डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन
आज कल युवाओ में देश प्रेम हो न हो पर अपनों से प्रेम का डंका पीटा जा रहा है …..कोई जमाना था कि लड़की घर से बाहर नही निकल पाती थी और पति का चेहरा भी घूंघट से ही दिन भर देखना पड़ता था जब तक कमरे का एकांत नही मिल जाता था ……पर आज सब कुछ मत की तरह खुले आम खरीदा जा रहा है ……कल तक एक लड़की को सबसे ज्यादा भय इस बात का रहता था कि कही किसी लड़के के साथ उसका नाम भी जुड़ गया तो उसकी खैर नही ….घर से बाहर वो लड़के के साथ घूमना तो एक स्वप्न से ज्यादा कुछ नही था ……पर महिला सशक्तिकरण जैसे एक वरदान बन कर आया …जिसे देखिये उसे यही लगा कि अब लड़की को घर में बैठ कर रखना उचित नही और बस लड़की का घर से बाहर निकल कर पढना क्या शुरू हुआ कि कयामत हो गई और यह स्थिति तब ज्यादा बिगडती दिखाई दी जब उच्च शिक्षा के नाम पर लड़की को घर से दूर जाने कि बात आई ……१०० में ८० लडकिया सिर्फ पढाई में ही लगी रही पर २० ऐसी भी हो गई जिन्हें लगा कि दूसरे शहर में कौन देखने आता है कि मै किसके साथ घूम रही हूँ और यही से आधुनिक प्रेम ने अपनी जड़ो को भी फैलाया ……..
एक तरफ भूमंडली करण की आंधी में पूरा विश्व डूबना चाहता था तो दूसरी तरफ विश्व स्तर की न जाने कितनी कंपनिया जनसँख्या को सब से बड़ा खतरा बता कर एक से बढ़ कर एक गर्भ निरोधक बाजार में उतार कर इस बात का प्रचार करने में सक्षम रही की कि किसी भी स्थिति में बनाया गए यौन संबंधो से दवा के द्वारा ही निपटा जा सकता है …और इसका भी परिणाम देखने को मिला …जनसँख्या कम हुई या नही यह आप खुद समझ सकते है …पर भारत जैसे देश में जहा युवा की फ़ौज खड़ी है वह विदेशी कंपनियो के लिए वरदान सिद्ध हुए क्यों कि युवाओ के बीच शुचिता का जो जाला तोड़ने का साहस या विकल्प नही था वो सामने दिखाई देने लगा …….पर भारत एक संस्कृति पूर्ण देश है …जहा पर घर में पति पत्नी भी एक मर्यादा का पालन करते हो वहा एक युवा के लिए आसान न था कि बाज़ार में जाकर खुले आम कंडोम की मांग करे …..कंपनियो का यह काम भी आसान किया एच आई वी ने और फिर तो यौन संबंधो और कंडोम पर इतनी बाते हो गई जितना गंगा में पानी नही है ……किसको संक्रमण है किसको नही है …इसे जानने से बेहतर था कि कंडोम का इसतेमाल किया जाये और बाहर पढने जाने वालो के लिए अब यह एक आसान रास्ता बन गया कि पहले वो दोस्ती करे और घूमे …इसके बाद महत्तम स्थिति में शारीरिक सम्बन्ध भी बिना खौफ के बना ले क्यों कि कंडोम और गर्भ निरोधक के कारण यह बात खुलने का भय करीब करीब जीरो हो गया कि लड़के लड़की किसी भी तरह गलत रास्तो पर है ….लेकिन इस से बढ़ कर जनसँख्या के नाम पर ….महंगाई ….बच्चो की अच्छी परवरिश के नाम पर परिवार का छोटा करने पर जोर इस आधार पर दिया गया कि गर्भ ठहरने की स्थिति में बिना किसी ऑपरेशन के ३-४-५ महीने तक के बच्चे का गर्भपात हो सकता है और ३-४ दिन में महिला घर जा सकती है ….
इस बात ने भी विवाहित महिलाओ को कितना प्रभावित किया इसे बताने की जरुरत नही पर युवाओ को एक और सुगम रास्ता बता दिया गया कि किसी भी स्थित में डरने की जरूरत नही है …सिर्फ ३-४ दिन में आप किसी भी अपयश से बच सकते है और यह एक ऐसा कारण बना जिसने उन्मुक्तता को ज्यादा हवा दी पर इस आग में घी का काम किया उन दवाओ ने जिन्हों ने यह प्रचार किया की किसी भी असुरक्षित यौन सम्बन्ध की स्थिति में ७२ घंटे तक कुछ गोली खा कर गर्भ से बचा जा सकता है …..इस तरह के प्रचार ने युवाओ के प्राकृतिक गुणों को उदीप्त करने में न सिर्फ मदद की बल्कि लडको को एक ऐसा मौका दिया कि भावनाओ के आकाश में लडकियो को किस तरह इस उपायों के द्वारा यौन प्रेरित किया जा सकता है ….एक बार इस दल दल में उतरने और किसी परेशानी की स्थिति में इन उपायों से बचने के बाद लड़का लड़की के लिए यौन सम्बन्ध एक संस्कार न रह कर सिर्फ एक जैविक क्रिया रह जाती है ….जैविक इक्छाओ की इस तरह पूर्ति से न सिर्फ विवाह जैसे संस्कार बाधित हुए है बल्कि लड़की लड़का भी विवाह से ज्यादा उन्मुक्त यौन संबंधो में लिप्त रहना ठीक समझते है ..क्यों कि करियर के लिए प्रयास भी चलता रहता है और प्राकृतिक अवश्यक्ताये भी पूरी होती रहती है …
सरकार ने भी जान कर इन सब को रोकने के बजाये यह कह कर यह सब जारी रखा कि औरत को भी पूरा अधिकार है आगे बढ़ने और पढने का ….जिस का परिणाम यह हुआ कि लड़की को करियर के नाम पर प्रजनन कार्य से तो सरकार दूर ले गई और दुनिया को दिखाया कि हमने जनसँख्या कम कर ली या प्रयास किया लेकिन इन सब में लड़की को कब उन्मुक्त सेक्स में धकेल दिया गया। वो खुद नही जान पाई क्यों कि सरकार ने तो यह कह दिया कि लिविंग रिलेसन मान्य है क्यों कि इसे लाकर सरकार लड़के लड़की के उन्मुक्त संबंधो को और मान्यता दे सकती थी ……..पर इन सब के बाद भी इस देश में युवाओ में सेक्स की वो आंधी नही आ रही थी जिसकी आशा विश्व बाज़ार को थी ….इसी लिए आज से करीब १५ सा पहले valentine डे को मानना शुरू किया गया ……शुरू में कहा गया कि यह दिन प्रेम के नाम है और प्रेम का सिर्फ एक मतलब नही है …पर आज १४ फ़रवरी से पहले ७ को गुलाब दिवस , ८ को प्रस्ताव दिवस , ९ को चोकलेट दिवस , १० को उपहार दिवस , ११ को वादा दिवस , १२ को मिलाप दिवस , १३ को चुम्बन दिवस और १४ को प्रेम दिवस ………………
क्या यह सब माँ बहन , चाची , नानी , दादी के साथ करने के लिए कहा जा रहा है ….नही न तो मतलब साफ़ है कि युवाओ को हर तरह से सिर्फ यह सन्देश दिया जा रहा है यह शरीर बार बार नही मिलता है …इसका खूब उपयोग करो और जिन बातो का डर तुम्हे लगता है वो हम दूर किये देते है , कंडोम , गर्भ निरोधक , गर्भपात के उपाए यानि युवा जान ही नही पाया कि वह सिर्फ बाजारी संकृति का हिस्सा बन कर बिक रहा है और सेक्स बाज़ार का उपभोक्ता बना है जिस पर सरकार महिला सशक्ति कारण , लिविंग रेलेसन , का मुल्लाम्मा चढ़ा कर सिर्फ जनसँख्या रोकने की रोटी सेक रहे है और फिर से शोषण का शिकार बन रही है भारत की लड़की जिसे प्रेम के नाम पर हम सब लूट रहे है …और वो यह समझ कर लुट रही है कि वर्षो की गुलामी के बाद लड़की खुली हवा में सांस ले रही है …वो जो चाहे कर सकती है पर वो अभी भी नही जान पाई कि १४ फ़रवरी का दिन सिर्फ उसे उस ओर ले जा रहा है जहा वो पहले से भी ज्यादा उपभोग की वस्तु बनती जा रही है ….. पहले वह बच्चा पैदा करने वाली मशीन कही जाती थी और जिन्दा खाने वाला गोश्त बन रही है और वह यह सोच कर लुट रही है कि चलो उसके जीवन में भी तो हसी आई पर शायद उसे किसी के इन सब से होने वाले योनि, गर्भाशय के कैंसर के बारे में नही बताया ….वरना वो १४ फ़रवरी क हर साल अपना हाथ यू ना जलाती…….१४ फ़रवरी को लडकियो के शोषण समारोह के रूप में ही ज्यादा देखा जाना चाहिए