डॉ, अमरेश त्रिपाठी, एशोसिएट प्रोफेसर.

प्रधानमंत्री के एक आह्वाहन ने देश में एक वैचारिक क्रांति के रुप मे एक विमर्श को जन्म दे दिया है ।प्रधानमंत्री जी ने भारतीय उद्योग परिसंघ की बैठक में सम्बोधित करते हुये कहा है कि आत्मनिर्भर होने के लिये पाँच प्रमुख अवधारणाएं जरूरी हैं –
* इंटेंट यानी इरादा
* इन्क्लूजन यानी समावेशन
* इन्वेस्टमेंट यानी निवेश
* इन्फ्रास्ट्रक्चर यानी बुनियादी ढांचा
* इनोवेशन यानी नवोन्मेष

वैसे तो आत्मनिर्भरता हमारी आर्थिक नीतियों का हमेशा से हिस्सा रहा है लेकिन इस सामाजिक आपातकाल ने इस चिन्तन को बल दे दिया है। इस महामारी ने वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भी बदलाव ला दिया है। महाशक्ति(अमेरिका) की जगह अब चीन लेने की कोशिश मे है। विश्व के पटल पर चीन यदि महाशक्ति के रुप मे उभरा है तो इसमे उसके कठिन परिश्रम का योगदान है। आर्थिक उन्नति के कुछ पैमाने हैं जिनको हम शायद नजरअंदाज नहीं कर सकते। उनमे राष्ट्रवाद सर्वप्रमुख है। विकसित देशो की प्राथमिकताओं को देखने से यह परिलक्षित होता है कि उनके यहाँ सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा और खेल पर सर्वाधिक व्यय होता है देश का आर्थिक विकास राजनीति नेतृत्व और उसकी इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है।किसी भी देश के श्रमजीवी आर्थिक विकास के रीढ़ होते है। उनकी मनोदशा ही राष्ट्रीय उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है। भारत के संदर्भ मे यह बेहद चिन्तनीय है।

इस महामारी ने मजदूरों का ऐसा विभत्स रूप प्रस्तुत किया है जो सोच से परे है।सबसे बड़ी बात कि उनका शहरो पर से विश्वास टूटा है ,शायद ही कभी जुड़े।ऐसी स्थिति में आर्थिक उन्नति की कल्पना बेमानी लगती है। जबतक किसानों कामगारों और सीमांत समूहों को योजनाओं का पूरा लाभ नहीं मिल जाता तब तक आत्मनिर्भरता एक दिवास्वप्न ही होगा। यद्यपि आत्मनिर्भरता एक संकल्प है जिसमें सरकार के साथ साथ उस देश के जनता की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। भारत में इन दोनों मे ही कमी दिखाई देती है क्योंकि न तो सरकार में वो इच्छा शक्ति ही है और न ही हम जैसे नागरिकों में कार्य के प्रति समर्पण। आदरणीय प्रधानमंत्री जी ने सामाजिक आपातकाल के दौरान आत्मनिर्भरता को स्थापित करने की दिशा में जिन बातों का उल्लेख किया है वो निश्चित ही सराहनीय हैं। मोदी जी ने जो 20 लाख करोड़ के आर्थिक सहायता की घोषणा की है तो यदि ईमानदारी से उसका अनुपालन हो तो निःसंदेह आत्मनिर्भर भारत अभियान को गति प्रदान करेगा। आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को सिद्ध करने के लिये इस पैकेज में भी निम्नलिखित पर बल दिया है —

* लैंड यानी जमीन
* लेबर यानी मजदूर
* लिक्विडिटी यानी चल सम्पत्ति
* ला यानी कानून

यह सहायता हमारे लघु उद्योग, गृह उद्योग, और कुटीर उद्योगों के लिये संजीवनी का कार्य करेगा। इस महामारी में लोकल ने ही हमारी रक्षा की है, और समय ने यह सिखाया है कि लोकल को हमें अपना जीवन सूत्र बनाना होगा। जितने भी ग्लोबल ब्रांड हैं कभी वो भी लोकल ही थे। तो हमारा लोकल भी ग्लोबल ब्रांड बन सकता है ।सब इसके लिये एक संकल्प शक्ति चाहिए कि हम अपनी दिनचर्या से लोकल को जोड़ लें।इसके साथ प्रधानमंत्री जी ने पाँच स्तंभों की चर्चा की है–

* अर्थव्यवस्था
* बुनियादी ढांचा
* प्रणाली तंत्र
* जीवंत लोकतंत्र
* आपूर्ति एंव माँग

वित्तमंत्री जी ने भी राहत पैकैज को महत्व पूर्ण आठ भागों में बाटकर इसे एक कदम और आगे बढ़ा दिया है । आत्मनिर्भरता के लिये बेहद जरूरी है कि गाँवो को समृद्धशाली बनाया जाय।स्वदेशी वस्तुओं को ही अपनना चाहिए। यद्यपि स्वदेशी व्रत लेने में असुविधायें तो होगी लेकिन संतोष भी होगा। स्वदेशी को आन्दोलन की तरह संचालित करना होगा जिसमे छोटे उद्यमियों को सुरक्षा राशि प्रदान करना होगा। कदाचित हमें इसके लिये अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विरोध भी झेलना होगा जिसमें अमेरिका यूरोप और चीन जैसे शक्तिशाली राष्ट्र होंग। फिर भी स्वदेशी जीवन मूल्यों को प्रत्येक भारतीय को अपनाने का जूनून ही आत्मनिर्भर बनने की दिशा में सार्थक कदम होगा ।जहाँ तक जिम्मेदारी की बात है तो वो केवल लोकल कम्पनियों और खरीदने वाले की ही नहीं है, बल्कि सरकार को भी एक लचीला रुख तैयार करना होगा। अब तो बाजार के मूल्य भी बदल गये हैं।आनलाइन खरीदारी का कारोबार बढ़ता जा रहा है।इस महामारी ने इस कारोबार को और भी गति प्रदान कर दिया है क्योंकि लोग घर से निकलने के बारे में सौ बार सोचते हैं फिर निकलने लगे हैं। सरकार को भी घरेलू उत्पादों को बढ़ावा देने के लिये आनलाइन प्लेटफार्म भी तैयार करना होगा।

वैसे आगामी राजनीति चिन्तन आर्थिक राष्ट्रवाद का है । इस वैश्विक चिंतन ने सभी देशों की तरह भारत को भी आर्थिक राष्ट्रवाद को अपने राजनीतिक विमर्श के साथ जोड़कर सामाजिक और आर्थिक नीतियों को क्रियान्वयन करने के लिये विवश कर दिया है।आत्मनिर्भरता हमारे लिये ये एक नयी चुनौती की तरह हैं जिसमें सभी की सहभागिता, समर्पण, साहस, धैर्य और न्यूनतम और आवश्यक आवश्यकता को जीवन के सूत्र की तरह अपनाना होगा ।तभी सही मायने में हम आत्मनिर्भर हो सकेंगे।

 

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