डा. डी.के. त्रिपाठी
शराब की रियासत पर राजनीति की सियासत मित्रों इस विषय पर आज हम आपके सामने कुछ बेहद जरूरी तथ्य रखना चाहते हैं आप सभी विज्ञ हैं की शराब से होने वाली आय का प्रयोग शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में किया जाता है आप जानते हैं कि जीएसटी आने के बाद राज्यों की आय का स्रोत बहुत हद तक सीमित हो चुका है और इस आय को बनाए रखने का प्रयास हर राज्य किसी न किसी रूप में करती है।
शंकर सिंह बघेला जी राजनीति के बड़े माहिर खिलाड़ी हैं। राजनीतिक अखाड़े मे आजकल में उनका दाव काफी कमजोर पड़ गया है। याद हैं वो जमाना, जब गुजरात में उनके नाम का चिराग जलता था। पत्ते भी उनसे अनुमति लेकर हिलते थे या यूं कहें सब कुछ उनके हाथ में था और राज्य की कमान शंकर सिंह बघेला जी अपने हाथ में रखते थे। समय बड़ा बलवान होता है समय बदल गया राजनीति की रियासत बदल गई। अब नए दौर की सियासत में शराबियों को लुभाने के लिए ताल ठोक कर बघेला जी यह कहने में गुरेज नहीं किए कि हमारी सरकार आएगी तो शराब बिक्री से पाबंदी हटा दी जाएगी। एक बड़े वोट बैंक को अपने पक्ष में करने का इरादा सही या गलत ये भविष्य के गर्भ में हैं। फिलहाल शराब पीना गलत नहीं है लेकिन जब शराब व्यक्ति को पीने लगती है तब वह गलत हो जाता है और समाज में निंदनीय हो जाता है।
हम यह सुनकर हम स्तब्ध रह गए। सहसा विश्वास नहीं हुआ इस देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी इसी धरती पर जन्म लिए थे हमारे देश की जनता जानती है कि गांधी जी ने शराब बिक्री पर अंग्रेजों की मुखालफत करते हुए यह कहा था कि हमें ऐसी शिक्षा नहीं चाहिए जो शराब के बिक्री के बाद प्राप्त किए हुए धन से दी जा रही है।
वाह साहब यह सुनकर सीना चौड़ा हो जाता है। ऐसे वक्तव्य को सुनकर आज भी सिहरन उठती है। वे लोग और थे जो ऐसी उच्च विचारधारा और सोच रखते थे। माननीय श्री बघेला जी उसी कर्म भूमि से आप भी आते हैं। आपके नेक इरादों के बारे में तो नहीं जानते हैं लेकिन इतना जरूर जानता हूं कि राजनीति में इस प्रकार के बयान देना एक बड़े जमात को अपनी और खींचने जैसा होता है।
शायद कोई भी यही मतलब निकालेगा जो हम निकाल रहे हैं लेकिन माननीय बघेला जी आपको यह भी याद रखना है की आधी आबादी की हकदार महिलाएं हमेशा शराबबंदी के पक्ष में खड़ी होती हैं कहीं यह दाव उल्टा ना पड़ जाए इस बात पर भी जरा विचार कर लीजिएगा।