गुजरात से वरिष्ठ पत्रकार सत्यम ठाकुर की रिपोर्ट….
मित्रों कौन जिम्मेदार होगा राजू साहनी का क्या कोई जिम्मेदारी लेगा एक गरीब प्रवासी मजदूर गुजरात से यूपी जाते वक्त सड़क पर चलते हुए भूख प्यास से अपना दम तोड़ देता है। सरकार उत्तर प्रदेश में भी सरकार हैं और गुजरात में भी सरकार है। सरकारे दोनों हैं। लेकिन फिर भी राजू साहनी विवश, लाचार और गरीबी का मारा होने की वजह से मर गया। ऐसे अब अलग अलग दो राज्यों की सरकारों के बीच उसकी जिम्मदारी का दावित्व उलझ गया हैं।
राजू साहनी हैं कौन ?
अब आपके दिमाग में आ रहा होगा कि ये राजू साहनी हैं कौन… जिसकी हम बात कर रहे हैं। राजू कौन सा वीवीआई परसन हो जिसकी इतनी बातें हो रही हैं। तो हम आपको बता दे कि राजू कोई वीवीआईपी परसन नही हैं। राजू एक निहायत गरिब इन्सान, हालात का मारा इन्सान हैं। इस किलर कोरोना ने उस पर अपनी ऐसी काली दृष्टी डाली की राजू ने इस प्यारी दुनिया को छोड़ने दिया। राजू साहनी मूलत उत्तर प्रदेश का रहने वाला हैं। कुछ महिने पहले राजू साहनी रोजी रोटी की तलाश में वो गुजरात आया था। लाकडउन होने के बाद राजू गुजरात में ही रूका रहा। लेकिन जब राजू को पैसे की कमी होने लगी, भूख सताने लगी, सब्र का बांध टूटने लगा तो राजू अपनी साईकिल से कई सौ किलो मीटर दूर अपने वतन की ओर निकल पड़ा।
लेकिन राजू जैसे ही गुजरात के करचन पहुचा वैसे ही कई दिनों से भूखे प्यासे राजू ने अपने वतन के बजाय इस दुनिया से किसी और दुनिया की ओर चला गया। राजू अब हम सब के बीच में नही हैं। राजू के घर वालों की आखें अभी भी राजू का इन्तजार कर रही हैं। मदर्स डे पर राजू की मां की लरसती आखें राजू को तलाश रही हैं। राजू के मासूम बच्चे गांव के घर की चौखट पर अपने पााप का इन्तजार कर रही हैं। लेकिन अब इन बच्चों की इन्तजार अब कभी खत्म नही होगा। क्यों कि राजू अब इस दुनिया को अलविदा जो कह दिया हैं।
सवाल और जिम्मेदारी
राजू तो इस दुनिया को अलविदा कर चला गया….लेकिन राजू अपने पीछे एक सवाल जरूर छोड़ गया कि अखिर राजू की मौत या फिर उसके जैसे न जाने कितने मासूम प्रवासी मजदूरों की मौतों का जिम्मेदार कौन होगा…..
5 ट्रिलियन इकॉनमी बन जाने का ढ़ोंग करने वाले वे सारे लोग इस गरीब को नहीं बचा सके। हो सकता है कि हम कुछ तल्ख शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं लेकिन क्या करें हम विवश है। उसकी गरीबी पर हुई मौत से हम गुस्से में है जो शायद हमारे शब्दों में आपको झलक रहा हो, लेकिन माफ करना मेरे देशवासियों गरीबों का मजाक तो हम सब लोगों ने उड़ाया है आज गरिबों के सम्बन्ध में कोई वास्तविक संख्या या डाटाकिसी भी राज्य सरकार या भारत सरकार के पास नही हैं। मित्रों जब हम गरिबों का नाम लेता हूं तो मेरे आंख के सामने ढेला वाले, खुमचा वाले, कूड़ा उठाने वाले, सीवर साफ करने वाले, शिक्षा देने वाले भी दिहाड़ी मजदूर ही हैं। जिनके आंकड़े न सरकार रखना चाहती हैं ना ही सार्वजनिक करना चाहती हैं।
दिहाड़ी मजदूर जो फैक्ट्रीयों में काम करते है, व्यवसायिक प्रतिष्ठानों, ठेके पर खाद्दानों और बड़े बड़े कास्तकारों के यहां काम करते हैं। पंचर से हवाई जहाज तक बहाने वाले ठेके पर मजदूरों के रहनूमा सब अपना मतलब साधते हैं। वह सिर्फ उची उची अट्टालिकाओं को बनाने और बड़े-बड़े फैक्ट्रियों फैक्ट्रियों में अपने श्रम से लोगों की तिजोरी या भरने का ही काम कर पाए हैं। ना उन्हें अपने आशियाने का पता है ना ही उन्हें अपने बाल बच्चों के भविष्य का पता है। उन्हें तो पता है सिर्फ अपनी मजदूरी का जो सिर्फ जीवन चला सकती है और जिन्दगी भर चलती भी रहती हैं।