डॉ दिलीप अग्निहोत्री
पूर्व केंद्रीय मंत्री व उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल राम नाईक पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को भवपूर्ण श्रद्धांजलि दी। उन्होंने जो कहा उससे प्रणव दा के व्यक्तित्व व राजनीतिक जीवन शैली का अनुमान लगाया जा सकता है। राम नाईक लिखते है कि “राजनीति में विभिन्न विचारधारा होते हुए भी स्नेह कैसे पनपता है इसका प्रमाण भी हम दोनों की मित्रता है। 1980 के दशक में जब मैं मुंबई के बोरीवली क्षेत्र का विधायक था तब देश के वित्त मित्र प्रणबदा से पहली बार मिला था। क्षेत्र में जीवन बीमा आयोग की बड़ी कालनी थी वहां स्कूल के लिए जगह की माँग लेकर मैं उनके पास गया था। कुछ वर्षों बाद जब मैं सांसद बना तब भी वह केंद्रीय मंत्री थे। कुछ वर्षों बाद जब मैं केंद्र सरकार में मंत्री था तब वें विपक्ष के नेता थे। एक दुसरे के प्रति हमने हमेशाही आदरभाव रखा। स्वाभाविक था कि जब राज्यपाल पद की शपथ ग्रहण कराने के पहले मैं उनसे मिला तब उन्होंने गले लगाकर स्वागत किया और संविधान की प्रति मुझे भेंट की। आज भी मुझे उनके शब्द याद है उन्होंने कहा था,‘अब आप भी राजनीति छोड़ कर संविधानिक जिम्मेदारी का वहन करेंगे। इम्तिहान की घडी में भी आप संविधान का पालन करेंगे यह मुझे विश्वास है!’’राम नाइक आगे लिखते है कि बतौर राज्यपाल कई बार चुनौतियों का मुझे सामना करना पड़ा। उन परिस्थितियों में हमेशा मुझे प्रणबदा का मार्गदर्शन मिला। हमारी अंतिम मुलाकात पिछले वर्ष मैं दिल्ली गया तब हुई। जिम्मेदारियों से मुक्त हम दोनों ने ढेर सारी दिल खोल कर बाते की थी। यह प्रसंग प्रणव दा के विषय में बहुत कुछ बताने वाला है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में वैचारिक मतभेद स्वभाविक है। इसके बाबजूद राष्ट्रीय हित के विषयों पर आम सहमति भी दिखनी चाहिए।
पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने सदैव इसी द्रष्टिकोण का परिचय दिया। वह दशकों तक कांग्रेस के शीर्ष नेताओं में शुमार रहे। यह मुकाम उन्होंने अपनी योग्यता व प्रशासनिक कुशलता से हासिल किया था। उन्होंने सदैव सिद्धांतो को महत्व दिया,उसपर अमल किया। चाटुकारिता की संस्कृति से दूर रहे। शायद यही कारण था कि दो हजार चौदह में उनको कांग्रेस पार्टी ने प्रधानमंत्री नहीं बनाया। अन्यथा उस समय की स्थिति में वह श्रेष्ठ विकल्प के रूप में थे। इसके पहले राजीव गांधी से भी उनके मतभेद हुए थे। राजनीति में किसी के प्रति उनकी व्यक्तिगत दुर्भावना नहीं थी। विपक्ष के अनेक नेताओं से उनके बहुत अच्छे संबन्ध थे। राजनीतिक सिद्धांत व देश सेवा का भाव उन्हें विरासत में मिला था। उनके पिता स्वतन्त्रा संग्राम सेनानी थे। देश की आजादी के लिए उन्होंने दस वर्ष अंग्रेजों की जेल यातना झेली थी। प्रणव मुखर्जी के प्रारंभिक कैरियर में अनेक पड़ाव थे। वह क्लर्क,शिक्षक,पत्रकार और अधिवक्ता रहे। पांच दशक से अधिक समय वह राजनीति में रहे,देश के सर्वोच्च पद को सुशोभित किया। इसके पहले अनेक बार राज्यसभा और केंद्रीय मंत्रिपरिषद के सदस्य रहे। करीब पांच दशक पुराना उनका संसदीय जीवन 1969 में कांग्रेस पार्टी के राज्यसभा सदस्य के रूप में शुरू हुआ था। इसके बाद 1975,1981,1993 और1999 में भी राज्यसभा सदस्य चुने गये। 1973 में वह केंद्र में औद्योगिक विकास उप मन्त्री बने। 1982 से 1984 तक कैबिनेट मंत्री रहे। 1984 में भारत के वित्त मंत्री बने थे। दो हजार चार की यूपीए सरकार में वह लोकसभा के नेता बने थे। वह पश्चिम बंगाल के जंगीपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से पहली बार लोकसभा चुनाव में विजयी हुए थे। जबकि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह राज्यसभा के सदस्य थे। प्रणव दा ने समय समय पर रक्षा,वित्त,विदेश, राजस्व,नौवहन,परिवहन संचार,आर्थिक मामले, वाणिज्य और उद्योग जैसे मंत्रालय बखूबी संभाले थे। मनमोहन सिंह की दूसरी सरकार में वह भारत के वित्त मन्त्री बने। 1991 से 1996 तक योजना आयोग के उपाध्यक्ष पद पर आसीन रहे