सलिल पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार, मिर्जापुर.
कन्या की उम्र 2 से 10 वर्ष हो
नवरात्र की पूजा में कुमारी कन्या के पूजन का विधान शास्त्रों में बताया गया है। श्रीमद्देवीभागवत के अनुसार इस अवधि में कुमारी कन्या के पूजन से मातारानी प्रसन्न होती है । कुमारी कन्या के पूजन में 2 वर्ष से लेकर 10 वर्ष तक की कन्या के पूजन का विधान है । प्रतिदिन एक ही कन्या की पूजा की जा सकती है या सामर्थ्य के अनुसार तिथिवार संख्या के अनुसार कन्या की पूजा भी की जा सकती है । यानि जैसे जैसे तिथि बढ़े, वैसे वैसे कन्या की संख्या बढ़ाते रहना चाहिए । इसके अलावा ज्यादा सामर्थ्य है तो प्रतिदिन दोगुनी या तिगुनी संख्या भी की जा सकती है । शास्त्रों में कहा गया है कि जितने अधिक लोगों के हितार्थ पूजा की जाती है, उसी के अनुसार दैवी कृपा भी मिलती है । पूजा में संकुचित दृष्टिकोण नहीं रखना चाहिए ।
कुमारी पूजा के क्रम में श्रीमद्देवीभागवत के प्रथम खण्ड के तृतीय स्कंध में उल्लिखित है 2 वर्ष की कन्या ‘कुमारी’ कही गयी है जिसके पूजन से दुःख-दरिद्रता का नाश, शत्रुओं का क्षय और धन, आयु, एवं बल की वृद्धि होती है । इसी प्रकार 3 वर्ष की कन्या ‘त्रिमूर्ति’ कही गयी है जिसकी पूजा से धर्म,अर्थ, काम की पूर्ति, धन-धान्य का आगमन और पुत्र-पौत्र की वृद्धि होती है । जबकि 4 वर्ष की कन्या ‘कल्याणी’ होती है जिसकी पूजा से विद्या, विजय, राज्य तथा सुख की प्राप्ति होती है। राज्य पद पर आसीन उपासक ‘कल्याणी’ की पूजा करे । इसी तरह 5 वर्ष की कन्या ‘कालिका’ होती है । जिसकी पूजा से शत्रुओं का नाश तथा 6 वर्ष की कन्या ‘चंडिका’ होती है जिसकी पूजा से धन तथा ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है । 7 वर्ष की कन्या ‘शाम्भवी’ है जिसकी पूजा से दुःख-दारिद्र्य का नाश, संग्राम एवं विविध विवादों में विजय मिलता है जबकि 8 वर्ष की कन्या ‘दुर्गा’ के पूजन से इहलोक के ऐश्वर्य के साथ परलोक में उत्तम गति मिलती है और कठोर साधना करने में सफलता मिलती है । इसी क्रम में सभी मनोरथों के लिए 9 वर्ष की कन्या को ‘सुभद्रा’ और जटिल रोग के नाश के लिए 10 वर्ष की कन्या को ‘रोहिणी’ स्वरुप मानकर पूजा करनी चाहिए ।
अलग-अलग तिथियों में भोग की वस्तुएं
माता को प्रसन्न करने के लिए यद्यपि ‘निर्मल मन’ ही पर्याप्त है लेकिन शास्त्रों के हिसाब से षोड्षोपचार पूजन करना चाहिए । माता को अलग अलग दिनों में अलग अलग वस्तुओं को भी समर्पित करने का भी विधान है । लेकिन पूजा के निमित्त सिंदूर, लौंग-इलायची, सुपारी तथा देशी गाय का घी जरूर प्रतिदिन चढ़ाना चाहिए । प्रसाद के रूप में चढ़ाने के बाद इसका प्रयोग किया जाना चाहिए । इसी घी से दीपक तथा हवन भी करना चाहिए ।
धर्मग्रन्थों में मातारानी को प्रसन्न करने के लिए अलग अलग दिनों में चढ़ाए जाने वाली वस्तुओं में प्रतिपदा-चंदन का तेल, त्रिफला, कंघी । द्वितीया-रेशमी वस्त्र । तृतीया-दर्पण, आलता तथा सिंदूर । चतुर्थी-दही, घी, मधु, चांदी की कोई वस्तु, काजल। पंचमी-आभूषण । षष्ठी-बेलपत्र । सप्तमी-पुस्तक अंतिम दिन तक देवी के समीप रखकर ज्ञान की कामना । अष्टमी- मानसिक विकारों को खत्म करने का भाव भेंट करना । नवमी- छत्र भेंट कर 2 से 10 वर्ष की कन्या का पूजन । इसी के साथ नौ दिन भोग लगाने वाले पदार्थों में प्रतिपदा- रोग मुक्ति के लिए देशी गाय का घी । द्वितीया-दीर्घायु के लिए चीनी । तृतीया- दुःखों से मुक्ति के लिए दूध । चतुर्थी- विपत्तियों से छुटकारे के लिए मॉलपुआ । पंचमी- बौद्धिक विकास के लिए केला । षष्ठी-, सौंदर्य के लिए मधु । सप्तमी-शोकनाश के लिए गुड़ । अष्टमी- संताप दूर के लिए नारियल । नवमी- सर्व विधि लाभ के लिए धान के लावा का भोग लगाए जाने का विधान बताया गया है।