डॉ. पी के गुप्ता, एशोसिएट प्रोफेसर

आज हम भविष्य के कल की बात आपके सामने रखना चाहते हैं। हम सभी युवा हैं। कल वृद्ध होंगे, शरीर दूसरों पर आश्रित होगा और शरीर के सभी अंग शिथिल पढ़ते जाएंगे। ऐसे में अपनो का व्यवहार कोमलतम होना चाहिए। हमें अपने परिवार के वृद्धजनों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। उनकी छोटी से छोटी इच्छाओं को कतई नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। अपने बच्चों से जिस प्रकार के व्यवहार की उम्मीद या अपेक्षा आप करते हैं। वही व्यवहार बच्चों से करने के लिए कहिए। बच्चा आज सीखेगा तो कल आपको वापस मिलेगा। आप सोच रहे होंगे यह बात मैं आपसे क्यों कर रहा हूं। इसका संदर्भ क्या है।

मित्रों पिछले लॉक डाउन में सबसे ज्यादा करोना संक्रमित वृद्ध हुए थे और सबसे ज्यादा मृत्यु वृद्धजनों की हुई थी। कई घटनाएं हृदय विदारक थी। पुत्र पुत्री अपने पिता को मुखाग्नि नहीं दे पाए। तमाम वृद्धों की लाशें बंद कमरों व मकानों में पाई गई। जब इन घटनाओं पर दृष्टि जाती है, तो रूह कांप जाती है। क्या चीन ने यह करोना वायरस सिर्फ वृद्धों को मारने के लिए ही छोड़ा था। क्योंकि चीन में वृद्धों की संख्या विश्व में सबसे अधिक है। अमेरिका इंग्लैंड फ्रांस जर्मनी आदि देशों में भी वृद्धों की संख्या अधिक हैं। भारत में भी धीरे-धीरे वृद्धों की संख्या बढ़ रही है। वृद्ध व्यक्ति अर्थशास्त्र की परिभाषा में अनुपयोगी एवं अनुत्पादक माना जाता है। कुछ लोग तो वृद्धों को आर्थिक प्रगति में बाधक भी मानते हैं। आप जानते हैं कि पूरा विश्व अर्थवाद, भोतिकतावादी, उपभोगवाद के सिद्धांत का पोषण करता है। उसी मार्ग को आज सभी देश अपना रहे है। अर्थतंत्रात्मक समाज में सामाजिक व पारिवारिक मूल्यों के लिए कोई जगह नहीं है। जन्म से मृत्यु तक की अवस्थाओं में व्यक्ति आर्थिक शक्तियों से निर्देशित एवं नियंत्रित होता है।

1951 की जनगणना में वृद्धों की संख्या दो करोड़ के आसपास थी। आज 2020 में यह संख्या अनुमानता 15 करोड़ के आसपास होनी चाहिए। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट elder abuse in India 2002 भारत में वृद्धों की स्थिति के संदर्भ में कहा की अपमान, उपेक्षा, दुर्व्यवहार, प्रताड़ना एवं अकेलेपन के कारण भारत के अधिकांश बुजुर्ग वृद्धावस्था को एक बीमारी मानने लगे हैं।

आप सभी प्रति वर्ष 15 जून को विश्व वृद्ध दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस मनाते हैं। लेकिन बढ़ते हुए नगरीकरण और औद्योगीकरण ने जिस प्रकार से समाज में व्यक्तिवाद को प्रोत्साहित किया है वह चिंताजनक है। परिणामस्वरूप एकल परिवार में वृद्धि हो रही है। संयुक्त परिवार टूट रहे हैं। जिससे बुजुर्गों के सामने रोटी का संकट खड़ा हो गया है। उन्हें कौन खाना बना कर देगा। उनकी देखभाल कौन करेगा। इसमें बहुत बड़ी कमी देखी जा रही है। भारतीय समाज प्राचीन काल से अपने यहां के वृद्धों को हमेशा सम्मान देता आया है।

अभिवादनशीलस्य नित्यम वृद्धोपसेविन:। चत्वारि तस्य वर्धनते आर्युविद्यायशो बलम्।।

अर्थात अभिवादन एवं उनकी की सेवा करने वालों की आयु विद्या, यश और बल में वृद्धि होती है। वृद्ध लोग ज्ञान के अनुभव के आधार पर नई पीढ़ियों को बहुत कुछ सिखा सकते हैं।

न सा  सभा यत्र न संति वृद्धा:।। अर्थात वह सभा सभा नहीं है जिसमें वृद्ध ना हो। अंग्रेज विद्वान विलियम हैजलिट महोदय ने कहा है “BY despising all that has preceded us we teach other To despise ourself” अर्थात जो हमसे पहले हुए हैं, उनको घृणा करके हम आने वाली पीढ़ी को यह सिखाते हैं की वह भी हमें घृणा करें। इस प्रकार बच्चों में अनुकरण की प्रवृत्ति होती है। जैसा आप घर परिवार में अपने माता-पिता के साथ व्यवहार करेंगे वैसा ही व्यवहार आपके बच्चे आपके साथ करेंगे। यहां एक सशक्त पारिवारिक व्यवस्था प्राचीन काल से स्थापित थी। लेकिन इधर कुछ वर्षों में वृद्धों के संदर्भ में आने वाली खबरें चिंताजनक है।

भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार कोरोना वायरस से सबसे ज्यादा वृद्धों की जनसंख्या प्रभावित हुई है। विश्व में कोरोना वायरस से होने वाली सम्पूर्ण मौतों में 63% मौत वृद्धों की हुई है। शेष 37% में बच्चे जवान व अन्य लोग थे। जो पूर्व में किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित थे। अर्थात करोना का सबसे अधिक प्रभाव वृद्धजनों पर पड़ा है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वृद्धों की मौत के पीछे मुख्य वजह वर्षों से श्वेत रक्त क्षेत्र W.B.C. के कम होने से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में कम होना मौत का मुख्य कारण बताया गया। आयुर्विज्ञान अनुसंधान के अनुसार किसी भी उम्र का व्यक्ति कोरोना वायरस का शिकार हो सकता है। यह खतरा और भी बढ़ जाता है, जब व्यक्ति शुगर कैंसर दमा अस्थमा जैसी गंभीर बीमारियों से पूर्ववत ग्रसित हो। वृद्धों में साइको स्टार्म के अधिक उत्पादन से शरीर में जलन तेज बुखार खांसी सर्दी जैसी शारीरिक परेशानियां बढ़ जाती है।

विश्व फलक पर अनेक प्रयास किए गए जैसे 1948 में अर्जेंटीना ने संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ एक पहल की। वृद्धों के सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर चर्चा की। 1982 में ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में वृद्धा अवस्था के बारे में एक विश्व सम्मेलन आयोजित हुआ। 1999 को संयुक्त राष्ट्र संघ ने अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध वर्ष घोषित किया। भारत में भी सन 2000 को राष्ट्रीय वृद्धा वर्ष के रूप में घोषित किया। भारतीय संविधान में अनुच्छेद 41 में वृद्धावस्था जैसी निर्योग्यता की दशाओं में वृद्ध जनों को सहायता पाने के अधिकार प्राप्त है। 1999 में राष्ट्रीय परिषद का गठन भी किया गया साथ ही 2007 में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा मेंटेनेंस एवं वेलफेयर आफ पैरंट्स एंड सीनियर सिटीजन विधेयक को स्वीकृति भी दी गई।

अभी हाल ही में 2018 में वृद्धों के हित में सर्वोच्च न्यायालय ने भरण पोषण की पूरी जिम्मेदारी उनके बच्चों पर होगी ऐसा नियम उन्होंने बनाया। इतने नियमों एवं प्रावधानों के बाद भी क्या कारण है की वृद्धों की स्थिति में निरंतर गिरावट आ रही है। प्रतिदिन समाचार पत्रों में पढ़ने को मिलता है कि बच्चों ने अपने मां बाप को घर से बाहर निकाल दिया। एक ही शहर में मां और बाप और बच्चे अलग अलग रह रहे हो। इस प्रकार के समाज की कल्पना हम लोगों ने नहीं की थी। लेकिन यह हमारे सामने हैं। विज्ञान ने तो बहुत तरक्की की है। लेकिन कोई फायदा नहीं। हम वृद्ध को जवान नहीं बना सकते, ना ही हम युवाओं जैसी ताकत पैदा कर सकते हैं।

आज का मेडिकल साइंस मृत्यु पर विजय प्राप्त के अभियान पर निकल चुका है। लेकिन वृद्धावस्था की भयावहता को रंच मात्र भी कम नहीं कर सकता। हमारी भारतीय संस्कृति में वह ताकत है जिसमें वृद्धावस्था अभिशाप नहीं वरदान है क्योंकि पहले बच्चे बिना माता-पिता का पैर दबाए नहीं सोते थे। माता पिता के इच्छाओं अभिलाषाओं का ख्याल किया जाता था। उन्हें तीर्थ यात्रा पर अन्य सामाजिक संस्कारों में अग्रिम पंक्ति में स्थान दिया जाता था। कोई भी संस्कार बिना माता-पिता के संभव नहीं था।

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