरह डियर चायनीज मेड कोरोना तुम्हें धन्यवाद तुम्हारी मेहनत ने महंगाई जैसे नासूर से मुक्ति दिला दी। अब तो कोई यह नहीं कहेगा महंगाई डायन खाए जा रही है। वैसे भी देशभक्ति के लिए इन भत्तों की औकात ही क्या है? अगले चरण में कर्मचारियों को सभी तरह की सब्सिडी भी छोड़ देनी चाहिए। पता नहीं कब पाकिस्तान और चीन से दो हाथ करना पड़ जाय।
सांसदों-विधायकों के त्याग पर अंगुली उठा नहीं सकते। इन लोगों ने पहले अपने वेतन भत्ते बढ़ा लिए और उसमें से तीस फीसदी महीने की कटौती कर ली है। ऐसे में उनके इतने बड़े त्याग के बाद कर्मचारी को तो खुद ही महंगाई व अन्य भत्ता छोड़ देना चाहिए। कुछ कर्मचारियों ने बताया कि 2021 तक तकरीबन 40 दिन के वेतन के बराबर राशि की कटौती होगी। अभी डर इस बात का भी है कि कहीं जुलाई में इंक्रीमेंट भी इस बार गायब न हो जाए।
अब सरकार से पूछना तो बनता है कि आप 1.76 लाख करोड़ जबरन आरबीआई से लिए तो उसका क्या किए? पिछले दिनों निर्मला सीतारमण इसका जवाब नहीं दे सकी थी। वह राशि आपदा के समय के लिए थी हमारे दूरद्रष्टा पहले ही लेकर खर्च कर चुके हैं। अब सबसे कमजोर गर्दन नौकरीपेशा और मध्यमवर्ग की है जिस पर सरकार की दृष्टि लगी हुई है। यही वर्ग सबसे बड़ा देशभक्त और कुर्बानी देने वाला है। इसे जितना कोड़ा लगेगा उतना ही मजबूती से खड़ा रहेगा। यही नब्ज सरकार ने पकड़ ली है। एक और चीज ध्यान दीजिएगा सांसदों विधायकों ने पहले अपने वेतन भत्ते शांति से बढ़वा लिए है और वही बढ़ा हिस्सा साल भर नहीं लेंगे। ये इसलिए कि इसी नजीर के आधार पर नौकरीपेशा की गर्दन पर आसानी से तलवार चलाई जा सके। किसी उद्योगपति पर ये कुछ नहीं कर सकते। उल्टे उन्हें क्षति से उबारने के लिए पैकेज देने की तैयारी में है। जो कंपनी लगातार कई सालों से चार से पांच सौ करोड़ के मुनाफे की रिपोर्ट सेबी में दे रही है। सिर्फ एक माह की बंदी में पैकेज की गुहार के साथ अपने कर्मचारियों की गर्दन मरोड़ रही है और ये सिर्फ हाथ जोड़कर विनती कर रहे हैं।
जब बात महंगाई की आई तो एक चर्चा सामयिक हो जाती है कि बीते सालों में सरकार ने थोक मूल्य सूचकांक को धीरे-धीरे ठंडे बस्ते में डाल दिया। उसी के आधार पर महंगाई की दर तय होती थी। उसकी सार्वजनिक चर्चा गायब हो गई है। एक समय कर्मचारियों में इस रिपोर्ट की चर्चा बहुत रहती थी। आज वह रिपोर्ट क्या महंगाई ही चली गई। वह विभिन्न शहरों के उपभोक्ता की व्यय करने की शक्ति और आर्थिक दशा की तस्वीर बताती थी।
बानगी देखिए इतने बड़े देश के बैंकिंग सिस्टम के सर्वोच्च पद पर कोई आर्थिक विशेषज्ञ नहीं एक इतिहास वेत्ता बैठा है। जो विशेषज्ञ थे वह पद छोड़ चले गए। ऐसे में इतिहासवेत्ता तो इतिहास की पृष्ठभूमि बनाएगा ही। जिसने उसे वहां बैठाया उसकी हर शर्त मानेगा।
चर्चा है कि अब सरकार आरबीआई से दो लाख करोड़ तक ले सकेंगी। अपना लिमिट बढ़वा लिया। तो भाई ने एक इतिहास बना दिया। नोटबंदी के दिनों में वित्त मंत्रालय में इतिहास बना रहे थे। अब आरबीआई में इतिहास बना रहे हैं। सरकार किसी भी तरह के वित्तीय अंकुश से बाहर हो चुकी है। ये स्थिति भारत जैसे विशाल देश के लिए चिंताजनक है।
नेशनल सैंपल सर्वे आर्थिक-सामाजिक गणना करता था जो योजनाओं के निर्धारण में अहम भूमिका अदा करता था। उसकी रिपोर्ट भी बीते सालों में गायब हो गई। उसके सार्वजनिक हो जाने पर बड़ी पंचायत हुई थी उसके मुखिया को इस्तीफा देना पड़ा था।
इस तरह कोरोना सरकारी कर्मचारियों शिक्षकों को पहले दिल खोलकर दानी बनाया तो बदले में सरकार ने तोहफे में महंगाई मुक्त कर दिया। कुछ पेंशनर बहुत दुखी हैं वह अपनी वृद्धावस्था का हवाला देकर महंगाई मांग रहे हैं। सरकार उन्हें पेंशन दे रही है वही बड़ी बात है। उनसे पूछिए जिन्हें पुरानी पेंशन नहीं मिलेगी या जिन्हें पेंशन नहीं मिलती। इन लोगों को तो सरकार के साथ पूरी ताकत के साथ खड़ा होना चाहिए।