डॉ दिलीप अग्निहोत्री
भारतीय शास्त्रों ने प्रकृति के संक्रमण काल में उपासना का विशेष महत्व बताया है। इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। नवदुर्गा के नौ दिन इसका अवसर प्रदान करते है। इस अवधि में भक्त जन मां दुर्गा सप्तशती का पाठ करते है। यह धार्मिक ग्रन्थ संस्कृति में है। अनेक लोगों के संस्कृति के शुद्ध उच्चारण में असुविधा होती है। समय का अभाव भी हो सकता है। ऐसे लोगों के लिए स्वामी राम भद्राचार्य ने सहज उपाय बताया है। वह अपने ज्ञान व साधना से जन सामान्य का सतत मार्गदर्शन करते है। वह लौकिक रूप से संसार को देख नहीं सकते। लेकिन भारतीय दर्शन व प्रज्ञा का चमत्कार प्रभावित करने वाला होता है। ज्ञान चक्षु जीवन आलोकित हो जाता है। इसे प्रत्यक्ष देखा जा रहा था। अति विशाल भारतीय वैदिक वांग्मय के अलावा अन्य सभी ग्रन्थों की पृष्ठ संख्या तक उनकी स्मृति में है।उन्होंने इस विलक्षण ज्ञान को अपने तक सीमित नहीं रखा,बल्कि विद्या का सतत दान कर रहे है। वह प्रभावी व ज्ञानवर्धक राम कथा के वाचक है। इस रूप में समाज को प्रभु राम की मर्यादा का संदेश देते है। वह तुलसीपीठ के संस्थापक व पीठाधीश्वर है। चित्रकूट स्थित इस संस्थान के माध्यम से केवल धार्मिक ही नहीं सामाजिक सेवा के कार्यक्रमों का संचालन किया जाता है। वह चित्रकूट में जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलाधिपति हैं। जबकि अभाव के कारण सत्रह वर्ष की आयु तक उनको औपचारिक शिक्षा का अवसर नहीं मिला था।
सन्त राम भद्राचार्य महाराज ने बताया कि जो पुण्य फल सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती के पाठ से मिलता है वही फल श्रीरामचरितमानस की इन सात पंक्तियों के भाव सहित पाठ से मिल जाता है-
जय जय जय गिरिराज किशोरी।
जय महेश मुख चंद्र चकोरी॥
जय गजबदन षडानन माता।
जगत जननि दामिनि दुति गाता॥
नहिं तव आदि मध्य अवसाना।
अमित प्रभाव बेद नहिं जाना॥
भव भव विभव पराभव कारिनि।
बिश्व बिमोहनि स्वबश बिहारिनि॥
दोहा- पतिदेवता सुतीय महँ,मातु प्रथम तव रेख।
महिमा अमित न सकहिं कहि,सहस शारदा शेष।।
सेवत तोहि सुलभ फल चारी।
बरदायनी त्रिपुरारि पियारी॥
देबि पूजि पद कमल तुम्हारे।
सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे॥