डॉ राकेश कुमार मिश्रा, अर्थशास्त्री

 

विश्व जनसंख्या दिवस के अवसर पर उत्तर प्रदेश सरकार ने नई जनसंख्या नीति जारी की जिसका उद्देश्य जनसंख्या नियंत्रण एवं स्थिरीकरण के साथ साथ शिशु मृत्यु दर एवं मातृ मृत्यु दर में भी कमी लाना है। इससे प्रदेश के विकास में मदद मिलने के साथ साथ जनमानस के कल्याण में भी वृद्धि होगी। उत्तर प्रदेश देश का सर्वाधिक जनसंख्या वाला राज्य है। इसकी जनसंख्या २३ करोड़ से अधिक है जो देश की कुल जनसंख्या का लगभग १६ प्रतिशत है। अन्य कारणों के साथ साथ प्रदेश के पिछड़ेपन एवं गरीबी के लिए एक महत्वपूर्ण उत्तरदायी कारण विशाल जनसंख्या है। देश के दूसरे सर्वाधिक जनसंख्या वाले राज्य महाराष्ट्र की जनसंख्या उत्तर प्रदेश की लगभग आधी है। उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर जनसंख्या के दबाव का अनुमान इन तथ्यों से ही लगाया जा सकता है कि प्रदेश की जनसंख्या ब्राजील से भी ज्यादा एवं अमेरिका जैसे विकसित एवं विशाल भूमि क्षेत्रफल वाले देश की दो तिहाई से भी अधिक है। यदि उत्तर प्रदेश को शेष भारत से अलग कर दिया जाय तो भी यह विश्व का पाँचवाँ सर्वाधिक जनसंख्या वाला राष्ट्र होगा। उत्तर प्रदेश की शुद्ध पुनरूत्पादकता दर २.८ है जो राष्ट्रीय औसत २.२ से अधिक है। यह माना जाता है कि शुद्ध पुनरुत्पादन दर २.० होने पर किसी राष्ट्र की जनसंख्या में स्थिरीकरण की प्रवृत्ति देखी जाती है। राष्ट्रीय स्तर पर हम शुद्ध पुनरुत्पादन दर के मामले में स्थिरीकरण की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं एवं उम्मीद कर सकते हैं कि एक डेढ़ दशक में हमारे देश की जनसंख्या १५०-१६० करोड़ के आस पास स्थिर हो सकती है। शायद यही कारण है कि लाल किले की प्राचीर से अपने सम्बोधन में मोदी जी ने सीमित परिवार के लिए जनता से अपील जरूर की परन्तु दो वर्ष बीत जाने के बाद भी अभी भी सरकार इस दिशा में किसी राष्ट्रीय पहल से बच रही है। केंद्र सरकार इस बात से वाकिफ है कि अनेक राज्यों ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए कुछ प्रेरणादायक एवं दण्डनीय कदम उठाकर जन्म दर में कमी लाने में सफलता हासिल की है। देश के अनेक राज्यों में शुद्ध पुनरुत्पादन दर भी २.० या इससे भी कम है।

उत्तर प्रदेश के हालात अलग हैं। प्रदेश की वर्तमान जनसंख्या संसाधनों को देखते हुए पहले ही विस्फोट की स्थिति में है। प्रदेश में जन्म दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है और तमिलनाडु, महाराष्ट्र, केरल एवं कर्नाटक जैसे राज्यों से लगभग डेढ़ गुना है। शुद्ध पुनरूत्पादकता दर में कमी अवश्य आई है जो पिछली सदी के अन्तिम तीन दशकों में ४.० या अधिक थी। शिक्षा के प्रसार एवं विकास के कारण जनसंख्या वृद्धि दर एवं शुद्ध पुनरूत्पादकता दर में और गिरावट आना तय है परन्तु उत्तर प्रदेश वर्तमान जनसंख्या दबाव को देखते हुए दो दशक इन्तजार नहीं कर सकता जब जनसंख्या स्वतः स्थिरीकरण के लिए प्रवत्त हो। राज्य सकल घरेलू उत्पाद में आशातीत वृद्धि एवं राष्ट्र में द्वितीय स्थान, ईज आफ डूइंग बिजनेस में राष्ट्र में दूसरी रैंक एवं निजी निवेश लाने में महत्वपूर्ण सफलता के बावजूद प्रति व्यक्ति आय में अपेक्षित वृद्धि नहीं होना या गिरावट ने योगी जी को इस बात को सोचने पर मजबूर किया कि प्रदेश की प्रगति एवं जनता के कल्याण के लिए नई जनसंख्या नीति अपरिहार्य है जो शीघ्रताशीघ्र प्रदेश की जनसंख्या को स्थिरीकरण की दिशा में प्रवत्त कर सके।

आज देश ही नहीं विश्व एक भयानक दौर से गुजर रहा है। कोरोना संक्रमण ने लोगों को ही नहीं सरकार को भी हिला दिया है और अपनी प्राथमिकताओं में बदलाव के लिए मजबूर किया है। स्वास्थ्य सुविधाओं में जो अपेक्षित सुधार की जरूरत इस कोरोना काल में महसूस की गई है, उसकी पूर्ति के लिए यह भी समय की मांग है कि बेलगाम होती जनसंख्या पर भी नियंत्रण किया जाए। हम यह कैसे भुला सकते हैं कि मेडिकल सुविधा की कमजोरियों एवं कोरोना संक्रमितों की संख्या में अप्रत्याशित तेजी के कारण दूसरी लहर में ही देश ने ३ लाख से अधिक लोगों को खोया है और अभी यह सिलसिला थमा नहीं है। विपक्ष निकट भविष्य में चुनाव एवं एक पंथ विशेष की कट्टरवादी मानसिकता के मद्देनजर सरकार को घेर रहा है। इस विषय में मेरा स्पष्ट मत है कि प्रदेश के विकास हेतु गंभीर चुनौती बनी प्रदेश की जनसंख्या पर नियंत्रण के लिए लाई गई जनसंख्या नीति पर यह क्षुद्र राजनीति किसी भी दृष्टि से उचित नहीं। हकीकत में तो जनसंख्या नियंत्रण की देश को जरूरत १९७१–२००१ में थी, तब आज देश एवं प्रदेश को इन चुनौतियों का सामना न करना पड़ता। अब तो यही कहा जा सकता है कि जब जागे तभी सबेरा।

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