• – अकूत प्रेम, समर्पण और त्याग की मूर्ति ‘माँ’ की करें पूजा।
  • – शिव चालीसा, कृष्ण स्तुति, महागौरी आराधना, गौ सेवा और सोमवार व्रत से संबंध होंगे प्रगाढ़।

संदीप त्रिपाठी

वाराणसी। कहते हैं धरती पर अगर कोई भगवान है तो वो है “माँ”! माँ के साथ एक ऐसा रिश्ता होता है, जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। वैसे तो माँ के लिए कोई एक दिन नहीं हो सकता, लेकिन वो अलग बात है कि एक खास दिन को माँ के नाम समर्पित कर दिया गया है। हर साल मई महीने के दूसरे हफ्ते में रविवार के दिन “मदर्स डे” मनाया जाता है। इस साल यह खास दिन रविवार, 10 मई को मनाया जा रहा है। यह बात बतलाने वाली नहीं है कि अपनी सारी परेशानियों, दुखों को एक तरफ कर अपने बच्चों की हर खुशी का ध्यान रखती है माँ! मदर्स डे का दिन लोगों को अपनी माँ से जुड़ी भावनाओं को जाहिर करने का मौका देता है।

‘माँ ‘ शब्द का केवल उच्चारण करने से ही मनुष्य में विश्वास और प्रेम की भावना उत्पन्न होती है। इस ब्रह्माण्ड का निर्माण भी बिना माँ के संभव नहीं है, इसलिए हम अपनी प्रकृति यानि धरती को भी माँ कहकर संबोधित करते हैं। एक माँ और उसके बच्चे के बीच का रिश्ता बहुत ही अनमोल होता है और उस रिश्ते का वर्णन करने के लिए शब्द हमेशा कम पड़ेंगे। मां भगवान का बनाया सबसे नायाब तोहफ़ा है। हर इंसान के जीवन में माँ ही वो महिला होती है, जो बिना कुछ बोले ही भावनाओं को समझ जाती है। दुनिया वालों के लिए एक व्यक्ति चाहे कितना भी बुरा क्यों ना हो, लेकिन वही इंसान माँ के लिए सबसे प्यारा होता है। शायद इसलिए आज तक कोई भी मां की ममता को नहीं समझ सका।

माँ को कहते हैं त्याग की मूर्ति

माँ से बच्चे का रिश्ता तब शुरू होता है, जब कोई महिला गर्भधारण करती है। नौ महीने माँ बच्चे को अपनी कोख़ में रखती है। इस दौरान न जाने कितने बदलाओं से होकर उसे गुज़ारना पड़ता है। चलने-फिरने, खाने-पीने, सोने यहाँ तक की खांसते समय भी उसे बेहद ध्यान रखना होता है। मूड स्विंग्स, शरीर में बदलाव, ज़ी मिचलना, खाने में स्वाद नहीं आना, बार-बार उलटी आना, प्रसव के समय हुई पीड़ा और भी ऐसी और इससे भी बड़ी कई चीज़ें जो एक माँ ख़ुशी-ख़ुशी इस उम्मीद में सहती है कि नौ महीने बाद जब वो पहली बार अपने बच्चे को गोद में लेगी, तो उस पल की ख़ुशी उसके इन बीते नौ महीनों में झेले सारे दुःख-दर्द को गायब कर देगी। सिर्फ पैदा होने पर ही नहीं बल्कि अपनी ज़िंदगी की आखिरी सांस तक माँ अपनी ख़ुशी, सेहत और सारी चीज़ों से पहले अपने बच्चों की ख़ुशी के लिए प्रार्थना करती है।

यहाँ से हुई मदर्स डे मनाने की शुरुआत

अगर बात करें माँ को समर्पित मदर्स डे की शुरूआत कि तो माँ के लिए इस खास दिन को मनाने से जुड़ी कई मान्यताएं हैं। कुछ लोगों का मानना है कि इस खास दिन की शुरुआत 1912 में अमेरिका से हुई थी। वर्जीनिया में एना मारिया जार्विस जो कि एक प्रतिष्ठित अमेरिकन एक्टिविस्ट थीं, उन्होंने ही मदर्स डे की शुरुआत की। एना अपनी माँ को अपनी प्रेरणा मानती और उनसे बेहद प्यार करती थीं। उन्होंने कभी शादी नहीं की और माँ की मौत होने के बाद अपना प्यार जताने व उनके प्रति सम्मान दिखाने के लिए उन्होंने इस दिन की शुरुआत की। जिसके बाद से पूरी दुनिया में 10 मई को मदर्स डे के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई।

मान्यताओं के अनुसार, मदर्स डे की शुरुआत ग्रीस से हुई थी, जहाँ ग्रीस के लोग इस दिन ग्रीक देवताओं की माता की “स्यबेसे” पूजा करते थे। ईसाई समुदाय के लोग मदर्स डे के दिन को “वर्जिन मेरी” का दिन मानते हैं। वहीँ यूरोप और ब्रिटेन जैसे देशों में “मदरिंग संडे” मनाया जाता है। भारत में, हम मई महीने में दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाते हैं। इस साल यह खास दिन 10 मई को है।

 

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