विश्वनाथ गोकर्ण, वरिष्ठ पत्रकार, काशी…
अगर किसी शहर में अलग अलग निमित्त से अलग अलग देवी देवताओं के पूजन अर्चन का विधान तय हो तो वहां की बात कुछ अलौकिक सी जान पड़ती है। अपनी काशी के साथ ऐसा ही कुछ है। इतिहास से भी पुराने इस शहर में हर उद्देश्य के अपने पृथक देवी देवता हैं। ये हैरत करने वाली बात है कि यहां हर देवी देवता का हर वो स्वरूप और मंदिर मौजूद है जिसमें उनका प्रादुर्भाव हुआ। सब जानते हैं कि भैरव देवाधिदेव महादेव के रूद्र रूप हैं। भैरव के भी आठ रूप हैं। अष्टभैरव में सातवां स्वरूप है संहार भैरव का। विदित हो कि काशी में अष्ट भैरव विराजते हैं। काशी के कोतवाल बाबा कालभैरव की हाजिरी लगाने वालों की तादाद तो बहुतायतों की है लेकिन संहार भैरव और उनके महात्म्य के बारे में लोगों को कम जानकारी है।
काशी में संहार भैरव के दो मंदिर है। इनमें मुख्य है पाटन दरवाजा, गायघाट के पास ए 1/82 स्थित मंदिर। दूसरा है मीरघाट में दशाश्वमेध की तरफ जाने वाली संकरी गली में एक फाटक के नीचे एक छोटे से ताखे में स्थित मंदिर। काशी खंड में तो संहार भैरव का उल्लेख है लेकिन शिव पुराण में उनकी विस्तृत व्याख्या की गयी है। गायघाट या मीरघाट के मंदिर काशी में कब बने इसका कोई लेखा जोखा नहीं है लेकिन इस शहर के पुरनियों का कहना है कि संहार भैरव मंदिर का इतिहास काशी जितना ही प्राचीन है। कहने का मतलब ये कि बाबा संहार भैरव काशी में अनादिकाल से विराजते हैं। शिव पुराण के अनुसार संहार भैरव बाबा का नग्न रूप है। उनकी देह सिन्दूरी रंग की है। इनके ललाट पर चन्द्रमा विराजते हैं। संहार भैरव अपने शरीर पर सर्प लपेटे हुए हैं। उनका वाहन भी श्वान है।
आम तौर पर भैरव का जिक्र होते ही तंत्र-मंत्र, क्रिया-उच्चाटन और भी न जाने क्या क्या ध्यान में आने लगता है लेकिन हैरत करने वाली बात ये है कि मारण-तारण, आफत बलाओं से लेकर दुश्मनों द्वारा किये गये तमाम तरह के तिलिस्मी हमलों से बचाने वाले बाबा संहार भैरव के यहां इस प्रकार की कोई गतिविधि नहीं होती है। संहार भैरव में कोई तांत्रिक पूजा होती ही नहीं। उन्हें न तो कपूर का उतारा पसंद है और न नींबू काटे जाने की तांत्रिक क्रिया। आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि संहार भैरव को शिव के दूसरे रूद्र रूपों की तरह मदिरा का भोग भी नहीं लगता। संहार भैरव को अपने भक्त का दर्शन मात्र प्रिय है।
अगर किसी पर मारण-तारण, उच्चाटन या सम्मोहन किया गया हो तो उसे तुरंत काशी के संहार भैरव की हाजिरी लगवाइए और फिर देखिए उसके साथ होने वाले चमत्कार। अगर कोई पैशाचिक शक्तियों से परेशान है या भूत-प्रेत बाधाओं से त्रस्त है तो उसे संहार भैरव का दर्शन कराइए और फिर देखिए कि किस तरह से वो शख्स इन सब बाधाओं से मुक्त होकर नैसर्गिक जीवन जीने लगता है। जीवन में आने वाली हर तरह की मुश्किलातों से निजात दिलाने वाले देवता हैं संहार भैरव। शिव के इस रूप को बेला और चमेली के सुगंधित पुष्प अत्यंत प्रिय हैं। उन्हें मिश्री और बताशे का भोग रास आता है। बाबा संहार भैरव शिव के रूद्र रूप होने के बावजूद इतने भोले हैं कि वो सबकी सुनते हैं। यदि भूत-प्रेत-पिशाच, मारण-तारण-सम्मोहन, जादू-टोना-सिफली, तंत्र-मंत्र या अन्यान्य तरीके से त्रस्त व्यक्ति किसी कारण से संहार भैरव के दरबार में हाजिर नहीं हो पा रहा है या दर्शन नहीं कर पा रहा है तो यदि उसके परिवार से कोई भी व्यक्ति यहां हाजिरी लगा ले या बाबा का दर्शन कर ले तो भी बाबा उसे तमाम विध्न बाधाओं से मुक्ति दिला देते हैं।
गायघाट स्थित संहार भैरव का मंदिर काशी के कैंट रेलवे स्टेशन से करीब सात किलोमीटर दूर स्थित हैं। यहां अंदर गली तक साइकिल रिक्शा, ऑटो रिक्शा या ई रिक्शे से जाया जा सकता है। यहां भैरव अष्टमी को विशेष श्रृंगार होता है। मीरघाट वाला मंदिर भी कैंट रेलवे स्टेशन से करीब सात किलोमीटर दूर है लेकिन मंदिर के संकरी गली में स्थित होने के कारण यहां गोदौलिया से पैदल ही जाना पड़ता है।