डॉ दिलीप अग्निहोत्री
दुनिया के सभी विकसित देशों ने अपनी मातृभाषा को हो सर्वोच्च महत्व दिया। इसी को अपने देश की शिक्षा का माध्यम बनाया। इनमें वह देश भी शामिल है,जिनकी मातृभाषा अंग्रेजी नहीं थी। रूस, चीन,जापान,जर्मनी, फ्रांस ने अपनी मातृभाषा को ही शिक्षा का माध्यम बनाया। लेकिन भारत में अंग्रेजी को चलाये रखने के कारण स्थानीय भाषाओं का महत्व कम हुआ। अंग्रेजी सीखना अनुचित नहीं है,लेकिन उसे मातृभाषा से ऊपर स्थान देना अनुचित है। नई भारतीय शिक्षा नीति में इस कमी को दूर करने का प्रयास किया गया है। इसमें मातृभाषा और स्थानीय भाषा को महत्व दिया गया है। भारतीय भाषाओं के संरक्षण मिलेगा। स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक भारतीय भाषाओं को उचित महत्व दिया जाएगा। सभी भारतीयभाषाओं के लिए एक राष्ट्रीय संस्थान इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ ट्रांसलेशन एंड इंटरप्रिटेशन की स्थापना होगी। इसमें इंजीनियरिंग और मेडिकल पढ़ाई भी शामिल है। नई शिक्षा नीति में स्कूली शिक्षा में अब त्रिभाषा फॉर्मूला चलेगा। इसमें संस्कृत के साथ तीन अन्य भारतीय भाषाओं का विकल्प होगा। इलेक्टिव में ही विदेशी भाषा चुनने की भी आजादी होगी। सरकार ने पाँचवी क्लास तक मातृभाषा,स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई का माध्यम रखने की योजना बनाई है,इसे क्लास आठ या उससे आगे भी बढ़ाया जा सकता है। विदेशी भाषाओं की पढ़ाई सेकेंडरी लेवल से होगी।
जिसका उद्देश्य बच्चों को उनकी मातृभाषा और संस्कृति से जोड़े रखते हुए उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ाना है। छोटे बच्चे घर में बोले जाने वाली मातृभाषा या स्थानीय भाषा में जल्दी सीखते हैं। इससे बच्चों को अपनी संस्कृति से जोड़े रखने में सहायता मिलेगी। राजस्थान में इसी विषय पर राष्ट्रीय बेबीनार का आयोजन किया गया। जिसमें राज्यपाल कलराज मिश्र का मुख्य व्याख्यान हुआ। उन्होंने नई शिक्षा नीति का भाषिक संदर्भ और हिन्दी के वैश्विक परिदृश्य पर विचार व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि स्वभाषा से स्वाभिमान जागृत होता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है। हिन्दी का वर्चस्व विश्व में बन रहा है। शिकागो में स्वामी विवेकानन्द द्वारा दिया गया हिन्दी में भाषण, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा विदेशों में दिये गए हिन्दी में भाषण के प्रभाव से सभी लोग परिचित हैं। मातृ भाषा का स्थान सर्वोच्च होता है। यह युग तकनीकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी का युग है। आज विश्व में संस्कृत सहित सभी भाषाओं में साॅफ्टवेयर विकसित हो रहे है। भाषा विज्ञान के नये सिद्वान्त भी तद्नुसार विकसित हो रहें है। प्रौद्योगिकी से एक सार्वभौमिक भाषा के जन्म लेने की संभावना भी बनती जा रही है। विश्व में हिन्दी भाषा बोलने वालों की संख्या पचास करोड़ से अधिक है,जो सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषाओं में विश्व में दूसरे स्थान पर है। बेबीनार में हिन्दी को मानसिक स्वाधीनता की भाषा बताया गया। कहा गया कि स्वस्थ सांस्कृतिक बीजारोपण के लिए बालमन में मातृ भाषा का प्रभाव होना आवश्यक है। शिक्षा व भाषा का सम्बन्ध घनिष्ठ होता है।