डॉ दिलीप अग्निहोत्री

 

विदेश नीति के क्षेत्र में नेतृत्व बदलते है,लेकिन राष्ट्रीय हित को स्थाई तत्व माना जाता है। इतना अवश्य है कि मजबूत नेतृत्व से संबंधित देश की विदेश नीति भी सुदृढ़ होती है। यह बात अमेरिका और भारत के रिश्तों पर भी लागू होती है। द्विपक्षीय संबधों को मजबूत बनाये रखना अब केवल भारत के ही हित में नहीं है। यह अमेरिका के लिए भी उतना ही आवश्यक है। अमेरिका में जब चुनावी प्रक्रिया चल रही थी,उसी समय फ्रांस में आतंकी प्रकरण हुआ था। पूरे यूरोप से लेकर अमेरिका तक ईसाई जगत में इसे लेकर नाराजगी थी। इसीलिए फ्रांस के राष्ट्रपति द्वारा उठाये गए कदमों को समर्थन मिला। इसमें अमेरिका की डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्य भी शामिल थे। ऐसे में नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन और उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के लिए भी आतंकी मुल्क के साथ खड़े होना मुश्किल होगा। अमेरिकी जनता वहां की प्रभावशाली लॉबी भी इसे स्वीकार नहीं करेगी। इसी प्रकार अंतरराष्ट्रीय मंच पर चीन की बढ़ती भूमिका भी अमेरिका को बेचैन करेगी। यह सही है कि डोनाल्ड ट्रंप के समय भारत अमेरिका संबद्ध आगे बढे थे। लेकिन कई बार डोनाल्ड की अस्थिर मानसिकता व बदलते बयान किरकिरी भी कराते थे। यह उनकी कमजोरी भी थी। वह चीन व पाकिस्तान के साथ भारत की मध्यस्थता हेतु आतुर रहते थे। लेकिन भारत के जबाब से उन्हें हर बार मुंह की खानी पड़ती थी। जो बाइडेन के साथ यह परेशानी नहीं होगी।

यह सही है कि उन्होंने तीन सौ सत्तर नागरिकता संशोधन कानून के प्रतिकूल बयान दिया था। लेकिन यह भी समझना होगा कि उस समय राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप व रिपब्लिकन इसका समर्थन कर रहे थे। इसलिए डेमोक्रेटस के बयान अलग थे। लेकिन अब यह कोई मुद्दा ही नहीं रह गया है। यह बिडम्बना है कि इसीलिए भारत के कुछ लोग डोनाल्ड ट्रंप की जगह जो बाइडेन की तारीफ कर रहे थे। लेकिन यह उनकी सीमित सोच थी। जब ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान में घुस कर मारा गया,तब अमेरिका में जो बाइडेन उपराष्ट्रपति थे। राष्ट्रपति बराक ओबामा भी उन्हीं की पार्टी के थे। भारत अमेरिका के संबन्धों पर इसी धरातल पर विचार किया जा सकता है। भारत में इस समय मजबूत नेतृत्व है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अनेक असंभव लगने वाली समस्याओं का समाधान हुआ है। ऐसे मसलों की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा भी हुई है। भारतीय संसद ने दो दिन की चर्चा के बाद अनुच्छेद तीन सौ सत्तर को हटाने का प्रस्ताव पारित कर दिया था। फारूक अब्दुल्ला महबूब,मुफ़्ती चिदम्बरम जैसे लोगों के बयानों का अमेरिका के लिए कोई महत्व नहीं है।

अमेरिका के लोगों के लिए भी यह कोई मसला नहीं है। भारत सम्प्रभु देश है। भारत का अपना संविधान है। संसद ने अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए अस्थाई अनुच्छेद को हटा दिया,इससे दुनिया का कोई लेना देना नहीं हो सकता। इसी प्रकार पाकिस्तान,बंगला देश, अफगानिस्तान में उत्पीड़ित हिन्दू,सिख बौद्ध आदि को नागरिकता देने का कानून बना। यह भारत का अधिकार है। इस पर परेशान तो उनको होना चाहिए जो देश उत्पीड़न कर रहे है। भारत ने तो मानवता के अनुरूप कार्य किया है। वैसे भी यह विषय पुराने हो गए है। यह सही है कि डेमोक्रेट्‍स कमला हैरिस ने भी कश्मीर व मानवाधिकार का विषय उठाया था। लेकिन सत्ता में पहुंच कर उन्हें व्यापक द्रष्टिकोण रखना पड़ेगा। तब उन्हें पाकिस्तान व चीन में मानवाधिकार उल्लंघन व आतंकवाद दिखाई देगा। इसको जनरन्दाज करना मुश्किल होगा। यह तथ्य भी महत्वपूर्ण है कि भारत से संबद्ध ठीक रखने अमेरिका की भी मजबूरी है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र सबसे बड़ा बाजार है। अब शीतयुद्ध के समय की बात करना निरर्थक है। भारत तब सोवियत संघ व पाकिस्तान तब अमेरिका के साथ था। शीतयुद्ध के बाद परिदृश्य बदल गया है। डेमोक्रेटिक पार्टी भारत के प्रति उदार रही है। डेमोक्रेट्स भारत के परंपरागत मित्र रहे हैं। इसके शासन में रिश्ते ज्यादा मजबूत रहे है।

Modi greets Joe Biden, says will look forward to work closely | The Rahnuma  Dailyनरेंद्र मोदी की कुशलता में रिपब्लिकन डोनाल्ड ट्रंप के कार्य काल में भी संबधों में सुधार हुआ। एक बार फिर माना जा रहा है कि डेमोक्रेट के साथ भी परम्परा का निर्वाह होगा। दोनों देशों के बीच सामरिक सुरक्षा और कारोबार के क्षेत्र में सहयोग का विस्‍तार पिछले कुछ वर्षों में हुआ,वह आगे बढ़ेगा। आतंकवाद के विरोधी पर भारत की नीति और चीन से टकराव के के मुद्दे पर भारत के रुख का समर्थन किया है। राष्‍ट्रपति ट्रंप भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अच्‍छे दोस्‍त साबित हुए हैं। ऐसे में यह सवाल खड़ा हो रहा है कि क्‍या बाइडन के कार्यकाल में दोनों देशों के बीच पहले की तरह ही मधुर होंगे। रिपब्लिकन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन, रोनल्ड रीगन आदि खुलकर पाकिस्तान के साथ थे। जबकि डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भारत के समर्थक थे। इसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का भी योगदान था। डेमोक्रेटिक ओबामा अपने कार्यकाल में दो बार भारत की यात्रा करने वाले प्रथम अमेरिकी राष्ट्रपति थे। उन्होंने संयुक्तराष्ट्र सुरक्षा परिषद की सदस्यता के भारत के दावे का समर्थन किया था। नरेन्द्र मोदी के प्रयास से तब और भारत अमेरिका प्रमुख रक्षा साझेदार बने थे। नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा था कि अगर अमेरिका और भारत दोस्त बन जाते हैं तो विश्व ज्यादा सुरक्षित रहेगा। स्वतंत्रता दिवस पर दिए अपने इस भाषण में बाइडेन ने कहा कि वो चीन और पाकिस्तान के चलते भारत की सीमाओं पर बने खतरे के वक्त भी भारत के साथ हमेशा खड़े रहेंगे।

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