लोक संगीत की दृष्टि से भारत सर्वाधिक समृद्ध है। यहां के संगीत में एकरसता नहीं,बल्कि विविधता है। प्रत्येक क्षेत्र अपने विशिष्ट संगीत के लिए पहचाना जाता था। लेकिन इसकी गूंज उस क्षेत्र विशेष तक सीमित नहीं थे। भाषा का अंतर भी बाधक नहीं था। एक दूसरे का संगीत सभी को बांधने की क्षमता रखता था। यह सब भारतीयों के जीवन शैली के साथ जुड़ा था। गोदभराई से लेकर जीवन के सभी संस्कारों के लिए कुछ न कुछ था। यह विशाल और महान विरासत रही है। लेकिन आधुनिकता के मोह में इसे उपेक्षा भी मिली। अब विवाह में भी लेडीज संगीत,डीजे आदि का क्रेज बढ़ने लगा। ढोलक, मंजीरे,लोक गीत संगीत पीछे छूटने लगे। लेकिन दूसरी तरफ लोक संगीत के संरक्षण व संवर्धन के भी प्रयास चल रहा है। लोक गायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी इसकी अलख जगा रही है। उंन्होने सोन चिरैया संस्था की स्थापना की। इसका नाम भी अपने में बहुत कुछ कहता है।
मालिनी अवस्थी के प्रयासों से निजी क्षेत्र का सबसे बड़े लोक संगीत पुरष्कार की शुरुआत की थी। राज्यपाल आनन्दी बेन पटेल ने बिहार की लोक संस्कृति की प्रसिद्ध लोक गायिका पद्म भूषण डॉ शारदा सिन्हा को लोक कलाओं के संरक्षण और संवर्धन के लिए लोकनिर्मला सम्मान से सम्मानित किया। उनको स्मृति चिन्ह, अंगवस्त्र एवं पुरस्कार राशि एक लाख रुपये का चेक भेंट किया। आनन्दी बेन ने कहा कि लोक संस्कृति हमारी जीवंत परंपरा है,इसका प्रचार प्रसार और विकास करने की जरूरत है। यह भारतीय जीवन शैली का अभिन्न अंग है। इसका सबसे जीवंत रूप हमारे घरों में शादी विवाह,जन्मदिन जैसे उत्सवों पर गाये जाने वाले संगीत और नृत्य में देखने को मिलता है। समारोह में लोकनिर्मला सम्मान से सम्मानित डॉ शारदा सिन्हा ने अपनी विशेष प्रस्तुति में भगवती वंदना प्रस्तुत की जिसमें उनकी पुत्री वंदना ने सह प्रस्तुति दी। समारोह में विभिन्न प्रदेशों से आये लोक कलाकारों ने गीत एवं संगीत का मनोहारी प्रदर्शन किया। सोनचिरैया संस्था द्वारा देश भर में मनाए जा रहे अमृत महोत्सव के क्रम में आयोजित देशभक्ति गीतों की आडियो वीडियो प्रतियोगिता देशज में भाग लेने वाले सर्वश्रेष्ठ तीन प्रतियोगियों ने भी कार्यक्रम में प्रस्तुति दी। पहला लोकनिर्मला सम्मान छत्तीसगढ़ की पद्मविभूषण तीजनबाई को तथा दूसरा सम्मान राजस्थान की पद्मश्री गुलाबो सपेरा को दिया गया था।