डॉ दिलीप अग्निहोत्री
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा कई सन्दर्भो में महत्वपूर्ण है। संयुक्त राष्ट्र संघ व क्वाड सम्मेलन में संबोधन व अमेरिकी राष्ट्रपति से उनकी मुलाकात महत्वपूर्ण है। अमेरिका में नेतृत्व परिवतर्न हुआ है। इसके पहले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी के बीच बेहतर समझदारी थी। वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन और उप राष्ट्रपति कमला हैरिस का भारत के प्रति अनुकूल रुख नहीं रहा है। लेकिन कोरोना संकट के समय उनके रुख में बदलाव भी आया है। जो बाइडेन ने कहा था कि कोरोना की पहली लहर के समय भारत ने अमेरिका की सहायता की थी। इसको उनका देश भूल नहीं सकता। इसलिए दूसरी कोरोना लहर के दौरान अमेरिका ने भारत को ऑक्सीजन की सप्लाई की थी। वैसे भी विदेश नीति में यह स्थायी भाव नहीं होता। जो बाइडेन का राष्ट्रपति बनने से पहले जो रुख था,कोई जरूरी नहीं कि वह उस पर कायम रहें। भारत के प्रति उनके रुख में बदलाव भी देखा जा रहा है। राष्ट्रपति के रूप में वह भारत को नजर अंदाज नहीं कर सकते। इस समय
अफगानिस्तान के मसला भी गर्म है। वहां से अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाने पर जो बाइडेन को आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी अमेरिका यात्रा से पहले अफगानिस्तान पर नीति को स्पष्ट कर चुके है। नरेंद्र मोदी के विचार दुनिया के लिए मार्ग दर्शक के रुप में है। अमेरिका के लिए भी उनके विचारों का महत्व है। पिछले दिनों नरेंद्र मोदी ने शंघाई सहयोग संगठन और सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन की विस्तारित बैठक को वर्चुअल माध्यम से संबोधित किया था। उन्होंने कहा था कि तालिबान सत्ता मान्यता देने पर सोच विचार कर सामूहिक रूप से फैसला कराना चाहिए। मान्यता के संबंध में भारत संयुक्त राष्ट्र की केन्द्रीय भूमिका का समर्थन करता है।
अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के नतीजों के बारे में विश्व बिरादरी को आगाह किया था। कहा कि इस घटनाक्रम से अन्य उग्रवादी गुटों को हिंसा के जरिए सत्ता हासिल करने का बढ़ावा मिल सकता है।अफगानिस्तान में अस्थिरता और मजहबी कट्टरता जारी रहने से पूरी दुनिया में आतंकवादी और उग्रवादी विचारधारा को बढ़ावा मिलेगा। नशीले पदार्थों के कारोबार अवैध हथियारों की तस्करी और मानव तस्करी की समस्या पैदा हो सकती हैं। मोदी ने अमेरिकी सेना के अत्याधुनिक हथियार तालिबान और आतंकवादी गुटों को हासिल होने का भी उल्लेख किया था। अफगानिस्तान में ऐसे अत्याधुनिक हथियारों को जखीरा है जिससे पूरे क्षेत्र में अस्थीरता पैदा होने का खतरा है। सीमा पार आतंकवाद और आतंकवादियों को धन उपलब्ध कराए जाने जैसी समस्या का सामना करने के लिए एक आचार संहिता बनाई जानी चाहिए। इस आचार संहिता को लागू कराने के लिए एक प्रणाली भी होनी चाहिए। यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अफगानिस्तान की धरती का उपयोग किसी भी देश में आतंकवाद फैलाने के लिए नहीं हो।
क्वाड शिखरवार्ता में भाग लेने से पहले नरेंद्र मोदी की जो बाइडेन से द्विपक्षीय,क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर विचार।विमर्श करेंगे। उनकी व्हाइट हाउस में उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के साथ भी बैठक करेंगे। राष्ट्रपति बाइडेन के साथ द्विपक्षीय वार्ता और क्वाड शिखर वार्ता में अफगानिस्तान का घटनाक्रम,वैचारिक उग्रवाद,सीमापार आतंकवाद और कोरोना महामारी का सामना करने के लिए वैक्सीन जैसे उपायों पर मुख्य रूप से चर्चा होगी। मोदी की बाइडेन के साथ यह पहली प्रत्यक्ष मुलाकात होगी। कुछ माह पहले क्वाड की पहली वर्चुअल शिखर वार्ता और जी ट्वेंटी देशों की वर्चुअल शिखर वार्ता में भाग ले चुके हैं। उपराष्ट्रपति के रूप में जो बाइडेन की प्रधानमंत्री मोदी से पहले भी मुलाकात हो चुकी है। नरेंद मोदी द्विपक्षीय व्यापार और निवेश बढ़ाने के लिए अमेरिका के प्रमुख कंपनियों के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ भी बैठक करेंगे। अमेरिकी प्रशासन और उद्यमियों से विचार विमर्श के दौरान कोविड पश्चात अर्थव्यवस्था की बहाली के लिए आपसी सहयोग को बढ़ाने पर भी चर्चा होगी। क्वाड शिखर वार्ता का आयोजन है। व्हाइट हाउस में आयोजित इस शिखर सम्मेलन में आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरीसन और जापान के प्रधानमंत्री योशीहिदे सुगा भी शामिल होंगे। इसमें विगत क्वाड शिखर वार्ता के बाद हुई प्रगति की समीक्षा की जाएगी। साथ ही सहयोग के नए क्षेत्रों की पहचान की जाएगी। क्वाड समान विचार और दृष्टिकोण वाले चार देशों का मंच है। क्वाड का एजेंडा व्यापक है और यह वैक्सीन उत्पादन तथा उसकी आपूर्ति, आधारभूत ढांचे का विकास के साथ ही समुद्री सुरक्षा और मुक्त, स्वतंत्र एवं सुरक्षित हिन्द-प्रशांत क्षेत्र पर केन्द्रित है। क्वाड का मूल आधार प्रधानमंत्री मोदी के शांग्री।ला वक्तव्य से जुड़ा है जिसमें इस क्षेत्र में शांति और स्मृद्धि के लिए सागर नीति का प्रतिपादन किया गया था। भारत विस्तारित क्वाड का पक्षधर है जिसमें दक्षिण पूर्व एशिया सहयोग संगठन आसियान की केन्द्रीय भूमिका हो। अमेरिका, आस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के बीच हाल में सम्पन्न रक्षा सहयोग गठबंधन से क्वाड पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। क्वाड समसामायिक विषयों पर सहयोग करने का मंच है जबकि ऑक्स सुरक्षा गठबंधन है। आस्ट्रेलिया यह स्पष्ट कर चुका है कि गठबंधन के जरिए हासिल होने वाली पनडुब्बियां परमाणु ईंधन से संचालित होंगी। लेकिन उसमें परमाणु हथियार नहीं होंगे। सदस्य देश समान लक्ष्य को हासिल करने के लिए परस्पर सहयोग करेंगे। मोदी वाशिंगटन में ऑस्ट्रेलिया और जापान के प्रधानमंत्रियों के साथ द्विपक्षीय बैठक करने के बाद न्यूयार्क रवाना हुए। यहां वह पच्चीस सितंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा के छिहत्तरवें अधिवेशन को संबोधित करेंगे।[/responsivevoice]