डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन

 

संस्कृति की जटिलता में और राज्य की संकल्पना में मानवाधिकार भी 1948 के बाद धीरे-धीरे जटिलताओं के उस समग्रता की ओर बढ़ गया जहां पर मानवाधिकार को समझने के लिए एक विशिष्ट विश्लेषण की आवश्यकता पड़ने लगी और ऐसा इसलिए आवश्यक हुआ क्योंकि विधि की परिभाषा में सिर्फ वही लोग मानव नहीं रह गए जो जीवित अवस्था में दिखाई दे रहे हैं। बल्कि वह सारी संस्थाएं भी विधिक रूप से मानव की श्रेणी में खड़े हो गए। जो मनुष्य के द्वारा चलाई जा रही हैं यही कारण है कि भगवान भी एक विधिक मानव बन गया किसी भी भगवान के विरुद्ध वाद लाया जा सकता है। लेकिन इसके इतर यह भी एक निर्विवाद सत्य है की किसी भी गैर सरकारी संस्था राजनीतिक पार्टियां भी विधिक रुप से उन लोगों के कार्यप्रणाली का ही प्रतिबिंब है जिन लोगों द्वारा या चलाया जा रहा है। यही कारण है कि जब इन लोगों के विरुद्ध भी वाद दायर किया जाता है। तो उन संस्थाओं के माध्यम से उन लोगों के विरुद्ध वाद दायर किया जाता है जो उससे जुड़े हैं या उसके पदाधिकारी ऐसी स्थिति में कोई भी राजनीतिक पार्टी भी एक विधिक व्यक्ति की तरह ही कार्य करती है।

भारत जैसे देश में कुकुरमुत्ता की तरह राजनीतिक पार्टियां पंजीकृत की जाती है उन्नीस सौ से ज्यादा राजनीतिक पार्टियां पंजीकृत हैं जिसमें से सिर्फ 400 पार्टी ऐसी है जो राजनीतिक रूप से सक्रिय यह एक सोचने वाला विषय है कि राजनीतिक पार्टियां इतनी क्यों बनाई जाती है और इस सोच में यह भाव स्वयं प्रमाणित होता है कि राजनीतिक पार्टियां स्वयं कोई जीविकोपार्जन के लिए कार्य नहीं करती है सिर्फ चंदों के आधार पर चलाई जाती है अक्सर प्रत्येक चुनाव के समय बहुत से ऐसी पार्टी हमको दिखाई देती हैं जिनका हम लोगों ने नाम नहीं सुना होता है लेकिन उन पार्टी के द्वारा उम्मीदवार इसीलिए खड़े किए जाते हैं ताकि सशक्त कहे जाने वाले उम्मीदवार के दावेदारी को कमजोर किया जा सके और इसी कमजोरी को पुष्टि प्रदान करने के लिए या तथाकथित राजनीतिक पार्टियां काम करती है यदि किसी व्यक्ति को जीत की संभावना से दूर नहीं जाना है तो सशक्त पार्टियां गुमनामी वाली कई राजनीतिक पार्टियों के उम्मीदवारों को आर्थिक सहायता देकर चुनाव में उम्मीदवार के रूप में उतार देती हैं ताकि वोटों का बंटवारा हो सके और यही कारण है कि भारत जैसे देश में सिर्फ जीतने वाला उम्मीदवार 25% 35% मत पाकर सदन में पहुंच जाता है जबकि गणितीय आधार पर वह असफल है लेकिन राजनीतिक पार्टियों की इसी गणितीय व्यवस्था से देश में सत्ता पर काबिज होने का एक अंतहीन सिलसिला चलता रहता है।

यदि एक सोचने वाला तक रहता है कि राजनीतिक पार्टियां अपने को चलाने के लिए किस तरह से पैसा अर्जित करें पार्टियां और लोग इसीलिए अपने जीवन को ढंग से नहीं चला पाते ऐसा नहीं होता है लेकिन राजनीतिक पार्टियों को तो पानी के लिए चंदा एक ऐसा माध्यम होता है जिससे पार्टी को खड़ा करते हैं बल्कि स्थायित्व को प्राप्त कर लेते हैं एक आम आदमी विधिक व्यक्ति के आधार पर इस बात के लिए चाहे वह नौकरी स्वयं का हो या किसी व्यवसाय में संलग्न हो या फिर वह कोई संस्था चला रहा हो उन सब के लिए इनकम टैक्स के दायरे में अपनी आय का लेखा-जोखा प्रस्तुत करता है और यदि एक निश्चित राशि से ज्यादा धनराशि व अर्जित कर रहा है तो उसके लिए वर्टेक्स भरता है क्या यह व्यवस्था विधिक व्यक्ति के रूप में होते हुए भी राजनीतिक पार्टियां पूरा करती है इनकम टैक्स अधिनियम की धारा १३ ए और संवैधानिक समानता।

हर साल इस देश का नौकरी करने वाला पैर रगड़ता है कि सरकार उसके मेहनत और पसीने की कमाई में टैक्स से छुट की लिमिट बढ़ाये पर क्या मजाल जो सरकार देश की प्रगति और विकास के आगे उनकी सुने पर उसी देश में राजनैतिक पार्टियों को इनकम टैक्स अधिनियम की धरा १३ ए में होने वाली कमाई से १०० प्रतिशत छूट प्राप्त है हां हर पार्टी को आयकर रिटर्न भरना अनिवार्य है क्या ये उसी देश की कहानी है जहा कुछ लाख कमाने वाला सिर्फ २.५ लाख की छूट पाता है और पार्टी हर वर्ष करोडो कमा के भी १०० प्रतिशत छूट क्या संविधान के अनुच्छेद १४ में ऐसी ही समानता को उकेरा गया है जबकि कोई भी पार्टी चलती किसी देश के नागरिक से ही है .

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