डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन
क्या आप को पता है कि कलयुग के देवता आयप्पा से शबरी का प्रेम था और आज तक वह शबरी माला ( केरल) में बैठ कर उनका इंतज़ार कर रही है …….शंकर जी से कन्या कुमारी विवाह करना चाहती थी और कहते है कि जहा कन्या कुमारी मंदिर है वहा आज भी वह शंकर का इंतज़ार कर रही है ….कृष्ण से राधा ने प्रेम किया और पूरी दुनिया उनके प्रेम को स्वीकार करके न जाने कितने राधा -कृष्ण के मंदिर बन चुके है ….प्रेम कभी भी इस देश में बुरा नही रहा और न ही कभी उसे बुरी नजरो से देखा गया तो फिर १४ फ़रवरी इतने बुरे रूप में क्यों चित्रित है ??????????????? क्या इस प्रेम और ऊपर बताये गए प्रेम में कोई अंतर है ????????????? हम बिहारी को पढ़ कर बड़े हुए …हमने कालिदास का मेघदूत भी पढ़ा है …हमें जय शंकर प्रसाद कि कामायनी की विरह वेदना का भी एहसास हुआ है ……हमने मीरा को उनके प्रेम के साथ स्वीकार किया …..फिर ऐसा क्या है जो १४ फ़रवरी को दूषित कर रहा है ?????????????? वह है सेक्स ..
हमारे देश में प्रेम त्याग का प्रतीक था …प्रेम में फागुन के रंगों फुहार थी ….उन रंगों में डूबा था हसी ठिठोली और मनुहार …नायक नायिका प्रेम की विवशता के आगे अपनी आँखों से ही सब के सामने सब कुछ कह कर अपने जीवन को संत्र्प्ताता प्रदान करते थे ..पर वह वासना का आभाव था जो आज के प्रेम की प्रमुखता है ..आज प्रेम में हीर राँझा , मिर्जा साहिबा , लैला मंजनू , की तस्वीर है ही नही ..वो सिर्फ इस लिए प्रेम नही कर रहे थे कि किसी तरह शरीर का मिलन हो जाये बल्कि यह सारे लोग तो रूह के मिलन को तरजीह दे रहे थे इसी लिए दूर रह कर भी एक दुसरे को महसूस करते रहे और आज भी हमारे बीच जिन्दा है …जब भी प्रेम में शरीर आड़े आया तो महिला ने वह शरीर ही छोड़ दिया ..राजस्थान कि हाडा रानी सिर्फ इस लिए अपना सर कट कर अपने राजा के पास खुद भेज दिया ताकि वह वह उसके प्रेम से मोह छुड़ा कर मन से युद्ध लड़ सके …अपर आज तो यह बताया जा रहा है कि कौन कौन उपाए करके शरीर के पास पंहुचा जा सकता है और उसे स्पर्श किया जा सकता है जो आज के प्रेम को पशुता और वासना तक ज्यादा ले जाता है …जिसके कारण १४ फ़रवरी का प्रेम दिवस कभी एक दिव्य दिवस के रूप में नही आ पाया और यही कारण है कि इस दिन को लेकर सारी हाय तौबा है
शरीर तो कही भी कैसे भी पाया जा सकता है पर रूह पाने के लिए वही रास्ते है जो हमें ऊपर बताये गए है …चाउमीन , पिज्जा , मैगी की तरह बस कुछ मिनट में प्यार बदलने और टायर होने वाले कभी संत्रप्ता को नही प्राप्त कर सकते …..१० मंजिल से उतरने के लिए ऊपर से कूदा भी जा सकता है पर बिना चोट के सुरक्षित उतरने के लिए सीढ़ी का ही प्रयोग सर्वश्रेष्ट है ….रास्ते लम्बे हो , समय ले पर स्थायित्व दे तभी बेहतर है ….इस लिए प्रेम के शार्ट कट के बजाये भावना के लम्बे रास्तो को अपनाना ही श्रेयस्कर है ..और यही १४ फ़रवरी का सार होगा अगर आप मान सके तो …अखिल भारतीय अधिकार संगठन आपको सिर्फ सच का आइना दिखा सकता है ….