लॉकडाउन (Lockdown) ने मंदिरों में आने वाले दान पर भी असर डाला है. शिरडी के साईं बाबा मंदिर ट्रस्ट को रोजाना डेढ़ करोड़ रुपए से ज्यादा का घाटा हो रहा है. शिरडी के इस मंदिर में साल में 600 करोड़ रुपए सालाना चढ़ावे के रूप में आते हैं. यानी बाबा को रोजाना एक करोड़ 64 लाख रुपए से ज्यादा का चढ़ावा आता है.
मंदिर बंद होने के बाद से 17 मार्च से 3 मई तक ऑनलाइन डोनेशन के जरिए 2 करोड़ 53 लाख ही आए. यानी रोजाना तकरीबन 6 लाख रुपए ही चढ़ावे के रुपए में आए.
ऐसे में साई बाबा ट्रस्ट को रोजाना 1 करोड़ 58 लाख रुपए का घाटा हो रहा है. अगर ये लॉकडाउन ऐसे ही रहा और जून तक चल गया तो मंदिर ट्रस्ट को 150 करोड़ रुपए से ज्यादा का घाटा होगा. मंदिर बंद होने के कारण ऑनलाइन रोजाना 8-9 साई भक्त बाबा के दर्शन करते हैं.
आम दिनों में एक दिन में बाबा के 40-50 हजार भक्त रोजाना दर्शन करते हैं और एक करोड़ रुपए से ज्यादा का दान पेटी में डाल देते हैं, जो ज्यादातर कैश के रूप में होता है.
शिरडी के साईं बाबा संस्थान की तरफ से कई तरह से सामाजिक काम किए जाते हैं. शिरडी संस्थान की तरफ से जो लोगों को प्रसाद के रूप लड्डू सस्ते रेट पर दिया जाता है, संस्थान उसपर हर साल 40 करोड़ रुपए खर्च करता है.
इसके बाद शिरडी संस्थान की तरफ से हर साल हजारों की संख्या में लोगों का मुफ्त इलाज किया जाता है. फिर वो चाहें हार्ट का ऑपरेशन हो या बड़ी संख्या में डायलिसिस की मशीनें लगाने जैसे दूसरे काम हों.
संस्थान मेडिकल पर हर साल 100 करोड़ रुपए खर्च करता है. शिरडी संस्थान की तरफ से बड़ी संख्या में गरीब बच्चों की पढ़ाई का खर्चा उठाया जाता है. इसके लिए 15 करोड़ रुपए खर्च किए जाते हैं. बाबा के मंदिर को साफ रखने और वहां की व्यवस्था को चलाने के लिए तकरीबन 8000 कर्मचारी दिन-रात काम करते हैं. इन पर साई संस्थान हर साल 160 करोड़ रुपए खर्चा करता है.
शिरडी के साईं बाबा संस्थान को हर साल तकरीबन 600 करोड़ रुपए का चढ़ावा आता है. इसमें 400 करोड़ रुपए डोनेशन के रूप में होते हैं. इसमें कैश के साथ ही सोना, चांदी और दूसरी चीजें होती हैं, जो बाबा को चढ़ाई जाती हैं. साई संस्थान के पास वर्तमान 2300-2400 करोड़ रुपए बैंक में जमा हैं, जिसका हर साल 100-150 करोड़ रुपए ब्याज के रूप में आते हैं.
संस्थान के लोगों का कहना है कि कोरोना वायरस तब आया जब साल 19-20 का वित्तीय वर्ष लगभग बीत गया था और अगला वित्तीय वर्ष 20-21 को पूरा होने में अभी कई महीनों का वक्त है.
ऐसे में जब भी मंदिर खुलेगा, बाबा के भक्त आएंगे और उनके सारे पैसे की भरपाई हो जाएगी. ऐसे में उन्हें नहीं लगता है कि संस्थान की तरफ से जो सामाजिक काम किए जाते हैं, उसमें कोई कटौती होने वाली है