डॉ दिलीप अग्निहोत्री
भारत रत्न महामना मदन मोहन मालवीय का राष्ट्रीय चिंतन व्यापक था। वह देश की स्वतन्त्र कराने के साथ ही शक्तिशाली भारत का निर्माण चाहते थे। उनका जीवन इन्हीं विचारों के प्रति समर्पित रहा। वह उन महापुरुषों में शामिल थे जो भारत की परतंत्रता के मूल कारण पर गहन विचार करते थे। भारत कभी विश्वगुरु था। लोग यहां ज्ञान प्राप्त करने आते थे। लेकिन ऐसा भी समय आया जब विदेशी आक्रांताओं ने यहां अपना शासन स्थापित किया। राष्ट्रीय स्वाभिमान की भावना कमजोर पड़ने से देश कमजोर हुआ था। यह बात उन्हें उद्देलित करती थी। वह कांग्रेस में रहकर देश को स्वतन्त्र करने के लिए संघर्ष चला रहे थे। काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना के माध्यम से वह राष्ट्रीय चेतना का संचार करना चाहते थे। मालवीय जी व्यक्ति का समग्र विकास चाहते थे। इसीलिए वे शिक्षा के साथ साथ स्वास्थ्य को भी आवश्यक मानते थे। वे सभी विद्यार्थियों को इसके लिए प्रेरित करते थे। मालवीय जी का प्रताप था कि बीएचयू के चार लोगों को भारत रत्न मिला। नरेंद्र मोदी सरकार ने महामना को भारत रत्न दिया। डा.भगवान दास, डा.राधाकृष्णन, प्रो.सी.एन.राव को भी भारत रत्न मिला था।
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि मालवीय जी और अटल जी ने जिन जीवन मूल्यों को जिया यह उनका सम्मान है। महामना होने के भाव को अटल जी ने भी समझा था। छोटे मन का व्यक्ति कभी आध्यात्मिक नहीं हो सकता। महामना ही उदार होता है। महामना भारत में प्राचीन चिंतन और आधुनिक विज्ञान के बीच समन्वय चाहते थे। मालवीय जी ने बाई इंडियन का नारा दिया था। प्रधानमंत्री उस भावना से प्रेरित होकर मेक इन इंडिया अभियान चला रहे हैं।
उन्नीसवीं शताब्दी के छठे दशक में गांधी जी स्वामी विवेकानन्द,और महामना मालवीय जी इन तीनों का प्रादुर्भाव हुआ। तीनों ने विश्व में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाई। भारत की आध्यात्मिक शक्ति को जगाया। महामना राजनीतिक विविधता के बावजूद सबके लिए सम्मानित थे। उनमें दूरदृष्टि लोक जागरण की ऊर्जा संपादक जैसे अनेक गुण थे। वे बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। राजनीतिक विचार के बावजूद उनका आधार आध्यात्मिक था। सामाजिक समरसता के लिए वे समर्पित थे। परतंत्रता के समय ही भारतीय जनमानस में गांधी जी को महात्मा, तिलक को लोकमान्य, मालवीय जी को महामना की उपाधि मिल चुकी थी। महामना को भारतरत्न देकर मोदी सरकार ने साबित किया कि वह रत्नों की पारखी है।