अर्जुन हुए पुनर्जीवित
महाभारत के बारे में आप लोगों ने सुना ही होगा। महाभारत में भी अर्जुन को लेकर दो कहानियां सामने आती हैं। जिसके बारें में आज हम बतायेगें। कुंती पुत्र अर्जुन को महाभारत के समय का सबसे बड़ा धनुर्धर माना गया है। ऐसा भी माना जाता है कि अर्जुन के पास अगर धनुष चलाने का कौशल नहीं होता तो पाण्डव शायद ही महाभारत युद्ध जीत पाते। साथ ही अधिकतर लोग यही जानते हैं की अर्जुन की मृत्यु पांडवों के सशरीर स्वर्ग यात्रा के दौरान हुई थी। लेकिन दर्शको महाभारत में एक ऐसे भी कथा पढ़ने को मिलता है जिसमे में बताया गया है की अर्जुन की इससे पहले भी एक बार मृत्यु हो चुकी थी… जिसके बारें में हम पहले आप को बता चुके हैं आज हम आप को बतायेगें कि अर्जुन पहली बार मृत्यु के बाद कैसे हुए पुनर्जीवीत..
तब श्री कृष्ण देवी गंगा को समझते है की अर्जुन ने जिस तरह से अपने पितामह का वध किया वो स्थिति स्वंय पितामह ने अर्जुन को बताई थी। क्यूंकि पितामह जानते थे की उनके होते हुए पांडवों की विजय असंभव थी। इसलिए उन्होंने स्वंय युद्ध से हटने का मार्ग अर्जुन को बताया था। अर्जुन ने तो बभ्रुवाहन के प्रहारों को सिर्फ रोका है। स्वंय प्रहार तो नहीं किया। अर्जुन ने तो कामाख्या देवी द्वारा दिए गए दिव्य बाण और आपका मान बढ़ाया है।
कृष्ण के तर्क सुनकर गंगा दुविधा में पड़ गयीं और श्री कृष्ण से इस दुविधा से बाहर निकलने का मार्ग बताने को कहा।
तब कर कृष्ण ने देवी गंगा से प्रतिज्ञा को वापस लेने को कहा। फिर देवी गंगा ने अर्जुन के सिर को धड़ से जोड़े जाने का रास्ता बताया और उसके बाद श्री कृष्ण ने अर्जुन की दूसरी पत्नी और बभ्रुवाहन की सौतेली माँ उलूपी से प्राप्त नागमणि द्वारा अर्जुन को जीवित कर कर दिया।