डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन

बचपन से यहां पढ़ता भी रहा हूं और सुनता भी रहा हूं एक शब्द विपत्ति आती है तभी अपने पराए का भेद पता चलता है और इसलिए जीवन में एक बार विपत्ति आनी भी चाहिए क्योंकि आदमी अपने चारों तरफ एक लंबी कतार रिश्तो की नातेदार के बनाए रहता है लेकिन वह जान नहीं पाता कि वास्तव में कौन मेरे लिए जी रहा है वह तो भला हो कोरो ना का जिसने रहीम दास की इज्जत रखें और उनके बात को सत्य सिद्ध करने के लिए अपना विराट स्वरूप पूरी दुनिया को ही नहीं दिखाया भारत में भी दिखाया मैं तो यह सोच सोच कर मरा जा रहा था कि आखिर इस विपदा में मैं कैसे जान लूंगा कि कौन मेरा है कौन पराया है वैसे तो मुझे इसका अनुभव बहुत लंबा है और सबसे मजेदार बात यह है कि मैं हमेशा अपनों से ही घिरा रहा हूं सोशल मीडिया पर पर तो पूछिए नहीं फेसबुक पर ही 5000 लोग अपने हैं अब मैं यह क्या कहूं कि उन 5000 में से किसको या चिंता है कि मुझे को रोना हो गया या नहीं हो गया अब जब खुद के घर में आग लगी हो तो दूसरे के घर कौन आग बुझाने जाएगा मतलब मैं यह नहीं कह रहा हूं कि सभी को कोरोना हो गया है इसलिए वह मेरा हाल चाल नहीं पूछ रहे हैं मैं तो यह कह रहा हूं कि वह सब मेरे अपने हैं खैर तो फेसबुक के 5000 लोग सोशल मीडिया की उस सेना की तरह है जो जब वास्तव में मेरी कभी मृत्यु वगैरा होगी तो रिपोन शांति ओम भगवान उनकी आत्मा को शांति दे नमन कहकर अपनेपन का एहसास कराएंगे रोज-रोज अपनापन दिखाना जरूरी है न जाने कितने रिश्ते टूट जाते हैं।

इस देश में कहां तक हम आपको यह बताएं कि हम आपके अपने हैं इसलिए इसको दिखाना क्या और बताना क्या मैं समझता हूं इसीलिए सोशल मीडिया के 5000 मेरी लंबी चौड़ी से ना उस दिन का इंतजार कर रही है और सही भी है और मेरे सामने यह क्या दिखाना या बताना कि मैं कितना आपकी चिंता करता हूं अच्छी बात तो तब है जब आप ना हो और आपकी तारीफ की जाए असली कमाई तो वही होती है जब आपके ना रहते हुए लोग आपकी तारीफ करें मैं जानता हूं कि इसीलिए किसी को कोरोना का हाल-चाल लेने की चिंता नहीं है वैसे मैंने शरीर भी दान कर दिया है इसलिए तेरहवीं का खाना भी नहीं होगा और मैं तो एक इतना भाग्यशाली व्यक्ति हूं जिसके पास एक पूरी फौज है विद्यार्थियों की जो मेरे लिए ना जाने कितने अच्छी बातें सोचते हो वह बात अलग है कि अभी समय को रोना के समय में वह क्या जाने कि उनका गुरु मरा भी कि नहीं मरा जिस दिन मरेगा पता चल ही जाएगा कोई ना कोई फोटो लगाएगा तब पता हो जाएगा आखिर यही तो दिखाना है कौन अपना है तो अभी बता कहां दिखाई दे रही है अभी तो जिंदा है और जिंदा रहने का मतलब कुछ होता नहीं जब कोरो ना होने के बाद आप मर जाइए तब सही विपदा है है इन सबके बीच में विपदा को लाने वाला करो ना ही एक ऐसा सच्चा मित्र निकला जिसने कहा कि जो अकेले में साथ दें और विपत्ति में तुम्हारे साथ खड़ा हो उसे ही अपना समझो और इस दुनिया में जैसे ही उसने मौका पाया और देखा कि तुम्हारे साथ कोई नहीं खड़ा है वह मेरे बगल आकर खड़ा हो गया।

अब आप बताइए विपत्ति में जो हुआ मेरे साथ वही और केवल वही आकर खड़ा हुआ है तो मैं कैसे इंकार कर दूं कि वह मेरा अपना नहीं है वही मेरा अपना सच्चा मित्र नहीं है आखिर रहीम दास ने जो कहा था वह बात झूठी कैसे हो जाएगी और जो लोग इस बात को समझते हैं वह भी मानेंगे कि मेरे साथ को रोना जैसे व्यक्ति का खड़ा होना ही जरूरी था क्योंकि सर्वोच्चता में तो वही मेरा अपना था वैसे क्या आप भी किसी अपने की तलाश में निकले या अभी आप विपदा का इंतजार कर रहे हैं जब आप यह जान सकेंगे कौन आपका है मुझे लगता है कि मेरी हालत और दुर्दशा देखकर ही मान लीजिए कि आने पर ही अपने और पराए का फर्क पता चलता है कोई जरूरी नहीं है कि अगर हमारा एक आंख चली गई है तो जब तक सामने वाले की दोनों आंख ना चली जाए तब तक किसी को खुशी ही ना हो और इसीलिए मैं यह चाहता हूं कि आपके लिए रहीम दास का यह दुआ झूठा साबित हो जाए और मेरा आपको श्राप है कि कोरोना आपसे कभी मोहब्बत ना कर पाए कोरोना को देखकर आपको उल्टी आए और अपने घर का दरवाजा बंद कर ले भले ही वह आप सिर पटक डाले अपना कलेजा चीर के दिखा दे कि आपकी उससे मोहब्बत है फिर भी आप उसकी कोई बात ना माने आमतौर पर मोहब्बत में क्या होता है घरवाले जान ही नहीं पाते कि बच्चे प्रेम करने लगे और वह चुपचाप दबे पांव दिलों तक पहुंच जाता है अंदर पहुंच जाता है जब पता चलता है तब देर हो चुकी होती है और यह सब मैं भी देख रहा हूं इसलिए मैं क्यों चाहूंगा कि आप भी इस तरह के प्रेम में फंस जाएं और भला सच्चा प्रेमी क्यों चाहेगा कि कोई दूसरा सच्चा प्रेम इस दुनिया में आ जाए याद रखेगी दुनिया की एक ही सच्चा प्रेमी हुआ था इसलिए आप सिर्फ डाले तपस्या कर डाले लेकिन भगवान आपको कोरोना से मोहब्बत का कोई आशीर्वाद ना दे आप पटाखे रहीम दास पागल हो जाए फिर भी विपत्ति में आपको अपनापन ढूंढने का यह सुनहरा मौका ना मिले लेकिन आप कहां मानने वाले हैं योद्धा हैं सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका नहीं सकते और ऐसा कैसे हो सकता कि अकेले आलोक किए जाने की रहीम दास ने जो कहा उसका मजा किया है तो क्या आप भी निकलेंगे विपत्ति में अपनों की तलाश में क्या सोशल मीडिया के 5000 लोग कम हैं जिनसे आप अपनापन विपत्ति के समय समझ सकते हैं वह भी घर में बैठकर इसीलिए मार्क जुकरबर्ग ने घर में ही आपको रहीम दास को जिंदा करने का राइट दिया है।

मुकेश अंबानी ने सुविधा दिया है सरकार ने डिजिटल इंडिया बनाया है वहीं बैठ कर समझ लीजिए कि सोशल मीडिया के 5000 लोग कितना आपके अपने हैं अरे मेरी बात सुनने मुझे आप कहां चल रही है क्या विपत्ति में अपने की तलाश आप निकलेंगे जरूर भले ही आप का अंत बैकुंठ धाम की लकड़ियों पर हो लेकिन यह भी एक शिक्षक का श्राप है कि आप चाहे जितना जतन कर लेंगे आपको कोई अपना इस विपत्ति काल में मिलेगा नहीं और कोरोना तो कतई नहीं मिलेगा क्योंकि सारी मोहब्बत तो उसने मुझसे ही कर लिया है मैं जानता हूं कि आपके पास इसको भी पढ़ने की फुर्सत नहीं है लेकिन नेकी कर दरिया में डाल वेबीनार करिए सर्टिफिकेट बटोरी है दिल लेके कोरोना से मोहब्बत खुलकर मत कीजिए मोहब्बत तो दिल के अंदर की चीज है अंधेरे में अकेले में एकांत में महसूस करने की इसलिए घर के अंदर बैठकर चुपचाप अकेले में से मोहब्बत कीजिए फिर देखिए कि क्या करो ना क्या औकात है कि सबके सामने खुलकर वह कह सके कि मैं तुम्हें चाहता हूं प्लीज करिएगा जरूर एक बार घर के अंदर अकेले में एकांत में बैठकर करो ना से मोहब्बत करने का प्रयास कीजिए मेरा दावा है उसकी औकात नहीं जो आप से मोहब्बत कर ले क्योंकि वह सच्चा प्रेम नहीं करता वह कपट कर रहा है बस सिर्फ आपका शरीर चाहता है उसका उपभोग कर के खुद किसी और के साथ मस्त हो जाएगा आप तो बेजान से रह जाएंगे तो विपत्ति के इस समय में अपनों की तलाश को अकेले में एकांत में बैठकर कीजिए और देखिए वास्तव में कोरोना आपसे कितनी सच्ची मोहब्बत करता है कम से कम मेरी अंतिम यही इच्छा पूरी कर दीजिए अब इसमें तो कंजूसी ना कीजिएगा आलोक चाटिया

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